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दिल्ली चुनाव : प्रवासियों पर टिकी निगाहें, नतीजों को कर सकते हैं प्रभावित - DELHI ASSEMBLY ELECTION

दिल्ली चुनाव में सभी पार्टियों की निगाहें प्रवासियों पर टिकी हैं. ये कई सीटों पर नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं.

DELHI ASSEMBLY ELECTION
दिल्ली विधानसभा चुनाव. (ETV Bharat)
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By Dipankar Bose

Published : Feb 4, 2025, 5:18 PM IST

हैदराबादः 23 फरवरी को जर्मन लोग अगले चार वर्षों के लिए 630 सीटों वाले बुंडेस्टैग का चुनाव करेंगे. दिलचस्प बात यह है कि जर्मन मतदाताओं की कुल संख्या में से वाम दल सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी, दक्षिणपंथी क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन और क्रिश्चियन सोशल यूनियन (CSU) या ग्रीन पार्टी में से किसी एक को चुनने के लिए मतदान करेंगे. इनमें लगभग 71 लाख अप्रवासी वोटर होंगे. यह कुल वोटरों का आठवां हिस्सा है. इनमें उत्तरी अफ्रीका, मध्य एशिया, तुर्की या यूक्रेन के अप्रवासी वहां के मूल निवासियों के साथ अपने प्रतिनिधियों को चुनेंगे. ये वोटर इस आधार पर वोट करेंगे जो जर्मनी की मुद्रास्फीति, आवास, सामाजिक, आर्थिक और सुरक्षा चुनौतियों का समाधान करने में सक्षम होंगे.

जर्मनी में प्रवासी वोटरों की स्थितिः लेकिन, दूर देश में हो रहे चुनाव की बात हम क्यों कर रहे हैं, जबकि हमारी राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में विधानसभा चुनाव हो रहा है? इसका जवाब 'बाहरी' शब्द के आंकड़ों में छिपा है. हालांकि जर्मनी के चुनाव और 70 सीटों वाली दिल्ली विधानसभा चुनाव में कोई मेल नहीं है. फिर भी जर्मन प्रवासियों की तरह दिल्ली के करीब 1.55 करोड़ से ज़्यादा मतदाताओं में 60 लाख से ज़्यादा मतदाता अंतर-राज्यीय प्रवासी हैं. ये वोटर काफ़ी हद तक दिल्ली की किस्मत तय करते हैं.

Delhi assembly election
आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल, दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी ने सोमवार को रोड शो किया. (IANS)

दिल्ली में प्रवासी वोटरों की स्थितिः लगभग 1,483 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में बसी दिल्ली में 2011 की जनगणना के अनुसार महाराष्ट्र के बाद सबसे ज़्यादा प्रवासी रहते हैं. महाराष्ट्र, दिल्ली की तुलना में जनसंख्या और क्षेत्रफल दोनों के मामले में बहुत बड़ा राज्य है. इसलिए, कोई मुकाबला नहीं है. लेकिन, कालिंदी कुंज की गंदी जगहों या यमुना किनारे रहने वाले प्रवासी या मजनू-ला-टिल्ला के आस-पास या जंगपुरा की झुग्गियों या नरेला या बुराड़ी की विशाल बस्तियों में रहने वाले बड़ी संख्या में प्रवासी दिल्ली के 70 विधानसभा क्षेत्रों में मतदान केंद्रों के बाहर खड़े होते हैं. दिल्ली में कोई भी चुनाव उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड से आए प्रवासी लोगों के बिना संभव नहीं है. ये लोग बेहतर शिक्षा, बेहतर आजीविका और जीवन यापन करने के लिए दिल्ली में बस गए हैं. ये पूर्वांचली या पूर्व से आए लोग हैं.

