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भारत-बांग्लादेश फॉरेन ऑफिस कंसल्टेंट के जरिए दोनों देशों में कम्युनिकेशन जारी रखने का मौका - INDIA BANGLADESH FOREIGN OFFICE

आगामी भारत-बांग्लादेश फॉरेन ऑफिस कंसल्टेंट बैठक पड़ोसी देश में सत्ता परिवर्तन के बाद नई दिल्ली और ढाका को बातचीत करने का अवसर देगी.

भारत बांग्लादेश फॉरेन ऑफिस कंसल्टेंट से कम्युनिकेशन चैनल जारी रखने का मौका
भारत बांग्लादेश फॉरेन ऑफिस कंसल्टेंट से कम्युनिकेशन चैनल जारी रखने का मौका (सांकेतिक तस्वीर)
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By Aroonim Bhuyan

Published : Nov 27, 2024, 3:37 PM IST

नई दिल्ली: दिसंबर में होने वाली भारत-बांग्लादेश फॉरेन ऑफिस कंसल्टेंट मीटिंग, प्रधानमंत्री शेख हसीना को हटाए जाने के बाद ढाका में अंतरिम सरकार के सत्ता में आने के बाद दोनों दक्षिण एशियाई पड़ोसियों के बीच पहली हाई लेवल द्विपक्षीय बातचीत होगी.

बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता तौफीक हसन ने गुरुवार को मीडिया ब्रीफिंग के दौरान पुष्टि की कि दोनों देशों के बीच वार्षिक परामर्श दिसंबर की शुरुआत में ढाका में आयोजित किया जाएगा. भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व विदेश सचिव विक्रम मिस्री करेंगे, जबकि बांग्लादेशी पक्ष का नेतृत्व मिस्री के समकक्ष जशीम उद्दीन करेंगे.

विदेश मंत्रालय की यह मीटिंग ऐसे समय में हो रही है, जब इस साल की शुरुआत में ढाका में हुए शासन परिवर्तन के बाद भारत और बांग्लादेश के बीच द्विपक्षीय संबंध नाजुक स्थिति में हैं.

5 अगस्त को भारत की करीबी दोस्त मानी जाने वाली हसीना को उनके शासन की तानाशाही शैली के खिलाफ लोगों के विरोध में हुए जन-आंदोलन के बाद सत्ता से बेदखल कर दिया गया था. तीन दिन बाद बांग्लादेश के राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन ने नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार की स्थापना की.

हसीना के भारत में शरण लेने के बाद से ही दोनों दक्षिण एशियाई पड़ोसियों के बीच संबंध तनावपूर्ण हो गए हैं और अब तक दोनों पक्षों की ओर से कोई उच्च स्तरीय यात्रा नहीं हुई है. इस बीच, बांग्लादेश के अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (ICT) ने हसीना और उनके कई सहयोगियों के प्रत्यर्पण का आदेश दिया है, जो अगस्त में हुए उथल-पुथल के बाद देश छोड़कर भाग गए थे.

हसन के अनुसार भारत से हसीना के प्रत्यर्पण के मुद्दे पर चर्चा हो सकती है. मीडिया रिपोर्टों ने उनके हवाले से कहा, "इस मामले पर चर्चा की गुंजाइश है." शिलांग स्थित थिंक टैंक एशियन कॉन्फ्लुएंस के फेलो के योमे ने कहा कि बांग्लादेश में मौजूदा शासन की ओर से ऐसा बयान अप्रत्याशित नहीं है.

योमे ने ईटीवी भारत से कहा, "जब से नई सरकार ने कार्यभार संभाला है, भारत के प्रति उसके कुछ रुख सौहार्दपूर्ण नहीं रहे हैं." उन्होंने बताया कि हसीना भारत की करीबी मित्र हैं और उन्हें नई दिल्ली में सरकार द्वारा शरण दी गई है, यह बात बांग्लादेश की सरकार और लोगों को रास नहीं आई है.

योमे ने कहा कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार और नई दिल्ली के बीच संबंध इसी बात पर शुरू हुए थे. जाहिर है बांग्लादेश की मौजूदा सरकार को देश के भीतर अपनी सभी राजनीतिक मजबूरियों को देखते हुए नई दिल्ली के साथ बातचीत के दौरान हसीना के प्रत्यर्पण का मुद्दा उठाना होगा.

