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केंद्रीय बजट 2025-26: 'वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के ध्यान महाकुंभ पर नहीं गया', जानें आगे क्या कहा... - BUDGET 2025

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में 2025-26 का केंद्रीय बजट पेश किया. लेखक बजट का कैसे विश्लेषण किया, जानें....

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महाकुंभ की तस्वीर और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Etv Bharat)

By Sanjay Kapoor

Published : Feb 1, 2025, 10:16 PM IST

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शनिवार को संसद में केंद्रीय बजट 2025-26 पेश किया. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट 2025-26 पेश किया जिसमें मध्यमवर्ग को आयकर में राहत और कृषि क्षेत्र को नए कदमों का प्रस्ताव दिया गया है. एक दिन पहले पेश किए गए आर्थिक सर्वेक्षण ने यह स्पष्ट कर दिया था कि पड़ोसी चीन के बारे में जागरूक होना और एक मैन्युफैक्चरिंग पावर के रूप में उभरना उनके लिए कितनी बड़ी चुनौती है.

मनमोहन सिंह, पी चिदंबरम और कई अन्य जैसे प्रतिष्ठित वित्त मंत्रियों द्वारा प्रस्तुत अतीत के आधार पर खुद को आंकने की कोशिश में वित्त मंत्री भूल गईं कि चल रहे मेगा धार्मिक आयोजन महाकुंभ ने राजस्व की कितनी संभावनाएं पैदा की हैं.

निर्मला ने जिस बारे में बात नहीं की, वह 144 सालों में पहली बार कुंभ मेले के आयोजन से देश में आने वाली संपदा की वृद्धि द्वारा रेखांकित विकास दर थी. यहां प्रयागराज में, लगभग 20 करोड़ लोग संगम में डुबकी लगा चुके हैं. इतना ही नहीं, प्रयागराज महाकुंभ में पारंपरिक स्नान के लिए जाने वाले करोड़ों श्रद्धालु जो अमेरिका और कनाडा की संयुक्त आबादी से भी अधिक हैं, ने 2.5 लाख करोड़ रुपये खर्च किए हैं और इस प्रक्रिया में देश के सकल घरेलू उत्पाद में 1 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

अजीब बात है कि, हमारे सकल घरेलू उत्पाद की प्रकृति को बदलने वाले इतने महत्वपूर्ण आयोजन (महाकुंभ) पर हमारे वित्त मंत्री की नजर नहीं गई. यहीं पर प्रधानमंत्री मोदी के नारे 'सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास' ने इस अवधारणा को सार्थक किया. देश के विभिन्न हिस्सों में ऐसे चार आयोजन करने और हर साल सकल घरेलू उत्पाद में 3 से 4 प्रतिशत वृद्धि और रोजगार के अवसर पैदा करने में क्या बुराई थी. इस तरह हम एआई के मोह में संख्याओं के इस खेल में चीन और संदेहवादी पश्चिम को मात दे सकते थे.

हालांकि, वित्त मंत्री के बजट में मध्यम वर्ग को खुश करने के लिए पर्याप्त था. सबसे बड़ी उम्मीद जो पूरी हुई वह यह थी कि, व्यक्तिगत आयकर के स्लैब में बदलाव किया गया. अब करदाताओं को 12 लाख रुपये तक कोई कर नहीं देना होगा. वहीं, अन्य स्लैब को भी सुव्यवस्थित किया गया. अकेले इस हस्तक्षेप से सरकार ने कर के रूप में लगभग 1.20 लाख करोड़ रुपये छोड़ने का फैसला किया और माना जा रहा है कि इससे खपत बढ़ेगी.

इससे मध्यम वर्ग के विरोधी खुश होंगे. सरकार को उम्मीद है कि, 5 फरवरी को होने वाले राज्य विधानसभा चुनावों में दिल्ली के बेचैन मतदाता भाजपा को वोट देंगे. कई मायनों में, बजट के साथ-साथ आयकरदाताओं को इस राहत की घोषणा का समय इससे बेहतर समय पर नहीं आ सकता था. हालांकि दिल्ली के मतदाता अलग-अलग तरीकों से हो रहे नकद ट्रांसफर जैसे मुफ्त उपहारों से बिगड़े हुए हैं, लेकिन भाजपा के समर्थक सीतारमण के बजट से उत्साहित होंगे.

रोजगार के बारे में क्या?
आर्थिक सर्वेक्षण में रोजगार पर कृत्रिम प्रभाव के हानिकारक प्रभाव के बारे में बात की गई थी. बजट इससे अवगत है और भविष्य की मांगों के लिए कार्यबल को तैयार करने के लिए नौकरी कौशल और अन्य तरीकों का समर्थन करने की कोशिश कर रहा है. सर्वेक्षणों में इस तथ्य को पुष्ट करने का प्रयास किया जा रहा है कि, नौकरी चाहने वालों के कौशल में सुधार हो रहा है. इसलिए यह कहा जा सकता है कि इन सर्वेक्षणों को गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिए.

साथ ही, बजट में कृषि समुदाय की कार्य स्थितियों में सुधार करने का भी प्रयास किया जा रहा है . यह इस ज्ञान से उपजा है कि, किसान अपने पारंपरिक व्यवसाय को छोड़कर जमीन बेच रहे हैं. बजट में बिहार को विशेष ध्यान देने के तरीके में कुछ राजनीति भी दिखाई देती है. एक नया ग्रीनफील्ड हवाई अड्डा बन रहा है और केंद्र सरकार ने मखाना बोर्ड के गठन की घोषणा की है, जो इस वस्तु के उत्पादन में लगे लोगों को बेहतर मूल्य दिलाने में मदद करेगा.

मखाना की लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है और पांच लाख परिवार इसकी खेती और प्रोसेसिंग से जुड़े हैं. बिहार पर जहां अन्य उपकार किए गए हैं, वहीं कुछ राज्यों को पीछे छोड़ दिया गया है. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने आश्चर्य जताया कि, आंध्र प्रदेश को पूरी तरह से नजरअंदाज क्यों किया गया है. दिलचस्प बात यह है कि आंध्र प्रदेश और इसकी सत्तारूढ़ पार्टी टीडीपी उन दो स्तंभों में से एक है, जिन पर केंद्र की भाजपा सरकार टिकी हुई है.

इस सरकार ने रोजगार बढ़ाने के लिए कुछ छोटे-मोटे वादे किए हैं, लेकिन कुछ सरकारी अधिकारी इसे 'बेकार बजट' कहते हैं. उन्हें लगता है कि ऐसी कई संभावनाएं थीं, जिन्हें सरकार ने उस समय नहीं तलाशा, जब वैश्विक संकट हमारे सामने था. जबकि आर्थिक सर्वेक्षण हमें सावधान करता है, बजट ऐसा करने में विफल रहता है. यह स्पष्ट है कि, सरकार रोजगार और उपभोग पैदा करने के अपने प्रयासों के बजाय महाकुंभ के आशीर्वाद पर अधिक निर्भर है.

(Disclaimer: इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. यहां व्यक्त तथ्य और राय ईटीवी भारत के विचारों को नहीं दर्शाते हैं.)

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