Delhi assembly election
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को सोमवार को नई दिल्ली में भाजपा उम्मीदवार के समर्थन में एक सार्वजनिक रैली के दौरान 'हल' भेंट किया गया. (IANS)

पूर्वांचली वोटरों को नजरअंदाज करना मुश्किलः दिल्ली चुनावों में अपनी किस्मत आजमाने वाला कोई भी राजनीतिक दल पूर्वांचलियों को नजरअंदाज नहीं कर सकता. कुछ अनुमानों के अनुसार पूर्वांचलियों की संख्या दिल्ली के मतदाताओं के लगभग 25 प्रतिशत के बराबर है, जो एनसीटी के बड़े हिस्से में फैले हुए हैं. उनमें से कई जेजे कॉलोनियों में रहते हैं. जेजे का मतलब हिंदी में झुग्गी-झोपड़ी होता है, यह झुग्गियों को बताने का एक स्मार्ट तरीका है. चुनाव का मौसम आते ही, जेजे कॉलोनियों और पूर्वांचलियों के निवासी सभी राजनीतिक दलों के प्रिय बन जाते हैं. कारण, दिन के उजाले की तरह स्पष्ट है. पूर्वांचलियों का दिल्ली की लगभग 27 विधानसभा सीटों पर दबदबा रखते हैं. लगभग 13 विधानसभा सीटों पर वे प्रभावी रूप से बहुमत वाली ताकत रखते हैं.

Delhi assembly election
राहुल गांधी ने सोमवार, 03 फरवरी को कालकाजी निर्वाचन क्षेत्र से पार्टी उम्मीदवार अलका लांबा के समर्थन में रोड शो किया. (IANS)

पूर्वांचली वोटरों को रिझाने का प्रयासः इसलिए, जब आम आदमी पार्टी (आप) जैसी 'राजनीतिक स्टार्टअप', सात पूर्वांचली चेहरों को उम्मीदवार बनाती है, तो 'बाहरी' बेशकीमती 'अंदरूनी' बन जाते हैं. केवल आप ही नहीं, बल्कि इसके दो मुख्य प्रतिद्वंद्वी भाजपा और कांग्रेस भी पीछे नहीं हैं. भाजपा ने बिहार के एनडीए सहयोगियों, जनता दल (यूनाइटेड) और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के लिए एक-एक सीट छोड़ते हुए लगभग आठ पूर्वांचली उम्मीदवारों को टिकट दिया है. भाजपा ने दो सहयोगी दलों को जो सीटें आवंटित की हैं वो क्रमशः बुराड़ी और देवली हैं, जहां पूर्वांचली आबादी निर्णायक है.

क्यों महत्वपूर्ण हैं प्रवासी वोटरः अब, दिल्ली के मतदाताओं में से लगभग 25 प्रतिशत, जो कि मोटे तौर पर 40 लाख से ज़्यादा लोग हैं एक ही क्षेत्र से आते हैं और प्रवासी हैं. इसलिए किसी भी चुनाव से पहले किसी भी कीमत पर उनका ध्यान आकर्षित करना एक तरह की मजबूरी बन जाती है. यहां मुफ़्त या रियायतों का मुद्दा आता है जो उस पूर्वांचली ब्लॉक के एक बड़े हिस्से को एक खास पार्टी की जेब में डाल सकता है. हर कोई उस बेताब दौड़ में शामिल है.

Delhi assembly election
दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले ईवीएम और अन्य चुनाव संबंधी सामग्री एकत्र करने के बाद मतदान अधिकारी अपने-अपने मतदान केंद्रों के लिए रवाना हुए. (IANS)

दिल्ली की सत्ता से भाजपा दूरः 2014 से ही भाजपा केंद्र की राजनीति में प्रमुख पार्टी रही है. भले ही वे दिल्ली से सत्ता चला रही है, लेकिन पिछले 26 सालों से वे उसी दिल्ली की सत्ता से बाहर है. पिछली बार जब दिल्ली में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर भगवा रंग चढ़ा था, तब सुषमा स्वराज सत्ता की बागडोर संभाल रही थीं. उसके बाद से शीला दीक्षित और कांग्रेस फिर उसके बाद अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी आप सत्ता में रही. इसलिए, 'कमल' का हताशा और भी बढ़ गया है.

Delhi assembly election
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने संगम विहार विधानसभा क्षेत्र से भाजपा उम्मीदवार चंदन कुमार चौधरी के समर्थन में सोमवार को रोड शो किया. (IANS)

छठ पूजा तुरुप का पत्ताः पूर्व से आए प्रवासियों का दिल जीतने के लिए छठ पूजा को आप और भाजपा दोनों ने ही तुरुप के पत्ते की तरह खेला है. आप सरकार ने छठ पूजा को राजकीय अवकाश घोषित किया और पूजा के लिए यमुना नदी के किनारे छठ घाटों के निर्माण पर लगातार ध्यान दे रही है. हर साल कॉलोनियों में कृत्रिम तालाब बनाए जाते हैं, जिससे छठ पूजा अनुष्ठानों में सुविधा होती है. केजरीवाल और उनकी पार्टी के लिए, पूर्वांचली प्रवासियों से मिलने वाला लाभ स्पष्ट है.

