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अलीगढ़ की ऐतिहासिक जामा मस्जिद क्या शिव मंदिर की जगह पर बनी? जानिए दावा कितना सच - ALIGARH JAMA MASJID

संभल, बदायूं के बाद अब मंदिर-मस्जिद का एक और मामला पहुंचा कोर्ट, मामले की 15 फरवरी को होगी सुनवाई.

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अलीगढ़ में ऊपरकोट पर बनी जामा मस्जिद. (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 11, 2025, 8:14 PM IST

Updated : Jan 12, 2025, 5:59 PM IST

अलीगढ़ः संभल, बागपत, बदायूं, फिरोजाबाद और बरेली के बाद अब अलीगढ़ कि ऐतहासिक जामा मस्जिद के भी नीचे मंदिर होने का विवाद सामने आया है. आरटीआई एक्टिविस्ट पंडित केशव देव गौतम का कहना है 300 साल पुरानी मस्जिद की जगह पहले शिव मंदिर था.


इसको लेकर उन्होंने सिविल जज कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. मामले में 15 फरवरी को सुनवाई होनी है. याचिका दायर होने बाद अलीगढ़ की जामा मस्जिद चर्चाओं में आ गई है. ऐसे में इतिहासकार प्रोफेसर मोहम्मद वसीम राजा ने और स्थानीय लोगों ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में जामा मस्जिद के इतिहास के बारे में विस्तार से बताया.

इतिहासकार प्रोफेसर मोहम्मद वसीम राजा. (Video Credit; ETV Bharat)



मस्जिद में 17 गुंबद के साथ 3 दरवाजेः पार्षद मुशर्रफ मेहजर हुसैन ने बताया कि मस्जिद की सबसे खास बात यह है कि यह टीले पर बनी है. ऊंचाई पर बनी होने के कारण अलीगढ़ शहर के हर कोने से यह मस्जिद देखी जा सकती है. 300 साल पहले बनाई गई इस मस्जिद में 17 गुंबद के साथ 3 दरवाजे हैं. मस्जिद के हर दरवाजे पर 2-2 गुंबद हैं. यहां एक साथ लगभग 5 हजार लोग नमाज पढ़ सकते हैं. खासतौर से औरतों के लिए नमाज पढ़ने का यहां अलग से इंतजाम किया गया है. सफेद गुंबदों की संरचना वाली इस खूबसूरत मस्जिद में मुस्लिम कला और संस्कृति की झलक साफ-साफ दिखाई देती है.



गुंबदों व मीनारों की दीवारों पर 6 कुंतल जड़ा सोनाः पार्षद के मुताबिक, अलीगढ़ जामा मस्जिद के गुंबदों और मीनारों के ऊपर सोना मढ़ा हुआ है. स्थानीय लोगों के मुताबिक, इतना सोना एशिया की किसी दूसरी मस्जिद में नहीं लगा है. करीब 8 से 10 फीट लंबी 3 मीनारें मुख्य गुंबद पर लगी हुई हैं. तीनों गुंबद के बराबर में बने एक-एक गुंबद पर छोटी-छोटी 3 मीनारें हैं.

जामा मस्जिद की जगह मंदिर होने का दावा. (Video Credit; ETV Bharat)

मस्जिद के गेट और चारों कोनों पर भी छोटी-छोटी मिनारे हैं. सभी गुंबदों और मीनारों में शुद्ध सोना मढ़ा हुआ है. गुंबद में भी कई कुंतल सोना मढ़ा है. हालांकि कितना सोना लगा है, इसका अंदाजा किसी को नहीं है. इस सोने की रक्षा करने के लिए कोई चौकीदार तैनात नहीं है. जानकारी के अनुसार जामा मस्जिद में करीब 6 कुंतल सोना लगा हुआ है.


