रतलाम। मध्य प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में अनेक जड़ी बूटियां और औषधीय गुणों वाली वनस्पतियां बिखरी पड़ी हैं. जिन्हें हम महज खरपतवार समझते हैं, लेकिन वह पौधे चमत्कारी गुणों से भरपूर होते हैं. ऐसे ही एक चमत्कारिक पौधे का नाम है "नाव" जो पहाड़ी और मैदानी दोनों क्षेत्रों में बहुतायत तौर पर पाया जाता है. जिसकी पत्तियों का रस वायरल बुखार से लेकर मलेरिया टाइफाइड को भी परास्त कर देता है. स्वाद में बेहद कड़वे इस पौधे की पत्तियों का औषधीय गुण वायरल बीमारियों से छुटकारा दिलवाता है. मध्य प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों में इस पौधे को अलग-अलग नाम से भी जाना जाता है. मालवा में इसे नाव के नाम से जाना जाता है. आदिवासी अंचल में यह लोगों की रामबाण औषधि है. जिसे वह हर प्रकार के बुखार में इस्तेमाल करते हैं.
क्या है इस पौधे की खासियत और कैसे करें इस्तेमाल
रतलाम के आयुर्वेदाचार्य रत्नदीप निगम से हमने चमत्कारिक औषधीय गुणों से भरपूर इस पौधे के बारे में विस्तृत जानकारी ली है. आयुर्वेदाचार्य निगम ने बताया कि नाव को किरातिक्त, चिरायता और कालमेघ के नाम से भी जाना जाता है. इसमें एंटीवायरस गुण मौजूद होते हैं. अति प्राचीन काल से ही बुखार के उपचार के लिए इसका प्रयोग आयुर्वेद में किया जाता रहा है. इसका उपयोग चर्म रोग एवं डायबिटीज के रोगियों द्वारा भी किया जाता है. मुख्य रूप से यह मलेरिया और टाइफाइड की रामबाण औषधि है.
नाव के पौधे को ऐसे पहचाने
जंगली क्षेत्र में उगने वाले इस खरपतवार रूपी छोटे से पौधे (तीन से चार इंच का पौधा) की पत्तियां लंबी और आगे से नुकीली होती हैं. स्वाद में इसकी पत्तियां नीम से भी कई गुना अधिक कड़वी होती हैं. यह मध्य प्रदेश के लगभग सभी क्षेत्रों में वर्षा ऋतु में पाया जाता है. वहीं राजस्थान गुजरात के क्षेत्र में भी यह पौधा मिलता है. वायरल बुखार या मलेरिया टाइफाइड के उपचार के तौर पर इसकी पत्तियों का काढ़ा बना कर उपयोग किया जाता है. सूखी पत्तियों के पाउडर का उपयोग भी किया जाता है. उष्ण प्रकृति की इस औषधि के उपयोग के साथ शरीर को ठंडक पहुंचाने वाले पदार्थ लेना चाहिए. जैसे गुलकंद या गुलाब का शरबत, बेल का शरबत इत्यादि.
कोरोना में भी कारगर रहा है नाव का उपयोग
आयुर्वेदाचार्य रत्नदीप निगम बताते हैं कि वैसे तो नाव का उपयोग मलेरिया और टाइफाइड के उपचार में मुख्य रूप से किया जाता है, लेकिन आदिवासी क्षेत्रों में यह हर तरह के बुखार की प्रचलित दवाई है. यही वजह है कि जब कोरोना की पहली और दूसरी लहर फैली तो आदिवासी इलाकों में कोरोना का प्रभाव देखने को ही नहीं मिला या बेहद कम लोग इससे प्रभावित हुए. सामान्य बुखार के उपचार के तौर पर भी आदिवासी क्षेत्र में इस औषधि का उपयोग किया जाता है. आयुर्वेद के रिसर्च में भी यह औषधि एंटीवायरस दवा के रूप में दर्ज है.