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15 अक्टूबर से होने वाले एससीओ शिखर सम्मेलन से पहले पाकिस्तान में उथल-पुथल

कराची एयरपोर्ट के पास 6 अक्टूबर हुए आत्मघाती हमले में दो चीनी नागरिक मारे गए, जिससे एससीओ बैठक से पहले पाकिस्तान को शर्मिंदगी उठानी पड़ी.

By Major General Harsha Kakar

Published : 4 hours ago

Pakistan embarrass Ahead Of SCO meeting October 15 after two chinese killed in suicide attack near Karachi Airport
कराची एयरपोर्ट के बाहर विस्फोट के बाद का दृश्य (AP)

नई दिल्ली: कराची के जिन्ना अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से चीनी इंजीनियरों को ले जा रहे वाहन पर हाल ही में हुए आत्मघाती हमले में दो चीनी समेत तीन लोगों की मौत हो गई और एक चीनी समेत कई लोग गंभीर रूप से घायल हो गए. पाकिस्तान में आतंकवादी हमलों की यह ताजा घटना है. यह आत्मघाती हमला ऐसे समय में हुआ है जब पाकिस्तान 15-16 अक्टूबर को इस्लामाबाद में एससीओ (शंघाई सहयोग संगठन) के राष्ट्र प्रमुखों के शिखर सम्मेलन की मेजबानी करने की तैयारी कर रहा है.

कराची एयरपोर्ट पर हुए आतंकवादी हमले ने पाकिस्तान की बेचैनी बढ़ा दी है, क्योंकि इस एयरपोर्ट की सुरक्षा सेना द्वारा की जा रही है. फिर भी आतंकवादी एक सुरक्षित क्षेत्र में घुसने में कामयाब हो गए, जो अपने आप में पाकिस्तान के लिए शर्मनाक है. बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) ने इस हमले की जिम्मेदारी लेते हुए कहा कि उसकी मजीद ब्रिगेड ने आत्मघाती हमले को अंजाम दिया.

पाकिस्तान ने शुरुआत में कहा था कि टैंकर में विस्फोट के कारण यह घटना हुई, लेकिन बाद में चीनी दूतावास ने इसे आत्मघाती हमला करार दिया. इस्लामाबाद स्थित चीनी दूतावास द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि आत्मघाती विस्फोट में जिस वाहन को निशाना बनाया गया, उसमें 'पोर्ट कासिम इलेक्ट्रिक पावर कंपनी (प्राइवेट) लिमिटेड के चीनी कर्मचारी सवार थे.' यह वही कंपनी है जिसके साथ पाकिस्तान का वित्त मंत्रालय ऋण की पुनर्संरचना पर बातचीत कर रहा है.

इस्लामाबाद में चीनी दूतावास ने मांग की है कि पाकिस्तान 'हमले की गहन जांच करे, अपराधियों को कड़ी सजा दे और पाकिस्तान में चीनी नागरिकों, संस्थानों और परियोजनाओं की सुरक्षा के लिए सभी जरूरी कदम उठाए जाएं.' पाकिस्तान सरकार इस बात से इतनी हिल गई कि प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ चीनी दूतावास में संवेदना व्यक्त करने पहुंचे और राजदूत से वादा किया कि वे व्यक्तिगत रूप से जांच की निगरानी करेंगे.

चीनी अखबार ने एक संपादकीय में उल्लेख किया, 'चीन और पाकिस्तान को आतंकवाद विरोधी और सुरक्षा सहयोग को और मजबूत करना चाहिए. पाकिस्तान में सीपीईसी परियोजनाओं पर आतंकवादी हमला होने पर चीन विरोधी ताकतों को खुशी (शैडेनफ्रॉयड) महसूस होती है. चीन एक बार फिर संकेत दे रहा था कि अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए पाकिस्तान में अपनी सेना तैनात करनी चाहिए. ऐसी तैनाती पाकिस्तान के लिए अपमानजनक होगी.

पाकिस्तान के पश्चिमी प्रांतों में आतंकवादी घटनाएं जारी हैं. सुरक्षा बलों के जवानों, आतंकवादियों और निर्दोष लोगों की मौत की खबरें रोजाना आ रही हैं. इन क्षेत्रों में सरकार के खिलाफ गुस्सा सातवें आसमान पर है.