1857 के शहीद मौलानाओं की कब्रः 1857 की क्रांति की यादें भी इस जामा मस्जिद से जुड़ी हुई हैं. यह देश की पहली मस्जिद बताई जाती है, जहां 1857 की क्रांति के शहीदों की 73 कब्रें बनी हैं. इसे गंज-ए-शहीदन यानी कि शहीदों की बस्ती भी कहते हैं. तीन सदी पुरानी इस मस्जिद में कई पीढ़ियां नमाज अदा कर चुकी हैं. इस वक्त मस्जिद में आठवीं पीढ़ी नमाज पढ़ रही है.

जामा मस्जिद की खासियत.
जामा मस्जिद की खासियत. (Photo Credit; ETV Bharat)


कौन बनेगा करोड़पति में मस्जिद से जुड़ा पूछा गया था सवालः अमिताभ बच्चन ने कौन बनेगा करोड़पति में मस्जिद से जुड़ा सवाल पूछा था. सवाल था कि भारत के किस धार्मिक स्थल में सबसे ज्यादा सोने का इस्तेमाल किया गया है. ऑप्शन में तिरुपति मंदिर, स्वर्ण मंदिर, अलीगढ़ की जामा मस्जिद और काशी विश्वनाथ मंदिर था. इसका जवाब अलीगढ़ की जामा मस्जिद बताया गया था. इसे भारत ही नहीं बल्कि एशिया की सबसे ज्यादा सोना लगी मस्जिद मानी जाती है.


पांच बादशाहों ने मस्जिद का कराया नवीनीकरणः ईटीवी भारत से खास बातचीत में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) ऐतिहासिक विभाग के प्रोफेसर मोहम्मद वसीम राजा ने अलीगढ़ और अलीगढ़ की ऐतिहासिक जामा मस्जिद के इतिहास के संबंध में 1740 में राजे मोहम्मद द्वारा लिखी गई किताब "अकबर उल जमाल" का हवाला देते हुए बताया कि अलीगढ़ की ऐतिहासिक जामा मस्जिद मुकम्मल तौर पर इस्लामिक आर्किटेक्चर है. जो कुतुबुद्दीन ऐबक से लेकर पांच बादशाहों ने नवीनीकरण करवाया था. यह मस्जिद 18 वीं सदी में 1728 में बनकर तैयार हुई थी.

गुंबदों और मीनारों की दीवारों सोना जड़ा होने का दावा.
गुंबदों और मीनारों की दीवारों सोना जड़ा होने का दावा. (Photo Credit; ETV Bharat)


कुतुबुद्दीन ऐबक ने जीता थाः प्रोफेसर राजा ने बताया कि सल्तनत के जमाने में इसका नाम कॉल था, जिसको कुतुबुद्दीन ऐबक ने जीता था. जीत की खुशी में ही कुतुबुद्दीन ऐबक ने ऊपरकोट के इलाके में मौजूद सबसे ऊंची जगह पर एक मस्जिद बनवाई थी. मस्जिद छोटी थी, जिसकी वजह से पांच बादशाहों ने अपने-अपने दौर में मस्जिद का नवीनीकरण करवाया था. कुतुबुद्दीन ऐबक, अल्तमश, नसरुद्दीन महमूद, इब्राहिम लोदी के दौर में भी इस मस्जिद में नवीनीकरण हुआ था.


लगभग 4 साल में बनी थी मस्जिदः प्रोफेसर ने बताया कि जामा मस्जिद शुरुआत और बुनियाद तो कुतुबुद्दीन ऐबक के दौर में रखी गई थी. लेकिन इसको आखिरी शक्ल मुगल बादशाह मोहम्मद शाह के दौर में कॉल के गवर्नर साबित खान ने इसको आखिरी शक्ल दी. इस मस्जिद को 1724 में शुरू किया गया जो 1728 में बनकर तैयार हो गई. उन्होंने बताया कि 1857 की क्रांति की यादें भी इस जामा मस्जिद से जुड़ी हुई हैं. यह देश की पहली मस्जिद बताई जाती है, जहां 1857 की क्रांति के शहीदों की 73 कब्रें बनी हैं. इसे गंज-ए-शहीदन यानी कि शहीदों की बस्ती भी कहते हैं.