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दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले ईवीएम और अन्य चुनाव संबंधी सामग्री एकत्र करने के बाद मतदान अधिकारी अपने-अपने मतदान केंद्रों के लिए रवाना हुए. (IANS)

स्टार प्रचारकों में पूर्वांचल के नेताः भाजपा ने आप का मुकाबला करने के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा के अलावा उत्तर प्रदेश और बिहार के प्रचारकों की पूरी फौज तैनात की है. प्रधानमंत्री मोदी ने अपने चुनावी भाषण में आप और खास तौर पर केजरीवाल पर "झूठ फैलाने" का आरोप लगाया. उन्होंने वादा किया कि दिल्ली में कोई झुग्गी-झोपड़ी नहीं तोड़ी जाएगी. छठ के दौरान घरों में साफ पानी और स्वच्छ यमुना उपलब्ध कराने में विफल रहने के लिए आप पर निशाना साधा. उन्होंने जोर देकर कहा कि अगर भाजपा दिल्ली में सत्ता में आती है तो अनधिकृत कॉलोनियों को वैध बनाने के साथ-साथ बुनियादी सुविधाएं भी दी जाएंगी. कांग्रेस तो एक कदम और आगे बढ़ गई है और उसने दिल्ली में सत्ता में आने पर पूर्वांचलियों के लिए अलग मंत्रालय बनाने का वादा किया है.

Delhi assembly election
आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल, दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी ने सोमवार को रोड शो किया. (IANS)

मुफ्त योजना पर सबकी नजरः मुफ़्त चीज़ों की बात करना, जिसे मोदी पहले 'रेवड़ी' कहना पसंद करते थे, कई राज्यों में भाजपा को बार-बार परेशान करने लगा है. ममता बनर्जी ने 2021 के राज्य चुनावों से पहले महिलाओं के लिए प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण योजना लक्ष्मी भंडार की शुरुआत की और बंगाल में भाजपा को खत्म कर दिया. उसके बाद से अन्य दलों ने भी इसका अनुसरण किया. सबसे ताज़ा झटका झारखंड से आया है, जहां हेमंत सोरेन ने महिलाओं के लिए प्रत्यक्ष नकद लाभ योजना, मैया सम्मान योजना के साथ भाजपा को धूल चटा दी.

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दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले ईवीएम और अन्य चुनाव संबंधी सामग्री एकत्र करने के बाद मतदान अधिकारी अपने-अपने मतदान केंद्रों के लिए रवाना हुए. (IANS)

महिलाओं के लिए योजनाः भाजपा ने आखिरकार इसे समझ लिया है और हाल ही में संपन्न महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में लाडली बहना योजना जैसे नामों के साथ लाभ हस्तांतरण का अपना संस्करण लागू करने की कोशिश की है. लेकिन, जब दिल्ली की बात आती है, तो भाजपा और कांग्रेस के सामने चुनौती महिलाओं के लिए केवल एक साधारण नकद लाभ हस्तांतरण नहीं है. उन्हें गरीबों के लिए पहले से ही चल रही AAP की मुफ़्त बिजली, मुफ़्त पानी, मुफ़्त शिक्षा और मुफ़्त स्वास्थ्य सेवा का मुकाबला करना है. इसके अलावा महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा और ऑटो रिक्शा चालकों, निवासियों के कल्याण संघों और अन्य लोगों के लिए क्षेत्र विशेष लाभ का वादा भी शामिल है. यह वास्तव में एक तरह की दौड़ है, मुफ्त चीजों की सबसे बड़ी संख्या देने वालों के बीच.