वहीं, जेल में बंद पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी पीटीआई के विरोध प्रदर्शन को रोकने के लिए पाक सेना को एससीओ शिखर सम्मेलन के लिए इस्लामाबाद की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गई है. पाकिस्तान ने पहले ही इस्लामाबाद और आसपास के इलाकों में किसी भी तरह की भीड़ को रोकने के लिए धारा 144 लगा दी है. पाक नेतृत्व ने सही कहा है कि आतंकवाद में वृद्धि और पीटीआई के विरोध प्रदर्शन, जो ज्यादातर हिंसक हैं, का उद्देश्य एससीओ के सदस्य देशों के सामने मौजूदा सरकार को शर्मिंदा करना है.

हालांकि, अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने की कोशिश में पीटीआई ने एससीओ शिखर सम्मेलन के दौरान 15 अक्टूबर को इस्लामाबाद में शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन की घोषणा की है. पीटीआई के भीतर इतनी हताशा है कि खैबर पख्तूनख्वा के मुख्यमंत्री के सूचना सलाहकार मोहम्मद अली सैफ ने भारत के विदेश मंत्री को उनके विरोध प्रदर्शन में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया है. बाद में इसे अस्वीकार कर दिया गया.

एससीओ शिखर सम्मेलन में चीन का प्रतिनिधित्व चीनी प्रधानमंत्री ली कियांग करेंगे. इस दौरान वह शहबाज शरीफ से बातचीत करने वाले हैं, जिसमें पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज को अपने देश के सुरक्षा उपायों का बचाव करने में शर्मिंदगी उठानी पड़ेगी. रूस और पश्चिम एशिया सहित अन्य देश पाकिस्तान में निवेश करने में संकोच करेंगे.

इसके अलावा, सीपीईसी परियोजनाओं में कार्यरत चीनी इंजीनियरों पर यह पहला हमला नहीं है. इसी साल मार्च में, चीन द्वारा वित्तपोषित दासू जलविद्युत परियोजना पर हुए आत्मघाती हमले में पांच चीनी नागरिक और उनके चालक मारे गए थे. मई में, पाकिस्तान के उप-प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री मोहम्मद इशाक डार ने बीजिंग का दौरा किया और मार्च के हमले के लिए जिम्मेदार लोगों को पकड़ने का वादा किया. बाद में 11 निर्दोष लोगों को गिरफ्तार किया गया और उन्हें जिम्मेदारी स्वीकार करने के लिए मजबूर किया गया.

जब भी पाकिस्तान में आतंकवादी हमलों में चीनी नागरिक मारे गए हैं, चीन की तरफ से वित्तीय मुआवजे की मांग की गई है. इस बार मांग कितनी होगी, यह अज्ञात है. इसके अलावा, चीन ने धमकी दी है कि अगर पाकिस्तान ने पूरी तरह से सुरक्षा मुहैया नहीं कराई तो वह परियोजनाओं को धीमा कर देगा. बलूच सीपीईसी का विरोध कर रहे हैं क्योंकि यह उनके क्षेत्र में अतिक्रमण करता है. ग्वादर बंदरगाह को चीन को सौंपे जाने के खिलाफ उनके विरोध को नजरअंदाज कर दिया गया. सरकार उनकी चिंताओं पर चर्चा करने से इनकार करती है.

शायद आगामी एससीओ शिखर सम्मेलन के कारण पाकिस्तान के अधिकारियों ने भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ (RAW) को सीधे तौर पर जिम्मेदार नहीं ठहराया है. पाकिस्तान के योजना मंत्री अहसान इकबाल ने कहा, "इसमें कोई संदेह नहीं है कि कराची में आतंकवाद और राजनीतिक आतंकवाद के विरोध प्रदर्शन एक जैसे हैं." उन्होंने कहा कि 'पटकथा लेखक' वही व्यक्ति है जो एक तरफ विस्फोटक हमलों को अंजाम देने के लिए आतंकवादियों का इस्तेमाल कर रहा है, और दूसरी तरफ अराजकता फैलाने और पाकिस्तान के महत्वपूर्ण हितों को कमजोर करने के लिए पीटीआई का इस्तेमाल कर रहा है.