अखबार उल जमाल में मंदिर का जिक्र नहींः प्रोफेसर मोहम्मद वसीम राजा ने कहा कि एएमयू इतिहास विभाग के प्रोफेसर जमाल मोहम्मद सिद्दीकी ने अलीगढ़ की हिस्ट्री पर एक किताब "अलीगढ़ डिस्ट्रिक्ट : ए हिस्टॉरिकल सर्वे, प्राचीन काल से 1803 ई. तक" लिखी थी. जिसमें उन्होंने "अखबार उल जमाल" किताब का हवाला दिया है, जो किताब 1740 में राजे मोहम्मद ने लिखी थी. इस किताब में जामा मस्जिद की जगह हिंदू, जैन या बौद्ध धर्म या उनकी किसी चीज का जिक्र नहीं है. अगर किसी के भी पास इसके संबंध में कोई चीज लिखी हुई है या कोई चीज मौजूद है तो वह दिखाएं तो फिर "अखबार उल जमाल" में जो लिखा है, उसको चैलेंज किया जा सकता है.


मंदिर होने का दावा गलत, जामा मस्जिद इस्लामिक आर्किटेक्चरः प्रोफेसर राजा ने कहा कि जिसने भी अलीगढ़ जामा मस्जिद की जगह किसी जैन या हिंदू मंदिर होने के संबंध में याचिका डाली है. दावा किया है या आरटीआई डाली है, वह गलत और बेबुनियाद है. इसका इतिहास से कोई लेना-देना नहीं है. अलीगढ़ की जामा मस्जिद मुकम्मल तौर पर इस्लामिक आर्किटेक्चर है, जो कुतुबुद्दीन ऐबक से लेकर पांच बादशाहों ने अपने-अपने दौर में इसका नवीनीकरण किया है.


हिंदुस्तान की हिंदू मुस्लिम एकता को खत्म करने की कोशिशः मंदिर होने के दावे को लेकर स्थानीय निवासी हाजी मोहम्मद समीउल्लाह, मखदूम अहमद, मोहम्मद असलम और पार्षद मुशर्रफ मेहजर हुसैन का कहना है कि इस तरह के विवादों से अलीगढ़ के माहौल को खराब करने की कोशिश की जा रही है. कुछ नादान लोग हैं, जो इस तरह के विवादों को जन्म देते रहते हैं. यह वह लोग हैं, जो 2014 में आजाद हुए हैं. हिंदुस्तान की हिंदू मुस्लिम एकता को खत्म करना चाहते हैं. इसलिए ऐसे लोगों की तरफ ना तो अलीगढ़ प्रशासन को जो देगा ना हम लोग जाना चाहते हैं, और ना ही अदालत देगी, सस्ती शहर पाने के लिए यह लोग इस तरह के में बात करते रहते हैं.


नेता पंडित केशव देव गौतम का ये है दावाः आरटीआई एक्टिविस्ट और भ्रष्टाचार विरोधी सेना के नेता पंडित केशव देव गौतम का दावा है कि ऊपरकोट इलाके में पहले हिंदू राजाओं का बड़ा किला हुआ करता था. किले के स्थान पर कूट रचित दस्तावेजों के आधार पर जामा मस्जिद की स्थापना की गई है. उन्होंने पुरातत्व विभाग और नगर निगम से आरटीआई के माध्यम से जानकारी प्राप्त की है. इस स्थान पर पहले बौद्ध स्तूप, जैन मंदिर या शिव मंदिर होने का उल्लेख किया गया है. केशव देव ने नगर निगम से आरटीआई के जरिए पूछा था कि जामा मस्जिद किसकी जमीन पर बनी है. इसका निर्माण कब हुआ और मस्जिद पर मालिकाना हक किसका है. नगर निगम ने जवाब दिया कि मस्जिद सार्वजनिक भूमि पर बनी है और इसके निर्माण के संबंध में कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है. निगम ने यह भी स्पष्ट किया कि मस्जिद का मालिकाना हक किसी व्यक्ति के पास नहीं है.

