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US ने 81 बार दूसरे देशों के चुनाव में किया हस्तक्षेप, रूस के दखल के 36 उदाहरण, चीन भी नहीं पीछे - MEDDLING OF ELECTIONS

'मेडलिंग इन द बैलेट बॉक्स: द कॉज एंड इफेक्ट ऑफ पार्टिसन इलेक्ट्रोल इंटरवेंशन' किताब के मुताबिक अमेरिका ने 81 बार चुनाव में हस्तक्षेप किया है.

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वोटिंग (Getty Images)

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Feb 24, 2025, 4:06 PM IST

हैदराबाद: USAID से जुड़ी एजेंसियों पर भारत विरोधी प्रचार करने का आरोप लगा है. आरोप है कि हेनरी लूस फाउंडेशन कथित तौर पर चुनावों में हस्तक्षेप करने के प्रयासों में शामिल है. हेनरी लूस फाउंडेशन के सदस्य USAID द्वारा वित्तपोषित समूहों से भी जुड़े हैं. वहीं, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि बाइडेन प्रशासन ने भारत के चुनावों में दखलंदाजी की थी.

'मेडलिंग इन द बैलेट बॉक्स: द कॉज एंड इफेक्ट ऑफ पार्टिसन इलेक्ट्रोल इंटरवेंशन' किताब के मुताबिक 1946 से 2000 के बीच अमेरिका ने सबसे ज्यादा चुनावों में हस्तक्षेप किया है. इस किताब को हांगकांग यूनिवर्सिटी के एक पॉलिटिकल साइंटेस्ट डोव एच लेविन ने लिखा है. इसमें कहा गया है कि अमेरिका ने कुल 81 बार चुनाव में हस्तक्षेप किया है.

अमेरिका के बाद सोवियत संघ/रूस का स्थान आता है, जहां हस्तक्षेप के 36 उदाहरण हैं.अन्य देशों, जैसे कि 1979 से ईरान, पूर्व तानाशाह मुअम्मर गद्दाफी के अधीन लीबिया और दिवंगत सत्तावादी नेता ह्यूगो शावेज के अधीन वेनेजुएला को भी कभी-कभी चुनावों में हस्तक्षेप करने के लिए जाना जाता है.

अमेरिका ने जिन देशों के चुनाव में हस्तक्षेप करने की कोशिश की. उनमें इटली, लेबनान, जापान, इजराइल और रूस जैसे देश शामिल हैं. इसी तरह रूस ने अमेरिका के चुनाव में दखल देने की कोशिश की, जबकि चीन ने ताइवान, अमेरिका और कनाडा जैसे देशों के चुनाव में हस्तक्षेप किया.

इटली के चुनाव में अमेरिकी हस्तक्षेप
गुप्त अमेरिकी हस्तक्षेप में इटली का 1948 भी शामिल है. उस समय सीआईए ने क्रिश्चियन डेमोक्रेट्स को कम्युनिस्ट पार्टी को हराने में मदद की थी. एक सीआईए ऑपरेटिव ने 50 साल बाद स्वीकार किया कि उनके पास पैसे के बैग थे, जिन्हें उन्होंने चुने हुए राजनेताओं को उनके राजनीतिक खर्चों को पूरा करने के लिए दिया था.

जापान की दक्षिणपंथी पार्टी को अमेरिकी फंड
जापान की केंद्र-दक्षिणपंथी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी को 1950 और 1960 के दशक में गुप्त अमेरिकी फंड मिला था. पूर्व खुफिया अधिकारियों ने कहा है कि अमेरिका का उद्देश्य वामपंथ को कमजोर करना और जापान को एशिया के सबसे कट्टर कम्युनिस्ट विरोधी देशों में से एक बनाना था.

लेबनान के इलेक्शन में अमेरिका का हस्तक्षेप
अमेरिकी सरकार और अमेरिकी ऑयल कोरपोरेशन ने 1957 में लेबनान में क्रिश्चियन पार्टियों को कैश से भरे ब्रीफकेस के साथ महत्वपूर्ण चुनाव जीतने में मदद की थी.