गुरुवार को मीडिया ब्रीफिंग के दौरान हसन ने कहा कि भारत के साथ समझौतों और समझौता ज्ञापनों (एमओयू) की समीक्षा की प्रक्रिया चल रही है. यहां यह उल्लेख करना उचित है कि हसीना के सत्ता से बाहर होने के बाद से बांग्लादेश में भारत द्वारा वित्तपोषित सभी परियोजनाओं पर काम ठप पड़ा हुआ है.

बांग्लादेश भारत का सबसे बड़ा विकास सहायता भागीदार है. भारत ने पिछले आठ साल में बांग्लादेश को सड़क, रेलवे, शिपिंग और बंदरगाहों सहित विभिन्न क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के विकास के लिए लगभग 8 बिलियन डॉलर की राशि दी है. इसके अलावा भारत सरकार बांग्लादेश को विभिन्न बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए अनुदान सहायता भी प्रदान कर रही है, जिसमें अखौरा-अगरतला रेल लिंक का निर्माण, बांग्लादेश में अंतर्देशीय जलमार्गों की ड्रेजिंग और भारत-बांग्लादेश मैत्री पाइपलाइन का निर्माण शामिल है.

उच्च प्रभाव वाली सामुदायिक विकास परियोजनाएं (HICDP) भारत की विकास सहायता का एक सक्रिय स्तंभ हैं. भारत सरकार ने बांग्लादेश में छात्र छात्रावासों, शैक्षणिक भवनों, कौशल विकास और प्रशिक्षण संस्थानों, सांस्कृतिक केंद्रों और अनाथालयों के निर्माण सहित 77 HICDP को वित्त पोषित किया है. इन सभी परियोजनाओं की राशि 50 मिलियन डॉलर से अधिक है.

अपने पद से हटने से पहले, जब हसीना इस साल जून में द्विपक्षीय यात्रा पर भारत आई थीं, तो कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए थे, जिनमें समुद्री सहयोग और ब्लू इकोनॉमी , रेलवे कनेक्टिविटी, डिजिटल साझेदारी और एक उपग्रह परियोजना शामिल थी. हालांकि, हसीना के पद से हटने के बाद, ये सभी परियोजनाएं अब अनिश्चितता की स्थिति में हैं. यह नई दिल्ली के लिए चिंता का विषय बन गया है, क्योंकि इन परियोजनाओं में बहुत सारा पैसा लगाया गया है, जिन्हें एक समय सीमा के भीतर पूरा किया जाना है. सवाल यह है कि क्या नई सरकार चल रही परियोजनाओं पर ध्यान देना जारी रखेगी.

योम के अनुसार भारत की चिंता कनेक्टिविटी और सीमा पार बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के मामले में भी रणनीतिक है. आंतरिक बाध्यताओं के कारण नई व्यवस्था अन्य बाहरी खिलाड़ियों पर विचार कर सकती है. इसका एक उदाहरण बांग्लादेश के अंदर तीस्ता जल प्रबंधन परियोजना है. बांग्लादेश जल विकास बोर्ड और चीन के बिजली निगम ने बांग्लादेश में जल क्षेत्र की परियोजनाओं पर सहयोग करने के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए. तीस्ता नदी पर एक व्यवहार्यता अध्ययन किया गया, जिसके बाद चीनी बिजली निगम ने तीस्ता नदी व्यापक प्रबंधन और बहाली परियोजना (TRCMRP) रिपोर्ट प्रस्तुत की. इस रिपोर्ट को बाद में 30 मई, 2019 को मंजूरी दी गई.

हालांकि, नई दिल्ली के लिए यह चिंता का विषय था क्योंकि इसे चीन द्वारा भारत के नजदीकी पड़ोस में अपना प्रभाव बढ़ाने के रूप में देखा गया. आखिरकार, हसीना ने नई दिल्ली की चिंताओं और इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि भारत बांग्लादेश का पड़ोसी है, इस परियोजना को भारत को सौंपने का फैसला किया. दरअसल, जब बांग्लादेश में राजनीतिक उथल-पुथल हुई, तब भारत इस परियोजना पर अध्ययन करने के लिए एक तकनीकी टीम भेजने की तैयारी कर रहा था.

बांग्लादेश में भारतीय मिशनों ने भी केवल आपातकालीन मामलों में ही वीजा जारी करने की सीमा तय कर दी है. यह बांग्लादेश के लोगों के लिए बड़ी समस्या बन गई है. हसन के अनुसार, आगामी विदेश कार्यालय परामर्श के दौरान ढाका नई दिल्ली से नियमित रूप से वीज़ा जारी करने का अनुरोध भी कर सकता है.

