नई दिल्ली : राज्यसभा की 56 सीटों के लिए 27 फरवरी को चुनाव होने हैं. राज्यसभा के सदस्यों का कार्यकाल छह साल के लिए निर्धारित होता है. संविधान के अनुच्छेद 83(1) के अनुसार राज्यसभा को भंग नहीं किया जा सकता है. इसके एक तिहाई सदस्य हरेक दो साल पर रिटायर होते रहते हैं. हालांकि, अलग-अलग समय पर राष्ट्रपति शासन लागू होने और राज्यों की विधानसभाओं के भंग होने के कारण इसमें थोड़ा बहुत बदलाव हुआ. इसका प्रभाव यह पड़ा कि छह साल की अवधि में तीन बार से अधिक बार चुनाव होने लगे हैं.
संविधान के अनुच्छेद 80 में लिखा है कि राज्यसभा में 12 सदस्यों को राष्ट्रपति नामित करेंगे और 238 सदस्यों का चुनाव राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से किया जाएगा. राज्यसभा के कुल सदस्यों की संख्या 250 होती है. इस समय राज्यसभा के सदस्यों की संख्या 245 है. संविधान की सूची चार के अनुसार इस समय 233 सदस्य चुने हुए हैं. प्रत्येक राज्यों को उनकी आबादी के आधार पर राज्यसभा में सीटों का अलॉटमेंट किया गया है. हालांकि, अनुपात सभी राज्यों में बराबर का है.
अनुच्छेद 80 के खंड 4 के अनुसार विधानसभा के चुने गए सदस्य आनुपातिक प्रणाली के अनुसार एकल हस्तांतरणीय वोट के माध्यम से चुनाव में हिस्सा लेंगे. यानि वे इलेक्टोरल का हिस्सा होंगे. इसका मतलब यह हुआ कि किसी भी राजनीतिक दल का विधानसभा में जितना प्रतिनिधित्व है, उसी आनुपातिक प्रतिनिधित्व में उन्हें राज्यसभा में सदस्यों की संख्या चुनने का अधिकार है. राज्य विधानसभा के प्रत्येक सदस्य का वोट सिंगल है, लेकिन वह हस्तांतरणीय होता है.
बैलट पेपर पर चुनाव लड़ने वाले सभी उम्मीदवारों का नाम लिखा होता है. चुनाव में भाग लेने वाले विधायकों को उम्मीदवारों के लिए प्राथमिकता तय करनी होती है. वे उनकी नंबरिंग करते हैं. उन्हें कम से कम एक उम्मीदवार के सामने नंबर-I (उनकी पहली प्राथमिकता) लिखना होता है. यदि एक से अधिक उम्मीदवार मैदान में होते हैं, तब उन्हें दूसरे उम्मीदवारों को लेकर अपनी प्राथमिकता लिखनी होती है. अगर काउंटिंग के पहले राउंड में परिणाम स्पष्ट नहीं होते हैं, तो उनकी दूसरी प्राथमिकताओं पर विचार किया जाता है.
इसी तरह से किसी भी राज्य में एक उम्मीदवार के चयन के लिए कितना वोट चाहिए, इसका भी एक फॉर्मूला होता है. जितनी वैकेंसी है, उससे एक अधिक जितनी संख्या होती है, उस संख्या से कुल विधायकों की संख्या में भाग दिया जाता है. भागफल से एक अधिक जो भी नंबर आएगा, चुनाव जीतने के लिए उतने मत चाहिए.
यूपी का एक उदाहरण समझिए. यूपी में 403 विधानसभा सीट है. अगर 10 सीटों के लिए चुनाव होने हैं. तो इस समय भाजपा के विधायकों की संख्या 252 है. उनके एक उम्मीदवार को राज्यसभा पहुंचने के लिए कितने वोट चाहिए. 403/(10+1) = 36.6 +1= 37.6 यानि 38 वोट चाहिए. भाजपा के सभी उम्मीदवारों को जीत के लिए 38 वोट प्राप्त करने होंगे. इस हिसाब से देखें तो भाजपा के छह उम्मीदवार चुनाव जीत सकते हैं. लेकिन इसके बाद भी भाजपा के पास 24 विधायक बचेंगे. ऐसी स्थिति में उनके विधायक किसी सहयोगी पार्टी के लिए मत कर सकते हैं. यह एक उदाहरण है, इसके जरिए आप इस फॉर्मूले को समझ सकते हैं. वैसे, इस समय आरएलडी और एनडीए के बीच जिस तरह से नजदीकियां बढ़ रहीं हैं, अगर ऐसा हुआ तो यूपी के समीकरण में बड़ा बदलाव हो सकता है.
यूपी में एनडीए के विधायक : 277
भाजपा : 252
अपना दल (एस) : 13
निषाद पार्टी : 06
सुभासपा : 06
यूपी में इंडिया गठबंधन के विधायक : 119
सपा: 108