इसे भी पढ़ें-अब अलीगढ़ में जामा मस्जिद की जगह शिव मंदिर होने का दावा, 15 फरवरी को होगी सुनवाई

अलीगढ़ः संभल, बागपत, बदायूं, फिरोजाबाद और बरेली के बाद अब अलीगढ़ कि ऐतहासिक जामा मस्जिद के भी नीचे मंदिर होने का विवाद सामने आया है. आरटीआई एक्टिविस्ट पंडित केशव देव गौतम का कहना है 300 साल पुरानी मस्जिद की जगह पहले शिव मंदिर था.


इसको लेकर उन्होंने सिविल जज कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. मामले में 15 फरवरी को सुनवाई होनी है. याचिका दायर होने बाद अलीगढ़ की जामा मस्जिद चर्चाओं में आ गई है. ऐसे में इतिहासकार प्रोफेसर मोहम्मद वसीम राजा ने और स्थानीय लोगों ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में जामा मस्जिद के इतिहास के बारे में विस्तार से बताया.

इतिहासकार प्रोफेसर मोहम्मद वसीम राजा. (Video Credit; ETV Bharat)



मस्जिद में 17 गुंबद के साथ 3 दरवाजेः पार्षद मुशर्रफ मेहजर हुसैन ने बताया कि मस्जिद की सबसे खास बात यह है कि यह टीले पर बनी है. ऊंचाई पर बनी होने के कारण अलीगढ़ शहर के हर कोने से यह मस्जिद देखी जा सकती है. 300 साल पहले बनाई गई इस मस्जिद में 17 गुंबद के साथ 3 दरवाजे हैं. मस्जिद के हर दरवाजे पर 2-2 गुंबद हैं. यहां एक साथ लगभग 5 हजार लोग नमाज पढ़ सकते हैं. खासतौर से औरतों के लिए नमाज पढ़ने का यहां अलग से इंतजाम किया गया है. सफेद गुंबदों की संरचना वाली इस खूबसूरत मस्जिद में मुस्लिम कला और संस्कृति की झलक साफ-साफ दिखाई देती है.



गुंबदों व मीनारों की दीवारों पर 6 कुंतल जड़ा सोनाः पार्षद के मुताबिक, अलीगढ़ जामा मस्जिद के गुंबदों और मीनारों के ऊपर सोना मढ़ा हुआ है. स्थानीय लोगों के मुताबिक, इतना सोना एशिया की किसी दूसरी मस्जिद में नहीं लगा है. करीब 8 से 10 फीट लंबी 3 मीनारें मुख्य गुंबद पर लगी हुई हैं. तीनों गुंबद के बराबर में बने एक-एक गुंबद पर छोटी-छोटी 3 मीनारें हैं.

जामा मस्जिद की जगह मंदिर होने का दावा. (Video Credit; ETV Bharat)

मस्जिद के गेट और चारों कोनों पर भी छोटी-छोटी मिनारे हैं. सभी गुंबदों और मीनारों में शुद्ध सोना मढ़ा हुआ है. गुंबद में भी कई कुंतल सोना मढ़ा है. हालांकि कितना सोना लगा है, इसका अंदाजा किसी को नहीं है. इस सोने की रक्षा करने के लिए कोई चौकीदार तैनात नहीं है. जानकारी के अनुसार जामा मस्जिद में करीब 6 कुंतल सोना लगा हुआ है.


1857 के शहीद मौलानाओं की कब्रः 1857 की क्रांति की यादें भी इस जामा मस्जिद से जुड़ी हुई हैं. यह देश की पहली मस्जिद बताई जाती है, जहां 1857 की क्रांति के शहीदों की 73 कब्रें बनी हैं. इसे गंज-ए-शहीदन यानी कि शहीदों की बस्ती भी कहते हैं. तीन सदी पुरानी इस मस्जिद में कई पीढ़ियां नमाज अदा कर चुकी हैं. इस वक्त मस्जिद में आठवीं पीढ़ी नमाज पढ़ रही है.