पिछले महीने द्विपक्षीय संबंधों के संदर्भ में एक सकारात्मक विकास हुआ जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बांग्लादेश की पश्चिम बंगाल सीमा पर पेट्रापोल में एक नए यात्री टर्मिनल भवन और मैत्री द्वार का उद्घाटन किया, जिसे भारतीय भूमि बंदरगाह प्राधिकरण (LPAI) ने 487 करोड़ रुपये की लागत से बनाया है. लगभग 500 करोड़ रुपये की लागत से बने और लगभग 60,000 वर्ग मीटर के क्षेत्र में फैले यात्री टर्मिनल भवन की क्षमता प्रतिदिन 25,000 यात्रियों को संभालने की है.

शाह ने कहा कि इससे मेडिकल और शैक्षिक पर्यटन को काफी बढ़ावा मिलेगा. उन्होंने विचार व्यक्त किया कि एलपीएआई की यह पहल भारत की सीमाओं को सुरक्षित करेगी और विकास के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करेगी. मैत्री द्वार का निर्माण 6 करोड़ रुपये की लागत से किया गया है, जो प्रतिदिन 600-700 ट्रकों की हैंडलिंग क्षमता के साथ परिवहन को सुचारू रूप से चलाने की अनुमति देगा.

योमे ने कहा कि भारत के पड़ोस में कोई भी सरकार एक न एक दिन यह महसूस करेगी कि उसे भौगोलिक स्थिति और आर्थिक संबंधों को ध्यान में रखते हुए नई दिल्ली के साथ जुड़ना होगा. उन्होंने कहा, "बांग्लादेश भारत के साथ एक लंबी सीमा साझा करता है. बांग्लादेश सरकार सीमा प्रबंधन और सीमा व्यापार के महत्व को जानती है."

योमे के अनुसार, इसके लिए बांग्लादेश को विदेश कार्यालय परामर्श जैसे पहले से मौजूद द्विपक्षीय तंत्रों के माध्यम से नई दिल्ली के साथ जुड़ना होगा.

साथ ही योमे ने कहा कि परियोजनाओं और अन्य द्विपक्षीय मुद्दों पर महत्वपूर्ण निर्णय विदेश कार्यालय परामर्श के दौरान नहीं लिए जा सकते. ऐसे निर्णय केवल राजनीतिक नेतृत्व स्तर पर ही लिए जा सकते हैं. उन्होंने कहा, "आगामी वार्ता के दौरान दोनों पक्ष महत्वपूर्ण मुद्दों और चिंताओं को उठाएंगे. विदेश कार्यालय परामर्श दोनों पक्षों को संचार चैनल खुले रखने का मौका देगा."

यह भी पढ़ें- बांग्लादेश में इस्कॉन के प्रमुख सदस्य चिन्मय कृष्ण दास आखिर क्यों हुए गिरफ्तार, क्या हैं उन पर आरोप ?

नई दिल्ली: दिसंबर में होने वाली भारत-बांग्लादेश फॉरेन ऑफिस कंसल्टेंट मीटिंग, प्रधानमंत्री शेख हसीना को हटाए जाने के बाद ढाका में अंतरिम सरकार के सत्ता में आने के बाद दोनों दक्षिण एशियाई पड़ोसियों के बीच पहली हाई लेवल द्विपक्षीय बातचीत होगी.

बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता तौफीक हसन ने गुरुवार को मीडिया ब्रीफिंग के दौरान पुष्टि की कि दोनों देशों के बीच वार्षिक परामर्श दिसंबर की शुरुआत में ढाका में आयोजित किया जाएगा. भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व विदेश सचिव विक्रम मिस्री करेंगे, जबकि बांग्लादेशी पक्ष का नेतृत्व मिस्री के समकक्ष जशीम उद्दीन करेंगे.

विदेश मंत्रालय की यह मीटिंग ऐसे समय में हो रही है, जब इस साल की शुरुआत में ढाका में हुए शासन परिवर्तन के बाद भारत और बांग्लादेश के बीच द्विपक्षीय संबंध नाजुक स्थिति में हैं.

5 अगस्त को भारत की करीबी दोस्त मानी जाने वाली हसीना को उनके शासन की तानाशाही शैली के खिलाफ लोगों के विरोध में हुए जन-आंदोलन के बाद सत्ता से बेदखल कर दिया गया था. तीन दिन बाद बांग्लादेश के राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन ने नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार की स्थापना की.