पाकिस्तान जानता है कि इस समय कोई भी अतार्किक बयान भारतीय विदेश मंत्री की इस्लामाबाद यात्रा को प्रभावित कर सकता है. एससीओ शिखर सम्मेलन के बाद जब कई निर्दोष लोगों को गिरफ्तार किया जाएगा और उनसे अपनी संलिप्तता स्वीकार करने के लिए मजबूर किया जाएगा, तब आरोप सामने आएंगे.

पाकिस्तान कई तरह की धमकियों के कारण टूट रहा है. इमरान खान की पार्टी पीटीआई राजनीतिक बदलाव, उनकी रिहाई और मौजूदा अव्यवस्था के लिए सेना प्रमुख को जिम्मेदार ठहराने की मांग कर रही है. वे पाकिस्तान की आंतरिक गड़बड़ियों को उजागर करने के लिए एससीओ शिखर सम्मेलन का फायदा उठाने को तैयार हैं.

टीटीपी (तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान) खैबर पख्तूनख्वा को शरिया कानून के तहत लाना चाहता है. बलूचिस्तान के लोग पाकिस्तान के अवैध कब्जे से आजादी चाहते हैं, इसलिए वे अपनी जमीन पर सीपीईसी का निर्माण कर रहे चीनी नागरिकों को निशाना बनाते हैं. टीटीपी और बलूच न केवल अपने क्षेत्रों में सक्रिय हैं, बल्कि हाल की घटनाओं से संकेत मिलता है कि वे देश में भी बहुत अंदर तक घुस आए हैं.

राजनीतिक, धार्मिक और स्वतंत्रता आंदोलनों में प्रदर्शन और हिंसा एक ऐसी समस्या है, जिसे नकदी की कमी से जूझ रहे पाकिस्तान के लिए नियंत्रित करना मुश्किल साबित हो रहा है. उनकी सरकारी मशीनरी मुख्य रूप से पीटीआई और न्यायपालिका सहित उनके पक्ष में काम करने वाली राज्य संस्थाओं को कुचलने में लगी हुई है, जिससे मौजूदा हाइब्रिड सरकार की निरंतरता सुनिश्चित हो रही है, जिसे इमरान खान तिरस्कार की दृष्टि से देखते हैं.

पाकिस्तान के नेतृत्व को पता है कि मौजूदा विरोध प्रदर्शन हिंसक हो सकते हैं, खासकर बिगड़ती अर्थव्यवस्था के कारण, जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश जैसी स्थिति बन सकती है, इसलिए उन्हें इसे हर कीमत पर दबाना चाहिए. उन्हें यह भी पता है कि सशस्त्र बलों में ऐसे भी सदस्य भी हैं जो इमरान का समर्थन करते हैं, इसलिए उन्हें सावधानी से कदम उठाने की जरूरत है. इमरान खान अपनी तरफ से सलाखों के पीछे ही सड़ रहे हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि सत्ता में वापसी के लिए सलाखों के पीछे रहना ही उनके लिए सबसे अच्छा दांव है.

इस्लामाबाद, रावलपिंडी और लाहौर क्षेत्रों में शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने पर जोर देते हुए, बाहरी प्रांतों की अनदेखी की जा रही है. इसने टीटीपी और बलूच को फिर से उभरने का मौका दिया है. इसके अलावा, एससीओ बैठक के मद्देनजर, पाकिस्तान राजधानी में या उसके आस-पास आतंकवादी हमले का जोखिम नहीं उठा सकता.

आगामी एससीओ शिखर सम्मेलन के साथ पाकिस्तान क्षेत्रीय सुर्खियों में है. पाकिस्तान के आतंकवाद को दूर रखते हुए अपने राजनीतिक वर्ग के बीच एकता दिखाने का यही समय है. हालांकि, यह दोनों ही मामलों में विफल रहा है. दुनिया एक अस्थिर पाकिस्तान को देखेगी जो बढ़ते राजनीतिक असंतोष और चरमपंथी विचारधाराओं और हिंसा को रोकने के लिए संघर्ष कर रहा है, बजाय इसके कि वह अपने आर्थिक संकटों को दूर करने के लिए काम कर रहा हो.

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