जामा मस्जिद की खासियत.
जामा मस्जिद की खासियत. (Photo Credit; ETV Bharat)


कौन बनेगा करोड़पति में मस्जिद से जुड़ा पूछा गया था सवालः अमिताभ बच्चन ने कौन बनेगा करोड़पति में मस्जिद से जुड़ा सवाल पूछा था. सवाल था कि भारत के किस धार्मिक स्थल में सबसे ज्यादा सोने का इस्तेमाल किया गया है. ऑप्शन में तिरुपति मंदिर, स्वर्ण मंदिर, अलीगढ़ की जामा मस्जिद और काशी विश्वनाथ मंदिर था. इसका जवाब अलीगढ़ की जामा मस्जिद बताया गया था. इसे भारत ही नहीं बल्कि एशिया की सबसे ज्यादा सोना लगी मस्जिद मानी जाती है.


पांच बादशाहों ने मस्जिद का कराया नवीनीकरणः ईटीवी भारत से खास बातचीत में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) ऐतिहासिक विभाग के प्रोफेसर मोहम्मद वसीम राजा ने अलीगढ़ और अलीगढ़ की ऐतिहासिक जामा मस्जिद के इतिहास के संबंध में 1740 में राजे मोहम्मद द्वारा लिखी गई किताब "अकबर उल जमाल" का हवाला देते हुए बताया कि अलीगढ़ की ऐतिहासिक जामा मस्जिद मुकम्मल तौर पर इस्लामिक आर्किटेक्चर है. जो कुतुबुद्दीन ऐबक से लेकर पांच बादशाहों ने नवीनीकरण करवाया था. यह मस्जिद 18 वीं सदी में 1728 में बनकर तैयार हुई थी.

गुंबदों और मीनारों की दीवारों सोना जड़ा होने का दावा.
गुंबदों और मीनारों की दीवारों सोना जड़ा होने का दावा. (Photo Credit; ETV Bharat)


कुतुबुद्दीन ऐबक ने जीता थाः प्रोफेसर राजा ने बताया कि सल्तनत के जमाने में इसका नाम कॉल था, जिसको कुतुबुद्दीन ऐबक ने जीता था. जीत की खुशी में ही कुतुबुद्दीन ऐबक ने ऊपरकोट के इलाके में मौजूद सबसे ऊंची जगह पर एक मस्जिद बनवाई थी. मस्जिद छोटी थी, जिसकी वजह से पांच बादशाहों ने अपने-अपने दौर में मस्जिद का नवीनीकरण करवाया था. कुतुबुद्दीन ऐबक, अल्तमश, नसरुद्दीन महमूद, इब्राहिम लोदी के दौर में भी इस मस्जिद में नवीनीकरण हुआ था.


लगभग 4 साल में बनी थी मस्जिदः प्रोफेसर ने बताया कि जामा मस्जिद शुरुआत और बुनियाद तो कुतुबुद्दीन ऐबक के दौर में रखी गई थी. लेकिन इसको आखिरी शक्ल मुगल बादशाह मोहम्मद शाह के दौर में कॉल के गवर्नर साबित खान ने इसको आखिरी शक्ल दी. इस मस्जिद को 1724 में शुरू किया गया जो 1728 में बनकर तैयार हो गई. उन्होंने बताया कि 1857 की क्रांति की यादें भी इस जामा मस्जिद से जुड़ी हुई हैं. यह देश की पहली मस्जिद बताई जाती है, जहां 1857 की क्रांति के शहीदों की 73 कब्रें बनी हैं. इसे गंज-ए-शहीदन यानी कि शहीदों की बस्ती भी कहते हैं.


