जीवंत हो उठा 'गोपीचंद भर्तृहरि' का 250 वर्ष पुराना तमाशा जयपुर.आमेर के अंबिकेश्वर महादेव मंदिर प्रांगण में इन दिनों पारंपरिक नाट्य शैली तमाशा जीवंत हो रही है. परम्परा नाट्य समिति और अंबिकेश्वर तमाशा समिति की ओर से स्व. बंशीधर भट्ट रचित तमाशा 'गोपीचंद भर्तृहरि' का आयोजन किया गया. इसे बड़ी तन्मयता से तमाशा साधक दिलीप भट्ट के निर्देशन में भट्ट परिवार के कलाकारों ने मंचित किया. इसमें अभिनय के साथ शास्त्रीय गायकी का परिचय भी दिया गया.
कार्यक्रम व्यवस्थापक ललित पारीक ने बताया कि तमाशा 'गोपीचंद भर्तृहरि' में यह बताया गया है कि मां अपने बेटे को अमर बनाने के लिए सब कुछ त्याग कर तपस्या की ओर चली जाती है, जिसमें त्याग, बलिदान, तपस्या, शिक्षा, दीक्षा, भिक्षा जीवन उपदेश, गुरु दीक्षा इन बातों को शास्त्रीय रागों में पिरोकर बताया जाता है. दिलीप भट्ट ने अपने पिता गोपी भट्ट की विरासत को बड़े सुरीले अंदाज में पेश किया.
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शास्त्रीय गायिकी ने जमाया रंग: तमाशे में प्रमुख शास्त्रीय रागों यथा पहाड़ी, भोपाली, आसावरी, जौनपुरी, मालकोंस, बिहाग, केदार, पीलु बरवा, सिंधकाफी, वृंदावनी सारंग, भैरव और भैरवी का समावेश किया गया. तमाशा साधक दिलीप भट्ट ने इन रागों पर आधारित बन्दिशों को बड़े रोचक ढंग से पेश किया. तमाशे में दिलीप भट्ट के साथ डॉ. सौरभ भट्ट, सचिन भट्ट, हर्ष भट्ट, गोपेश भट्ट,शैलेंद्र शर्मा और विशाल भट्ट आदि संगतकारों ने अपनी प्रस्तुति दी. तमाशे के बाद दिलीप भट्ट की ओर से गणगौर गायकी पेश की गई, जिसमें बंशीधर भट्ट की रचना 'रंगीला शंभू गौरा न ले पधारो प्यारा पांवणा, काले भुजंग सिर धरे इक जोगी आया है', से गोपी भट्ट की याद को पुनः जीवित किया. इस बार तमाशे के बाद युवा लोगों ने हनुमान चालीसा का भी पाठ किया.
जयपुर की विरासत:तमाशा साधक दिलीप भट्ट ने बताया कि सामूहिक तमाशा शैली जयपुर की एक विरासत है. भट्ट परिवार ने इसे जिंदा रखा है. तमाशा में पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र उदयपुर, जयपुर विरासत फाउंडेशन, जाजम फाउंडेशन का सहयोग रहा. तमाशा प्रबंधकारिणी समिति आमेर के ललित पारीक ने सभी का आभार व्यक्त किया.