नई दिल्ली:उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (SP), पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस (TMC) और तमिलनाडु में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) दुर्जेय ताकतों के रूप में उभरे. उनके मजबूत प्रदर्शन ने समर्थन जुटाने और जमीनी स्तर पर मतदाताओं से जुड़ने की उनकी क्षमता को प्रदर्शित किया. लोकसभा चुनाव में सपा ने 37 सीटें हासिल कीं, टीएमसी ने 29 सीटें जीतीं और डीएमके ने 22 सीटें जीतीं, जिससे भाजपा के प्रभुत्व को प्रभावी ढंग से चुनौती मिली और विपक्ष की ताकत बढ़ी.
राज्य विधानसभा चुनावों ने क्षेत्रीय दलों के उदय को और रेखांकित किया. झारखंड में हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) ने कांग्रेस और अन्य दलों के साथ गठबंधन में 81 में से 56 सीटें हासिल करके महत्वपूर्ण जीत हासिल की. इसी तरह आंध्र प्रदेश में चंद्र बाबू नायडू के नेतृत्व वाली तेलुगु देशम पार्टी (TDP) ने 106 विधानसभा सीटें जीतकर उल्लेखनीय वापसी की. इन जीतों ने राज्य-स्पेसिफिक मुद्दों को संबोधित करने और जमीनी स्तर पर मतदाताओं से जुड़ने में क्षेत्रीय दलों की प्रभावशीलता को उजागर किया.
जैसे-जैसे भारत आगे बढ़ेगा, क्षेत्रीय दलों की भूमिका और भी महत्वपूर्ण होती जाएगी. 2024 के चुनावों में उनकी सफलता क्षेत्रीय नेतृत्व के महत्व और राष्ट्रीय दलों के लिए स्थानीय मुद्दों और निर्वाचन क्षेत्रों के साथ अधिक सार्थक रूप से जुड़ने की आवश्यकता को रेखांकित करती है. भारतीय राजनीति के भविष्य में गठबंधन सरकारों और क्षेत्रीय गठबंधनों पर अधिक जोर दिया जाएगा, जिसमें क्षेत्रीय दल नीति और शासन को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे.
भाजपा के प्रभुत्व के लिए चुनौती
यह बदलाव भगवा पार्टी के राष्ट्रीय प्रभुत्व को चुनौती देता है. बिहार से लेकर आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु से लेकर पश्चिम बंगाल तक क्षेत्रीय खिलाड़ियों ने न केवल अपनी पैठ मजबूत की, बल्कि जमीनी स्तर पर शासन, कल्याणकारी योजनाओं और संघीय सिद्धांतों पर ध्यान केंद्रित करके चुनावी कथानक को भी आकार दिया. यह बदलाव बीजेपी के लिए भारत के जटिल राजनीतिक इको सिस्टम में अपना प्रभाव बनाए रखने के लिए अपनी रणनीति को फिर से जांचने की आवश्यकता का संकेत देता है.
2024 के चुनावों से एक महत्वपूर्ण सीख गठबंधन की राजनीति का बढ़ता महत्व है. आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू और बिहार में नीतीश कुमार जैसे नेताओं ने सेंट्रलाइज नेचर के खिलाफ समर्थन जुटाने में अपनी योग्यता साबित की है, जिससे शासन में क्षेत्रीय दलों की अपरिहार्यता को बल मिला है. भाजपा ने पारंपरिक रूप से अपने सेंट्रलाइज दृष्टिकोण पर जोर देते हुए, अब केंद्र और राज्यों दोनों में अपने क्षेत्रीय गठबंधन सहयोगियों को ज्यादा ऑटोनॉमी और राजनीतिक स्थान देने की तत्काल आवश्यकता का सामना कर रही है.
इसी तरह भाजपा को अपने विजन और नेतृत्व को फिर से परिभाषित करने में निवेश करना चाहिए. राष्ट्रीय शासन का वह मॉडल जिसने 2014 से उसे बार-बार जीत दिलाई, अब शायद पर्याप्त न हो. क्षेत्रीय दलों द्वारा स्थानीय आकांक्षाओं को पूरा करने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन करने के साथ भाजपा को एक नया विजन पेश करना चाहिए, जो राष्ट्रीय प्राथमिकताओं को क्षेत्रीय आवश्यकताओं के साथ जोड़ता हो. इसमें अपने सहयोगियों के नेतृत्व वाली राज्य सरकारों के साथ मजबूत सहयोग को बढ़ावा देना शामिल है.
क्षेत्रवाद के रीसर्जन वाले युग में भाजपा की अडेप्टिबलिटी महत्वपूर्ण होगी. एक संतुलित दृष्टिकोण जो अपने सहयोगियों की ऑटोनोमी का सम्मान करता है. साथ ही एक ऐसा विजन जो विभिन्न क्षेत्रों में प्रतिध्वनित होता है, यह निर्धारित करेगा कि क्या यह आने वाले वर्षों में भारत की लीडिंग राजनीतिक शक्ति के रूप में अपनी स्थिति को बनाए रख सकता है.
क्षेत्रीय सहयोगियों को अपनाने की जरूरत
सपा, टीएमसी और डीएमके जैसी क्षेत्रीय पार्टियों ने अपने-अपने राज्यों में बीजेपी का प्रभावी ढंग से मुकाबला किया है. यह बदलाव कांग्रेस के लिए अपनी रणनीति को फिर से तय करने और क्षेत्रीय सहयोगियों को ज़्यादा जगह देने की जरूरत को रेखांकित करता है. कई राज्यों में कांग्रेस की गिरावट और अपने दम पर बहुमत हासिल करने में असमर्थता, विपक्ष की रणनीति में क्षेत्रीय दलों के महत्व को उजागर करती है. उत्तर प्रदेश में सपा की सफलता, पश्चिम बंगाल में टीएमसी की मजबूती और तमिलनाडु में डीएमके का प्रभुत्व दर्शाता है कि कैसे ये पार्टियां स्थानीय मुद्दों के साथ तालमेल बिठाकर मतदाताओं को लामबंद कर रही हैं.
भाजपा को प्रभावी ढंग से चुनौती देने के लिए कांग्रेस को इंडिया ब्लॉक के भीतर ज्यादा समावेशी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए. इसका मतलब है क्षेत्रीय दलों की ताकत को पहचानना और उन्हें निर्णय लेने की प्रक्रियाओं और चुनावी रणनीतियों में ज्यादा प्रमुखता देना. सहयोगात्मक माहौल को बढ़ावा देकर और अपने क्षेत्रीय सहयोगियों की ताकत का फायदा उठाकर, कांग्रेस एक ज्वाइंट फ्रंट पेश कर सकती है और भाजपा के प्रभाव का मुकाबला करने के लिए विपक्ष की क्षमता को बढ़ा सकती है.