अखबार उल जमाल में मंदिर का जिक्र नहींः प्रोफेसर मोहम्मद वसीम राजा ने कहा कि एएमयू इतिहास विभाग के प्रोफेसर जमाल मोहम्मद सिद्दीकी ने अलीगढ़ की हिस्ट्री पर एक किताब "अलीगढ़ डिस्ट्रिक्ट : ए हिस्टॉरिकल सर्वे, प्राचीन काल से 1803 ई. तक" लिखी थी. जिसमें उन्होंने "अखबार उल जमाल" किताब का हवाला दिया है, जो किताब 1740 में राजे मोहम्मद ने लिखी थी. इस किताब में जामा मस्जिद की जगह हिंदू, जैन या बौद्ध धर्म या उनकी किसी चीज का जिक्र नहीं है. अगर किसी के भी पास इसके संबंध में कोई चीज लिखी हुई है या कोई चीज मौजूद है तो वह दिखाएं तो फिर "अखबार उल जमाल" में जो लिखा है, उसको चैलेंज किया जा सकता है.


मंदिर होने का दावा गलत, जामा मस्जिद इस्लामिक आर्किटेक्चरः प्रोफेसर राजा ने कहा कि जिसने भी अलीगढ़ जामा मस्जिद की जगह किसी जैन या हिंदू मंदिर होने के संबंध में याचिका डाली है. दावा किया है या आरटीआई डाली है, वह गलत और बेबुनियाद है. इसका इतिहास से कोई लेना-देना नहीं है. अलीगढ़ की जामा मस्जिद मुकम्मल तौर पर इस्लामिक आर्किटेक्चर है, जो कुतुबुद्दीन ऐबक से लेकर पांच बादशाहों ने अपने-अपने दौर में इसका नवीनीकरण किया है.


हिंदुस्तान की हिंदू मुस्लिम एकता को खत्म करने की कोशिशः मंदिर होने के दावे को लेकर स्थानीय निवासी हाजी मोहम्मद समीउल्लाह, मखदूम अहमद, मोहम्मद असलम और पार्षद मुशर्रफ मेहजर हुसैन का कहना है कि इस तरह के विवादों से अलीगढ़ के माहौल को खराब करने की कोशिश की जा रही है. कुछ नादान लोग हैं, जो इस तरह के विवादों को जन्म देते रहते हैं. यह वह लोग हैं, जो 2014 में आजाद हुए हैं. हिंदुस्तान की हिंदू मुस्लिम एकता को खत्म करना चाहते हैं. इसलिए ऐसे लोगों की तरफ ना तो अलीगढ़ प्रशासन को जो देगा ना हम लोग जाना चाहते हैं, और ना ही अदालत देगी, सस्ती शहर पाने के लिए यह लोग इस तरह के में बात करते रहते हैं.


नेता पंडित केशव देव गौतम का ये है दावाः आरटीआई एक्टिविस्ट और भ्रष्टाचार विरोधी सेना के नेता पंडित केशव देव गौतम का दावा है कि ऊपरकोट इलाके में पहले हिंदू राजाओं का बड़ा किला हुआ करता था. किले के स्थान पर कूट रचित दस्तावेजों के आधार पर जामा मस्जिद की स्थापना की गई है. उन्होंने पुरातत्व विभाग और नगर निगम से आरटीआई के माध्यम से जानकारी प्राप्त की है. इस स्थान पर पहले बौद्ध स्तूप, जैन मंदिर या शिव मंदिर होने का उल्लेख किया गया है. केशव देव ने नगर निगम से आरटीआई के जरिए पूछा था कि जामा मस्जिद किसकी जमीन पर बनी है. इसका निर्माण कब हुआ और मस्जिद पर मालिकाना हक किसका है. नगर निगम ने जवाब दिया कि मस्जिद सार्वजनिक भूमि पर बनी है और इसके निर्माण के संबंध में कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है. निगम ने यह भी स्पष्ट किया कि मस्जिद का मालिकाना हक किसी व्यक्ति के पास नहीं है.

इसे भी पढ़ें-अब अलीगढ़ में जामा मस्जिद की जगह शिव मंदिर होने का दावा, 15 फरवरी को होगी सुनवाई

Last Updated : Jan 12, 2025, 5:59 PM IST
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