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प्रियंका गांधी ने सोमवार को जंगपुरा में कांग्रेस उम्मीदवार फरहाद सूरी के समर्थन में डोर-टू-डोर अभियान चलाया. (IANS)

दिल्ली का प्रमुख मुद्दा क्या हैः इस अप्रत्याशित लाभ के बीच, दिल्लीवासियों की सबसे बड़ी चिंता का विषय पीछे छूट गया है वो है- प्रदूषण का खतरनाक स्तर. दिल्ली के लिए हाई वोल्टेज चुनाव प्रचार के दौरान राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के प्रदूषण स्तर को कम करने के तरीकों और साधनों पर जानबूझकर चुप्पी साधी गई है. भारत की राजधानी दिल्ली एक ऐसी जगह है जहां राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और उनके अधिकांश मंत्रिपरिषद के सदस्य रहते हैं. यह अलग बात है कि दिल्ली के अधिकांश वीवीआईपी और वीआईपी ने एयर प्यूरीफायर लगवा रखे हैं. आम लोगों के फेफड़े सबसे ज़्यादा प्रभावित हो रहे हैं, जिनमें से बड़ी संख्या में वे प्रवासी हैं जिन्हें पार्टियां सचिवालय में प्रवेश पाने के लिए सबसे अच्छा विकल्प मानती हैं.

Delhi assembly election
अरविंद केजरीवाल अपने परिवार के साथ मंगलवार को कनॉट प्लेस के हनुमान मंदिर में पूजा-अर्चना करते हुए. (IANS)

8 फरवरी का है इंतजारः फरवरी का महीना जर्मनों के लिए एक पार्टी या गठबंधन चुनने के लिए निर्णायक होगा जो उनका नेतृत्व करेगा. वहां के अप्रवासी इस प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. दिल्ली के लिए, प्रवासी पहले से ही किंगमेकर हैं. वे अगले पांच सालों के लिए दिल्ली का भविष्य तय करेंगे जब 8 फरवरी को वोटों की गिनती होगी. हालांकि, यह सवाल कि क्या पूर्वांचली या दिल्ली के प्रवासी मौसमी वोट बैंक बनकर रह जाएंगे या एनसीटी की भविष्य की नीतियों में वास्तविक हितधारक बन जाएंगे, लंबे समय तक लटका रहेगा.

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वजीरपुर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस उम्मीदवार रागिनी नायक ने सोमवार को रोड शो किया. (IANS)

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हैदराबादः 23 फरवरी को जर्मन लोग अगले चार वर्षों के लिए 630 सीटों वाले बुंडेस्टैग का चुनाव करेंगे. दिलचस्प बात यह है कि जर्मन मतदाताओं की कुल संख्या में से वाम दल सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी, दक्षिणपंथी क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन और क्रिश्चियन सोशल यूनियन (CSU) या ग्रीन पार्टी में से किसी एक को चुनने के लिए मतदान करेंगे. इनमें लगभग 71 लाख अप्रवासी वोटर होंगे. यह कुल वोटरों का आठवां हिस्सा है. इनमें उत्तरी अफ्रीका, मध्य एशिया, तुर्की या यूक्रेन के अप्रवासी वहां के मूल निवासियों के साथ अपने प्रतिनिधियों को चुनेंगे. ये वोटर इस आधार पर वोट करेंगे जो जर्मनी की मुद्रास्फीति, आवास, सामाजिक, आर्थिक और सुरक्षा चुनौतियों का समाधान करने में सक्षम होंगे.

जर्मनी में प्रवासी वोटरों की स्थितिः लेकिन, दूर देश में हो रहे चुनाव की बात हम क्यों कर रहे हैं, जबकि हमारी राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में विधानसभा चुनाव हो रहा है? इसका जवाब 'बाहरी' शब्द के आंकड़ों में छिपा है. हालांकि जर्मनी के चुनाव और 70 सीटों वाली दिल्ली विधानसभा चुनाव में कोई मेल नहीं है. फिर भी जर्मन प्रवासियों की तरह दिल्ली के करीब 1.55 करोड़ से ज़्यादा मतदाताओं में 60 लाख से ज़्यादा मतदाता अंतर-राज्यीय प्रवासी हैं. ये वोटर काफ़ी हद तक दिल्ली की किस्मत तय करते हैं.