हसीना के भारत में शरण लेने के बाद से ही दोनों दक्षिण एशियाई पड़ोसियों के बीच संबंध तनावपूर्ण हो गए हैं और अब तक दोनों पक्षों की ओर से कोई उच्च स्तरीय यात्रा नहीं हुई है. इस बीच, बांग्लादेश के अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (ICT) ने हसीना और उनके कई सहयोगियों के प्रत्यर्पण का आदेश दिया है, जो अगस्त में हुए उथल-पुथल के बाद देश छोड़कर भाग गए थे.

हसन के अनुसार भारत से हसीना के प्रत्यर्पण के मुद्दे पर चर्चा हो सकती है. मीडिया रिपोर्टों ने उनके हवाले से कहा, "इस मामले पर चर्चा की गुंजाइश है." शिलांग स्थित थिंक टैंक एशियन कॉन्फ्लुएंस के फेलो के योमे ने कहा कि बांग्लादेश में मौजूदा शासन की ओर से ऐसा बयान अप्रत्याशित नहीं है.

योमे ने ईटीवी भारत से कहा, "जब से नई सरकार ने कार्यभार संभाला है, भारत के प्रति उसके कुछ रुख सौहार्दपूर्ण नहीं रहे हैं." उन्होंने बताया कि हसीना भारत की करीबी मित्र हैं और उन्हें नई दिल्ली में सरकार द्वारा शरण दी गई है, यह बात बांग्लादेश की सरकार और लोगों को रास नहीं आई है.

योमे ने कहा कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार और नई दिल्ली के बीच संबंध इसी बात पर शुरू हुए थे. जाहिर है बांग्लादेश की मौजूदा सरकार को देश के भीतर अपनी सभी राजनीतिक मजबूरियों को देखते हुए नई दिल्ली के साथ बातचीत के दौरान हसीना के प्रत्यर्पण का मुद्दा उठाना होगा.

गुरुवार को मीडिया ब्रीफिंग के दौरान हसन ने कहा कि भारत के साथ समझौतों और समझौता ज्ञापनों (एमओयू) की समीक्षा की प्रक्रिया चल रही है. यहां यह उल्लेख करना उचित है कि हसीना के सत्ता से बाहर होने के बाद से बांग्लादेश में भारत द्वारा वित्तपोषित सभी परियोजनाओं पर काम ठप पड़ा हुआ है.

बांग्लादेश भारत का सबसे बड़ा विकास सहायता भागीदार है. भारत ने पिछले आठ साल में बांग्लादेश को सड़क, रेलवे, शिपिंग और बंदरगाहों सहित विभिन्न क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के विकास के लिए लगभग 8 बिलियन डॉलर की राशि दी है. इसके अलावा भारत सरकार बांग्लादेश को विभिन्न बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए अनुदान सहायता भी प्रदान कर रही है, जिसमें अखौरा-अगरतला रेल लिंक का निर्माण, बांग्लादेश में अंतर्देशीय जलमार्गों की ड्रेजिंग और भारत-बांग्लादेश मैत्री पाइपलाइन का निर्माण शामिल है.

उच्च प्रभाव वाली सामुदायिक विकास परियोजनाएं (HICDP) भारत की विकास सहायता का एक सक्रिय स्तंभ हैं. भारत सरकार ने बांग्लादेश में छात्र छात्रावासों, शैक्षणिक भवनों, कौशल विकास और प्रशिक्षण संस्थानों, सांस्कृतिक केंद्रों और अनाथालयों के निर्माण सहित 77 HICDP को वित्त पोषित किया है. इन सभी परियोजनाओं की राशि 50 मिलियन डॉलर से अधिक है.

अपने पद से हटने से पहले, जब हसीना इस साल जून में द्विपक्षीय यात्रा पर भारत आई थीं, तो कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए थे, जिनमें समुद्री सहयोग और ब्लू इकोनॉमी , रेलवे कनेक्टिविटी, डिजिटल साझेदारी और एक उपग्रह परियोजना शामिल थी. हालांकि, हसीना के पद से हटने के बाद, ये सभी परियोजनाएं अब अनिश्चितता की स्थिति में हैं. यह नई दिल्ली के लिए चिंता का विषय बन गया है, क्योंकि इन परियोजनाओं में बहुत सारा पैसा लगाया गया है, जिन्हें एक समय सीमा के भीतर पूरा किया जाना है. सवाल यह है कि क्या नई सरकार चल रही परियोजनाओं पर ध्यान देना जारी रखेगी.

