पटनाः बिहार में दिवाली धूमधाम से मनायी गयी. अब लोग छठ पूजा की तैयारी में जुट चुके हैं. इससे पहले भाई दूज भी मनाया जाएगा. भाई दूज दिवाली और छठ पूजा के बीच मनाया जाता है. इसबार 3 नवंबर को भाई दूज मनाया जाएगा. पटना के महावीर मंदिर के ज्योतिषाचार्य डॉक्टर मुक्ति कुमार झा ने इसकी पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और मान्यताएं के बारे में जानकारी दी.
भाई दूज का शुभ मुहूर्तः ज्योतिषाचार्य डॉ. मुक्ति कुमार झा के अनुसार भाई दूज मनाने का शुभ मुहूर्त सुबह 6:45 बजे से दिन के 10:30 तक है. भाई दूज को यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है. पंचांग के अनुसार इस साल भाई दूज पर अनुराधा नक्षत्र और सौभाग्य योग का संयोग बन रहा है. इस योग में भाई के सिर पर तिलक लगाने से भाई बहन के रिश्ते में मजबूती आती है.
भाई दूज की पूजा विधिःबहनें सबसे पहले तिलक और आरती के लिए थाली सजाएं. इसमें कुमकुम, सिंदूर, चंदन, फूल, फल-मिठाई, सुपारी रखें. तिलक करने से पहले अरवा चावल के मिश्रण से एक चौक बनाएं. इसपर भाई को बिठाएं. भाई को तिलक करें. फूल, पान, सुपारी, मिठाई, बताशा, काला चना भाई को दें. इसके बाद उसकी आरती उतारें. इसके बाद भाई बहनों को उपहार दें और सदैव उनकी रक्षा का वचन दें.
क्या नहीं करेंःभाई को तिलक लगाने से पहले कुछ भी खाएं नहीं. ऐसा करना शुभ नहीं मनाया जाता है. पूजा करने के लिए विधि और शुभ मुहूर्त का ख्याल रखें. राहू काल में भाई दूज की पूजा करने से बचें. सबसे अधिक जरूरी है कि इस दिन भाई-बहन लड़ाई झगड़ा नहीं करें. इससे भगवान की प्रसन्नता प्राप्त होती है.
भाई दूज क्या है? बहन अपने भाई के लिए यह व्रत करती है. इस दिन बहनें गोधन कुटाई करती हैं. इसमें तैयार की गई आकृति पर कांटा चुभाया जाता है ताकि भाई के दुश्मनों का नाश हो. इसके अलावा भाई के लंबी आयु और बेहतर स्वास्थ्य के लिए बजरी खिलाया जाता है. बहन कच्चा चना, नारियल जैसे बजरी खिलाती है ताकि भाई का शरीर मजबूत रहे.
भाई दूज की मान्यताएं: भाइयों के लंबी उम्र की कामना और भाइयों के शत्रुओं का नाश हो इसकी कामना को लेकर बहन अपने भाइयों के लिए भाई दूज का त्योहार करती हैं. उत्तर बिहार के जिलों में इसे गोधन कुटाई का त्योहार भी कहा जाता है. मान्यता है कि इस दिन यमुना में स्नान करने से मृत्यु के बाद यमलोक नहीं जाना पड़ता है और उन्हें सीधे मोक्ष मिलती है.
भाई दूज की कथा:डॉ मुक्ति कुमार झा बताते हैं कि सूर्य की पत्नी संध्या के दो संतान थे. एक यम और दूसरी यमुना. सूर्य की तेज के कारण संध्या साथ सह नहीं पाई और उन्होंने अपनी एक छाया तैयार करके उसे अपने दोनों बच्चों को सौंप दिया. संध्या की छाया को दोनों बच्चों से अधिक प्रेम नहीं थे, लेकिन दोनों बच्चों में आपस में बहुत प्रेम और स्नेह था.