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आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल, दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी ने सोमवार को रोड शो किया. (IANS)

दिल्ली में प्रवासी वोटरों की स्थितिः लगभग 1,483 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में बसी दिल्ली में 2011 की जनगणना के अनुसार महाराष्ट्र के बाद सबसे ज़्यादा प्रवासी रहते हैं. महाराष्ट्र, दिल्ली की तुलना में जनसंख्या और क्षेत्रफल दोनों के मामले में बहुत बड़ा राज्य है. इसलिए, कोई मुकाबला नहीं है. लेकिन, कालिंदी कुंज की गंदी जगहों या यमुना किनारे रहने वाले प्रवासी या मजनू-ला-टिल्ला के आस-पास या जंगपुरा की झुग्गियों या नरेला या बुराड़ी की विशाल बस्तियों में रहने वाले बड़ी संख्या में प्रवासी दिल्ली के 70 विधानसभा क्षेत्रों में मतदान केंद्रों के बाहर खड़े होते हैं. दिल्ली में कोई भी चुनाव उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड से आए प्रवासी लोगों के बिना संभव नहीं है. ये लोग बेहतर शिक्षा, बेहतर आजीविका और जीवन यापन करने के लिए दिल्ली में बस गए हैं. ये पूर्वांचली या पूर्व से आए लोग हैं.

Delhi assembly election
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को सोमवार को नई दिल्ली में भाजपा उम्मीदवार के समर्थन में एक सार्वजनिक रैली के दौरान 'हल' भेंट किया गया. (IANS)

पूर्वांचली वोटरों को नजरअंदाज करना मुश्किलः दिल्ली चुनावों में अपनी किस्मत आजमाने वाला कोई भी राजनीतिक दल पूर्वांचलियों को नजरअंदाज नहीं कर सकता. कुछ अनुमानों के अनुसार पूर्वांचलियों की संख्या दिल्ली के मतदाताओं के लगभग 25 प्रतिशत के बराबर है, जो एनसीटी के बड़े हिस्से में फैले हुए हैं. उनमें से कई जेजे कॉलोनियों में रहते हैं. जेजे का मतलब हिंदी में झुग्गी-झोपड़ी होता है, यह झुग्गियों को बताने का एक स्मार्ट तरीका है. चुनाव का मौसम आते ही, जेजे कॉलोनियों और पूर्वांचलियों के निवासी सभी राजनीतिक दलों के प्रिय बन जाते हैं. कारण, दिन के उजाले की तरह स्पष्ट है. पूर्वांचलियों का दिल्ली की लगभग 27 विधानसभा सीटों पर दबदबा रखते हैं. लगभग 13 विधानसभा सीटों पर वे प्रभावी रूप से बहुमत वाली ताकत रखते हैं.

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राहुल गांधी ने सोमवार, 03 फरवरी को कालकाजी निर्वाचन क्षेत्र से पार्टी उम्मीदवार अलका लांबा के समर्थन में रोड शो किया. (IANS)

पूर्वांचली वोटरों को रिझाने का प्रयासः इसलिए, जब आम आदमी पार्टी (आप) जैसी 'राजनीतिक स्टार्टअप', सात पूर्वांचली चेहरों को उम्मीदवार बनाती है, तो 'बाहरी' बेशकीमती 'अंदरूनी' बन जाते हैं. केवल आप ही नहीं, बल्कि इसके दो मुख्य प्रतिद्वंद्वी भाजपा और कांग्रेस भी पीछे नहीं हैं. भाजपा ने बिहार के एनडीए सहयोगियों, जनता दल (यूनाइटेड) और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के लिए एक-एक सीट छोड़ते हुए लगभग आठ पूर्वांचली उम्मीदवारों को टिकट दिया है. भाजपा ने दो सहयोगी दलों को जो सीटें आवंटित की हैं वो क्रमशः बुराड़ी और देवली हैं, जहां पूर्वांचली आबादी निर्णायक है.

क्यों महत्वपूर्ण हैं प्रवासी वोटरः अब, दिल्ली के मतदाताओं में से लगभग 25 प्रतिशत, जो कि मोटे तौर पर 40 लाख से ज़्यादा लोग हैं एक ही क्षेत्र से आते हैं और प्रवासी हैं. इसलिए किसी भी चुनाव से पहले किसी भी कीमत पर उनका ध्यान आकर्षित करना एक तरह की मजबूरी बन जाती है. यहां मुफ़्त या रियायतों का मुद्दा आता है जो उस पूर्वांचली ब्लॉक के एक बड़े हिस्से को एक खास पार्टी की जेब में डाल सकता है. हर कोई उस बेताब दौड़ में शामिल है.