योम के अनुसार भारत की चिंता कनेक्टिविटी और सीमा पार बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के मामले में भी रणनीतिक है. आंतरिक बाध्यताओं के कारण नई व्यवस्था अन्य बाहरी खिलाड़ियों पर विचार कर सकती है. इसका एक उदाहरण बांग्लादेश के अंदर तीस्ता जल प्रबंधन परियोजना है. बांग्लादेश जल विकास बोर्ड और चीन के बिजली निगम ने बांग्लादेश में जल क्षेत्र की परियोजनाओं पर सहयोग करने के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए. तीस्ता नदी पर एक व्यवहार्यता अध्ययन किया गया, जिसके बाद चीनी बिजली निगम ने तीस्ता नदी व्यापक प्रबंधन और बहाली परियोजना (TRCMRP) रिपोर्ट प्रस्तुत की. इस रिपोर्ट को बाद में 30 मई, 2019 को मंजूरी दी गई.

हालांकि, नई दिल्ली के लिए यह चिंता का विषय था क्योंकि इसे चीन द्वारा भारत के नजदीकी पड़ोस में अपना प्रभाव बढ़ाने के रूप में देखा गया. आखिरकार, हसीना ने नई दिल्ली की चिंताओं और इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि भारत बांग्लादेश का पड़ोसी है, इस परियोजना को भारत को सौंपने का फैसला किया. दरअसल, जब बांग्लादेश में राजनीतिक उथल-पुथल हुई, तब भारत इस परियोजना पर अध्ययन करने के लिए एक तकनीकी टीम भेजने की तैयारी कर रहा था.

बांग्लादेश में भारतीय मिशनों ने भी केवल आपातकालीन मामलों में ही वीजा जारी करने की सीमा तय कर दी है. यह बांग्लादेश के लोगों के लिए बड़ी समस्या बन गई है. हसन के अनुसार, आगामी विदेश कार्यालय परामर्श के दौरान ढाका नई दिल्ली से नियमित रूप से वीज़ा जारी करने का अनुरोध भी कर सकता है.

पिछले महीने द्विपक्षीय संबंधों के संदर्भ में एक सकारात्मक विकास हुआ जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बांग्लादेश की पश्चिम बंगाल सीमा पर पेट्रापोल में एक नए यात्री टर्मिनल भवन और मैत्री द्वार का उद्घाटन किया, जिसे भारतीय भूमि बंदरगाह प्राधिकरण (LPAI) ने 487 करोड़ रुपये की लागत से बनाया है. लगभग 500 करोड़ रुपये की लागत से बने और लगभग 60,000 वर्ग मीटर के क्षेत्र में फैले यात्री टर्मिनल भवन की क्षमता प्रतिदिन 25,000 यात्रियों को संभालने की है.

शाह ने कहा कि इससे मेडिकल और शैक्षिक पर्यटन को काफी बढ़ावा मिलेगा. उन्होंने विचार व्यक्त किया कि एलपीएआई की यह पहल भारत की सीमाओं को सुरक्षित करेगी और विकास के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करेगी. मैत्री द्वार का निर्माण 6 करोड़ रुपये की लागत से किया गया है, जो प्रतिदिन 600-700 ट्रकों की हैंडलिंग क्षमता के साथ परिवहन को सुचारू रूप से चलाने की अनुमति देगा.

योमे ने कहा कि भारत के पड़ोस में कोई भी सरकार एक न एक दिन यह महसूस करेगी कि उसे भौगोलिक स्थिति और आर्थिक संबंधों को ध्यान में रखते हुए नई दिल्ली के साथ जुड़ना होगा. उन्होंने कहा, "बांग्लादेश भारत के साथ एक लंबी सीमा साझा करता है. बांग्लादेश सरकार सीमा प्रबंधन और सीमा व्यापार के महत्व को जानती है."

योमे के अनुसार, इसके लिए बांग्लादेश को विदेश कार्यालय परामर्श जैसे पहले से मौजूद द्विपक्षीय तंत्रों के माध्यम से नई दिल्ली के साथ जुड़ना होगा.

साथ ही योमे ने कहा कि परियोजनाओं और अन्य द्विपक्षीय मुद्दों पर महत्वपूर्ण निर्णय विदेश कार्यालय परामर्श के दौरान नहीं लिए जा सकते. ऐसे निर्णय केवल राजनीतिक नेतृत्व स्तर पर ही लिए जा सकते हैं. उन्होंने कहा, "आगामी वार्ता के दौरान दोनों पक्ष महत्वपूर्ण मुद्दों और चिंताओं को उठाएंगे. विदेश कार्यालय परामर्श दोनों पक्षों को संचार चैनल खुले रखने का मौका देगा."

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