कुचामनसिटी: कृमि शरीर में किस प्रकार नुकसान पहुंचा सकते है, इसका उदाहरण कुचामनसिटी में देखने को मिला. कुचामनसिटी निवासी 30 वर्षीय युवक पेट दर्द से परेशान था. मेडिसिन से थोड़ी देर फायदा रहने और बार-बार दर्द होने पर डॉक्टर ने सोनोग्राफी का सुझाव दिया. रेडियोलॉजिस्ट डॉ प्रदीप चौधरी ने हाई रिजॉल्यूशन सोनोग्राफी की, तो पेट में छोटी आंत में लंबा वयस्क कीड़ा (राउंडवर्म) दिखा. उसे तुरन्त एलबेंडाजोल लेने पर अगले ही दिन मल के रास्ते 30 सेंटीमीटर लंबा कीड़ा निकला और दर्द में भी आराम आ गया.
कैसे शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं:प्रभावित मानव या पशु के मल से परजीवी के अंडे मृदा में मिलते हैं. छोटे बच्चे अक्सर मिट्टी से सने या गंदे हाथ मुंह में डाल लेते हैं. ऐसा करने से उनके पेट में कीड़े हो सकते हैं. इसके अलावा बगैर सही ढंग से धुली हुई फल तथा सब्जियों का सेवन करने, अधपकी सब्जियों का सेवन करने से भी यह रोग हो सकता है. जैसे ही कृमि के अंडे या कीड़े हमारे पेट में पहुंचते हैं, वे हमारी आंतों से चिपक जाते है और शरीर के पोषण पर जीना शुरू कर देते हैं. गौरतलब है कि मिट्टी जनित हेलमिंथ की रोकथाम के लिए हर साल नेशनल डिवर्मिंग डे पर बच्चों को एलबेंडाजोल दवा दी जाती है और स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत खुले में शौच से मुक्ति और हैंड हाइजीन की जनजागरूकता इसकी रोकथाम में प्रभावी कदम है.
पढ़ें:धौलपुर में जहरीले कीड़े के काटने से किसान की मौत, खेतों पर फसल की रखवाली कर रहा था
रेडियोलॉजिस्ट डॉ प्रदीप चौधरी ने बताया कि डब्ल्यूएचओ के अनुसार विश्व की लगभग 24 प्रतिशत जनसंख्या मृदा-संचारित कृमि या सॉयल ट्रांसमिटेड हेलमिंथ (एसटीएच) यानि पेट के कीड़े से संक्रमित है. लेकिन पूरे विश्व में एसटीएच के मामलों में से 27 प्रतिशत मामले सिर्फ भारत में ही हैं. मिट्टी से होने वाले हेलमिंथिक इंफेसटेशन में एस्केरियसिस या राउंड वर्म मुख्य हैं. इसका प्रभाव मुख्यत बच्चों में देखा जाता और ये भारत में सभी जगह और खास तौर पर दक्षिण और पूर्वी राज्यों में मिलता है. इनका निदान मल में परजीवी के अंडों की पहचान से होता है. वयस्क परजीवी कभी-कभी हाई रिजॉल्यूशन सोनोग्नाफी में दिख जाते हैं.