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दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले ईवीएम और अन्य चुनाव संबंधी सामग्री एकत्र करने के बाद मतदान अधिकारी अपने-अपने मतदान केंद्रों के लिए रवाना हुए. (IANS)

दिल्ली की सत्ता से भाजपा दूरः 2014 से ही भाजपा केंद्र की राजनीति में प्रमुख पार्टी रही है. भले ही वे दिल्ली से सत्ता चला रही है, लेकिन पिछले 26 सालों से वे उसी दिल्ली की सत्ता से बाहर है. पिछली बार जब दिल्ली में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर भगवा रंग चढ़ा था, तब सुषमा स्वराज सत्ता की बागडोर संभाल रही थीं. उसके बाद से शीला दीक्षित और कांग्रेस फिर उसके बाद अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी आप सत्ता में रही. इसलिए, 'कमल' का हताशा और भी बढ़ गया है.

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छठ पूजा तुरुप का पत्ताः पूर्व से आए प्रवासियों का दिल जीतने के लिए छठ पूजा को आप और भाजपा दोनों ने ही तुरुप के पत्ते की तरह खेला है. आप सरकार ने छठ पूजा को राजकीय अवकाश घोषित किया और पूजा के लिए यमुना नदी के किनारे छठ घाटों के निर्माण पर लगातार ध्यान दे रही है. हर साल कॉलोनियों में कृत्रिम तालाब बनाए जाते हैं, जिससे छठ पूजा अनुष्ठानों में सुविधा होती है. केजरीवाल और उनकी पार्टी के लिए, पूर्वांचली प्रवासियों से मिलने वाला लाभ स्पष्ट है.

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मुफ्त योजना पर सबकी नजरः मुफ़्त चीज़ों की बात करना, जिसे मोदी पहले 'रेवड़ी' कहना पसंद करते थे, कई राज्यों में भाजपा को बार-बार परेशान करने लगा है. ममता बनर्जी ने 2021 के राज्य चुनावों से पहले महिलाओं के लिए प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण योजना लक्ष्मी भंडार की शुरुआत की और बंगाल में भाजपा को खत्म कर दिया. उसके बाद से अन्य दलों ने भी इसका अनुसरण किया. सबसे ताज़ा झटका झारखंड से आया है, जहां हेमंत सोरेन ने महिलाओं के लिए प्रत्यक्ष नकद लाभ योजना, मैया सम्मान योजना के साथ भाजपा को धूल चटा दी.

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महिलाओं के लिए योजनाः भाजपा ने आखिरकार इसे समझ लिया है और हाल ही में संपन्न महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में लाडली बहना योजना जैसे नामों के साथ लाभ हस्तांतरण का अपना संस्करण लागू करने की कोशिश की है. लेकिन, जब दिल्ली की बात आती है, तो भाजपा और कांग्रेस के सामने चुनौती महिलाओं के लिए केवल एक साधारण नकद लाभ हस्तांतरण नहीं है. उन्हें गरीबों के लिए पहले से ही चल रही AAP की मुफ़्त बिजली, मुफ़्त पानी, मुफ़्त शिक्षा और मुफ़्त स्वास्थ्य सेवा का मुकाबला करना है. इसके अलावा महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा और ऑटो रिक्शा चालकों, निवासियों के कल्याण संघों और अन्य लोगों के लिए क्षेत्र विशेष लाभ का वादा भी शामिल है. यह वास्तव में एक तरह की दौड़ है, मुफ्त चीजों की सबसे बड़ी संख्या देने वालों के बीच.

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अरविंद केजरीवाल अपने परिवार के साथ मंगलवार को कनॉट प्लेस के हनुमान मंदिर में पूजा-अर्चना करते हुए. (IANS)

8 फरवरी का है इंतजारः फरवरी का महीना जर्मनों के लिए एक पार्टी या गठबंधन चुनने के लिए निर्णायक होगा जो उनका नेतृत्व करेगा. वहां के अप्रवासी इस प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. दिल्ली के लिए, प्रवासी पहले से ही किंगमेकर हैं. वे अगले पांच सालों के लिए दिल्ली का भविष्य तय करेंगे जब 8 फरवरी को वोटों की गिनती होगी. हालांकि, यह सवाल कि क्या पूर्वांचली या दिल्ली के प्रवासी मौसमी वोट बैंक बनकर रह जाएंगे या एनसीटी की भविष्य की नीतियों में वास्तविक हितधारक बन जाएंगे, लंबे समय तक लटका रहेगा.

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वजीरपुर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस उम्मीदवार रागिनी नायक ने सोमवार को रोड शो किया. (IANS)

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