अमेरिकन एकेडमी ऑफ न्यूरोलॉजी की मेडिकल पत्रिका न्यूरोलॉजी के 15 जनवरी, 2025 के ऑनलाइन अंक में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, जो लोग ज्यादा रेड मीट का सेवन करते हैं लाल मांस खाते हैं, उनमें संज्ञानात्मक गिरावट (cognitive decline) और डिमेंशिया का खतरा उन लोगों की तुलना में ज्यादा होने की संभावना है जो बहुत कम मात्रा में रेड मीट का सेवन करते हैं.
दरअसल, रेड मीट, स्तनधारियों के मांस को कहते हैं. इसमें गोमांस, बछड़े का मांस, भेड़ का बच्चा, मटन, सूअर का मांस, बकरी और हिरन का मांस शामिल है. रेड मीट को लाल मांस भी कहते हैं क्योंकि यह दिखने में लाल होता है. यह कहा जाता है कि मीट का रंग जितना ज्यादा लाल होता है, उसमें उतना ही अधिक फैट की मात्रा होती है.
बोस्टन के ब्रिघम एंड वीमेन्स हॉस्पिटल के एमडी, एससीडी और अध्ययन लेखक डोंग वांग के अनुसार, रेड मीट में सैचुरेटेड अधिक होता है और पिछले कई अध्ययनों में यह भी दिखाया गया है कि रेड मीट के अधिक सेवन से टाइप 2 डायबिटीज और दिल की बीमारी का खतरा बढ़ जाता है. लाल मांस खाने से हार्ट डिजीज, हाई ब्लड प्रेशर, कोरोनरी आर्टरी डिजीज और स्ट्रोक जैसी खतरनाक बीमारियां भी हो सकती है. इससे ब्लड वेन्स डैमेज भी हो सकते हैं और शरीर के कई हिस्सों में सूजन आ सकता है. क्रोनिक सूजन और ब्लड वेन्स में खराबी डिमेंशिया की वजह बन सकती है. इस नए अध्ययन में पाया गया कि प्रोसेस्ड रेड मीट संज्ञानात्मक गिरावट और डिमेंशिया के खतरे को बढ़ा सकता है, लेकिन अच्छी खबर यह है कि यह भी पाया गया कि इसे नट्स, मछली और मुर्गी जैसे स्वस्थ विकल्पों से बदलने से व्यक्ति का खतरा कम हो सकता है.
ऐसे किया गया अध्ययन
बता दें, संज्ञानात्मक गिरावट और डिमेंशिया, मस्तिष्क के कामकाज में गिरावट से जुड़ी स्थितियां हैं. इनसे याददाश्त में कमी आती है और रोजमर्रा की जिंदगी में दिक्कत होती है. डिमेंशिया के खतरे की जांच करने के लिए, शोधकर्ताओं ने 133,771 लोगों के एक ग्रुप को इस अध्ययन में शामिल किया, जिनकी औसत आयु 49 वर्ष थी और जिन्हें अध्ययन की शुरुआत में डिमेंशिया नहीं था. उन सभी का 43 साल तक अनुसरण किया गया. जिसके बाद यह पाया गया कि इस समूह में से 11,173 लोगों में डिमेंशिया विकसित हुआ.