अमेरिका ने चिली में अलेंदे को चुनाव जीतने से रोकने की कोशिश
चिली में संयुक्त राज्य अमेरिका ने 1964 में अलेंदे को चुनाव जीतने से रोका था. 1970 के दशक के मध्य में सीनेट की एक जांच में विस्तृत जानकारी दी गई कि लगभग पंद्रह गुप्त कार्रवाई परियोजनाओं पर कुल मिलाकर लगभग चार मिलियन डॉलर खर्च किए गए, जिसमें झुग्गीवासियों को संगठित करने से लेकर राजनीतिक दलों को धन देने तक शामिल थे. इसने विदेशी चुनावों में सीआईए की भूमिका को उजागर करना शुरू किया.

इजराइल में शिमोन पेरेज को मदद
मई 1996 में बिल क्लिंटन ने अपने दोस्त शिमोन पेरेज को फिर से प्रधानमंत्री के रूप में निर्वाचित करने के लिए कड़ी मेहनत की. इसको लेकर 2018 में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ने स्वीकार किया कि वह पेरेज को जीतने में मदद करना चाहते थे.

रूसी राष्ट्रपति चुनाव 1996 में अमेरिका का दखल
जून 1996 बिल क्लिंटन ने राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन के पक्ष में रूसी चुनाव को मोड़ने में मदद की थी. 1996 में क्लिंटन और येल्तसिन के बीच फोन पर हुई बातचीत के हाल ही में जारी किए गए टेप से पता चलता है कि रूसी राष्ट्रपति अपने अमेरिकी समकक्ष से अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके IMF कर्ज में कुछ बिलियन डॉलर जोड़ने के लिए कह रहे थे ताकि चुनाव से पहले की स्थिति में उनकी मदद की जा सके. क्लिंटन कहते हैं कि निश्चित रूप से, वह इस पर काम करेंगे.

सर्बिया में अमेरिका ने 40 मिलियन डॉलर खर्च
1999 के मध्य से लेकर 2000 के अंत तक सार्वजनिक और निजी अमेरिकी संगठनों ने सर्बियाई कार्यक्रमों पर लगभग 40 मिलियन डॉलर खर्च किए, जिसमें न केवल मिलोसेविक के विपक्ष का समर्थन किया गया, बल्कि स्वतंत्र मीडिया, नागरिक संगठनों और मतदान के लिए लोगों को प्रेरित करने की पहल भी शामिल थी.

अमेरिका की हमास को हराने की कोशिश
2006 में बुश प्रशासन ने फिलिस्तीनी क्षेत्रों में 2 मिलियन अमेरिकी डॉलर की विदेशी सहायता राशि भेजी, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उस वर्ष फिलिस्तीनी विधायी चुनावों में फतह हमास को हरा दे, लेकिन हमास फिर भी जीत गया और न्यूयॉर्क की तत्कालीन सीनेटर हिलेरी क्लिंटन को टेप पर यह कहते हुए पकड़ा गया कि अमेरिका को चुनाव में धांधली करने का बेहतर काम करना चाहिए था.

2016 में USA के राष्ट्रपति चुनाव में रूस का दखल
अमेरिकी खुफिया एजेंसी ने एक रिपोर्ट पब्लिश की, जिसमें यह आकलन किया गया कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव को लक्षित करके एक प्रभाव अभियान का आदेश दिया था.रिपोर्ट के अनुसार 2016 में रूसी दुष्प्रचार अभियानों ने राजनीतिक दक्षिणपंथी और वामपंथी लोगों को निशाना बनाया, जिसमें रिपब्लिकन सीनेटर टेड क्रूज और मार्को रुबियो, ब्लैक लाइव्स मैटर्स कार्यकर्ता और टेक्सास और कैलिफोर्निया में अलगाववादी आंदोलन शामिल थे.

अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने निष्कर्ष निकाला है कि रूस ने 2016 के चुनाव के दौरान वास्तविक वोटों में कोई बदलाव नहीं किया, लेकिन रूसियों ने चुनाव दिवस से पहले कम से कम 21 राज्यों में मतदाता पंजीकरण प्रणाली या राज्य वेबसाइटों को निशाना बनाया, कुछ राज्यों की प्रणालियों तक पूरी तरह से पहुंच बनाई और लाखों मतदाताओं की व्यक्तिगत जानकारी चुरा ली.

