प्रयागराज: संगम नगरी में महाकुंभ मेले में एक तरफ जहां करोड़ों श्रद्धालु पुण्य और आस्था की डुबकी लगाने पहुंच रहे हैं. वहीं तम्बुओं के इस शहर में एक महीने तक दिन रात रह कर कड़े नियम संयम का पालन करते हुए करीब दस लाख श्रद्धालु संत महात्मा कल्प वास कर रहे हैं. संगम नगरी में लगने वाले माघ मेले के मुकाबले कई गुना ज्यादा लोग महाकुंभ में कल्पवास करने आते हैं. मान्यता है कि तीर्थराज प्रयागराज में एक माह कल्पवास करने से एक कल्प यानी 4 करोड़ 32 लाख साल तक तक तप करने के बराबर फल की प्राप्ति होती है. इस दौरान पौष पूर्णिमा से लेकर माघी पूर्णिमा तक गंगा किनारे तंबुओं में रहकर श्रद्धालु मां गंगा की उपासना करते हुए कल्पवास करते हैं.
सदियों पुरानी है कल्पवास की परंपरा :महाकुंभ की धरती प्रयागराज में गंगा की रेती पर लगने वाले माघ मेले में कल्पवास करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. ऐसी मान्यता है कि प्रयागराज में कल्पवास करने वालों के घर परिवार पर मां गंगा का आशीर्वाद बना रहता है. इससे घर में सुख शांति का वास होता है और मां के भक्तों को मोक्ष की भी प्राप्ति होती है. यही वजह है कि प्रयागराज माघ मेले में देश के कई राज्यों से आकर हर साल हजारों परिवार कल्पवास करते हैं. महीने भर तक के कल्पवास के दौरान श्रद्धालु निरंतर एक माह तक गंगा स्नान, जप तप, ध्यान व पूजा पाठ करते हैं. इसके साथ ही कल्पवासी तमाम शिविरों में जाकर अलग अलग शिविरों में कथा प्रवचन सुनने जाते हैं. पौष पूर्णिमा के स्नान पर्व के दिन गंगा स्नान के बाद संकल्प पूजा के साथ कल्पवास की शुरुआत की जाती है. जबकि माघी पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान के बाद पूर्णाहुति हवन करके कल्पवास का समापन होता है.
मोक्ष की कामना लेकर करते हैं कल्पवास :प्रयागराज में कई सालों से निरन्तर आने वाले अखिल भारतीय दंडी सन्यासी परिषद के संरक्षक स्वामी महेशाश्रम महाराज बताते हैं कि प्रयागराज सभी तीर्थों का राजा होने के साथ ही ब्रह्मा जी के यज्ञ की धरती है. उन्होंने पृथ्वी का पहला यज्ञ इसी प्रयागराज में किया था. इसके साथ ही भगवान विष्णु यहां पर अक्षय वट के रूप में स्वयं विराजमान है. रामायण और अन्य ग्रंथों में भी इस बात का वर्णन मिलता है. इसके अनुसार माघ महीने में यहां पर सारे देवी देवताओं का वास होता है. यही कारण है कि इस पुण्य की धरती पर माघ महीने में कल्पवास करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है.