श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर में आरक्षण नीति को लेकर उठे विवाद ने अलगाववादी मीरवाइज उमर फारूक समेत राजनीतिक दलों को एकजुट कर दिया है. सत्तारूढ़ नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के अलावा निर्दलीय विधायक और मीरवाइज उमर फारूक के प्रतिनिधियों समेत राजनीतिक दलों का यह जमावड़ा सोमवार को मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के आवास के बाहर इकट्ठा हुआ.
इस दौरान सांसद आगा रूहुल्लाह ने नीति को युक्तिसंगत बनाने के लिए दबाव डालने वाले छात्रों के एक समूह में शामिल हो गए. छात्रों को संबोधित करते हुए रूहुल्लाह ने कहा कि वह उनके साथ इसलिए शामिल हुए हैं, क्योंकि वे आरक्षण नीति पर जम्मू-कश्मीर सरकार की कैबिनेट उप समिति से संतुष्ट नहीं हैं.
सत्तारूढ़ नेशनल कॉन्फ्रेंस ने पिछले महीने शिक्षा मंत्री सकीना इटू के नेतृत्व में तीन मंत्रियों का पैनल बनाया था और नीति को हाई कोर्ट में भी चुनौती दी थी. रूहुल्लाह ने कहा, "मैंने आपके साथ खड़े होने का वादा किया था और आज हम अधिकार मांगने के लिए यहां आए हैं. हम किसी भी समूह का आरक्षण नहीं छीनना चाहते, लेकिन हम जनसंख्या, प्रतिशत या सुप्रीम कोर्ट के निर्देश जैसे मानदंडों के आधार पर रिजर्वेशन चाहते हैं."
इंद्रा साहनी फैसले में आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत
सुप्रीम कोर्ट ने 1992 में अपने ऐतिहासिक इंद्रा साहनी फैसले में आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत तय की थी. हालांकि तमिलनाडु, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों ने इस सीमा का उल्लंघन किया है फिर भी वे न्यायिक कानून की जांच के दायरे में हैं, लेकिन नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में जम्मू-कश्मीर आरक्षण नीति 60 प्रतिशत से अधिक है, जबकि भारतीय जनता पार्टी (BJP) की अगुवाई वाली सरकार ने 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले कोटा में 14 प्रतिशत की वृद्धि की है, जिससे ओपन मेरिट आबादी के लिए अवसर कम हो गए हैं.
मामले में सत्तारूढ़ नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अपने मैनिफेस्टो में नीति की समीक्षा करने की कसम खाई थी. रूहुल्लाह ने कहा, "हम यहां चुनी हुई सरकार के लिए आए हैं और मैं उनके (छात्रों) संघर्ष में उनके साथ हूं. लोगों और छात्रों की चिंताओं और मांगों को गंभीरता से लिया जाना चाहिए और सरकार से रिजल्ट ओरिएंटेड जुड़ाव चाहिए. मैं इसे सुविधाजनक बनाने के लिए यहां आया हूं."
अनुच्छेद 370 को हटाने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बदलने के बाद अपनी ही पार्टी के खिलाफ खड़े होने के बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस के वरिष्ठ नेता ने लोगों के बीच लोकप्रियता हासिल की है. अब छात्रों ने भी आरक्षण के मुद्दे पर उनसे उम्मीदें लगा रखी हैं.
किसी भी श्रेणी के आरक्षण के खिलाफ नहीं
रूहुल्लाह ने पिछले पांच साल पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उन्होंने 'तानाशाही' को समाप्त करने के लिए मतदान किया. रूहुल्लाह ने कहा, "हम हिंसा या लोकतांत्रिक तरीके नहीं चाहते हैं, लेकिन लोकतांत्रिक तरीकों से जवाब देंगे." रूहुल्लाह ने ईटीवी भारत को बताया कि वे किसी भी श्रेणी के आरक्षण के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन चाहते हैं कि ओपन मेरिट वाले छात्र वंचित न हों. सरकार को इस मुद्दे का समाधान खोजना चाहिए.
समानता के आधार पर आरक्षण
उन्होंने कहा, "आइए हम भारत सरकार को एक तर्कसंगत आरक्षण नीति की सिफारिश करें, क्योंकि अंतिम निर्णय उन्हें ही लेना है. जम्मू-कश्मीर सरकार की कैबिनेट समिति को एक तर्कसंगत आरक्षण नीति का सुझाव देने वाला दस्तावेज तैयार करना चाहिए." दूसरी ओर पीडीपी नेता इल्तिजा मुफ्ती ने कहा कि वे यहां राजनीति करने नहीं आई हैं, बल्कि समानता के आधार पर आरक्षण चाहती हैं, न कि भेदभाव के आधार पर.
उन्होंने कहा, "हमें उम्मीद है कि जो सरकार भारी जनादेश और वादे के साथ सत्ता में आई है, वह आरक्षण को तर्कसंगत बनाएगी. हमें उम्मीद है कि एनसी सरकार समयबद्ध तरीके से अपने वादों को पूरा करेगी." आरक्षण में न्याय और निष्पक्षता की मांग करते हुए घाटी के प्रमुख मौलवी मीरवाइज उमर फारूक ने कहा कि अगर उन्हें अनुमति दी जाए तो वे विरोध प्रदर्शन में शामिल होना चाहेंगे.