यूएसए 2024 राष्ट्रपति चुनाव में रूस ने किया इंटरफेयर
अमेरिका ने रूसी मीडिया अधिकारियों पर आरोप लगाए, प्रतिबंध लगाए और क्रेमलिन से जुड़े प्रसारकों को प्रतिबंधित कर दिया क्योंकि उसने मॉस्को पर राष्ट्रपति चुनाव में हस्तक्षेप करने के लिए व्यापक अभियान चलाने का आरोप लगाया.

अधिकारियों ने कहा कि रूसी प्रभाव संचालन ने सिंथेटिक इमेज, वीडियो, ऑडियो और टेक्स्ट को ऑनलाइन फैलाया है. इसमें प्रमुख अमेरिकी हस्तियों के बारे में और आव्रजन जैसे विभाजनकारी मुद्दों पर जोर देने की कोशिश करने वाला कंटेंट शामिल है.

ताइवान में चीन का हस्तक्षेप
चीन ने ताइवान में आयोजित हर चुनाव में हस्तक्षेप किया है और वहां अपने पास मौजूद लगभग हर तरीके को अपनाया है. अन्य देशों में देखे जाने से पहले ताइवान में लगभग इंटरवेंशन के हर मैथड का इस्तेमाल किया गया था. ताइवान मामले में कुछ ऐसे तरीके भी शामिल हैं, जिनमें युद्ध की धमकियों का इस्तेमाल किया गया.

अमेरिकी के चुनाव में चीन का पैसा
चीन के दूसरे देश के चुनाव में दखल देने का सबसे प्रतिष्ठित मामला 1996 का अभियान वित्तपोषण घोटाला है, जिसे 'चाइनागेट' के रूप में जाना जाता है. इसमें चीन ने डेमोक्रेटिक पार्टी के चुनाव अभियानों में धन लगाया. इसमें छह लोग शामिल थे.

अमेरिकी चुनावों में चीनी ऑनलाइन हस्तक्षेप एक हालिया घटना है 2018 के मध्यावधि चुनावों के आसपास देखने को मिलीं. हालांकि, 2019 में विश्लेषकों ने अभी भी माना कि चीन ने संयुक्त राज्य अमेरिका में राष्ट्रीय चुनाव में हस्तक्षेप करने की कोशिश नहीं की है. 2020 के राष्ट्रपति चुनाव में विदेशी खतरों पर नेशनल इंटेलिजेंस कम्युनिटी (एनआईसी) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन ने हस्तक्षेप के प्रयासों को नियोजित नहीं किया और अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के परिणाम को बदलने के इरादे से प्रभाव प्रयासों पर विचार किया, लेकिन उन्हें लागू नहीं किया. 2022 के मध्यावधि चुनावों तक सूचना अभियान के माध्यम से हस्तक्षेप के संकेत नहीं मिले थे.

कनाडा 2019 और 2021 संघीय चुनाव
कनाडा 2019 और 2021 के संघीय चुनावों में चीनी हस्तक्षेप के अधीन था. ये अभियान लिबरल पार्टी के प्रति अत्यधिक पक्षपातपूर्ण थे और ज़्यादातर व्यक्तिगत उम्मीदवारों को दान के रूप में लिए गए थे, लेकिन अवांछित उम्मीदवारों के खिलाफ धमकी भी दी गई थी.

ऑस्ट्रेलिया के चुनाव में चीनी दुष्प्रचार
ऑस्ट्रेलिया में 2022 के संघीय चुनावों के दौरान चीनी दुष्प्रचार प्रयासों ने कथित तौर पर ऑस्ट्रेलियाई सरकार के भीतर एक चीनी समर्थक रुख को प्रोत्साहित करने की कोशिश की. ऑस्ट्रेलिया ने स्थानीय और संघीय दोनों चुनावों में ज़्यादातर पक्षपातपूर्ण चीनी हस्तक्षेप के कई मामलों का अनुभव किया.

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