प्रयागराज: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ मेले में, जहां परंपरा और भक्ति पनपती है, डिजिटल बाबा के नाम से लोकप्रिय स्वामी राम शंकर दास के रूप में आधुनिकता (Modernity) के अप्रत्याशित चैंपियन को देखा गया है.
अपने अभिनव दृष्टिकोण के साथ, वे युवा पीढ़ी को अपने जीवन में अध्यात्म को अपनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. लाइव-स्ट्रीम किए गए सत्संग से लेकर फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और एक्स जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर माइंडफुलनेस के बारे में आकर्षक बातचीत तक, डिजिटल बाबा यह साबित कर रहे हैं कि सदियों पुराना ज्ञान डिजिटल युग में भी प्रासंगिक हो सकता है. तकनीक और अध्यात्म को मिलाने के उनके प्रयास दूर-दूर तक ध्यान आकर्षित कर रहे हैं.
राम प्रकाश भट्ट से बने स्वामी राम शंकर दास
गोरखपुर विश्वविद्यालय से बी.कॉम स्नातक राम प्रकाश भट्ट केवल 19 वर्ष के थे, जब उन्होंने महसूस किया कि साधु के रूप में जीवन ही उनके लिए सार्थक है. स्वामी राम शंकर दास ने ईटीवी भारत से एक विशेष बातचीत में कहा, "जब मैं 19 वर्ष का था, तब मुझे एहसास हुआ कि सभी मानवीय रिश्ते स्वार्थ से पैदा होते हैं." "चाहे वह आपकी पत्नी हो, भाई, बहन या यहां तक कि आपके माता-पिता भी हों, वे किसी स्वार्थ के कारण ही आपसे प्यार करते हैं. तभी मैंने फैसला किया कि मुझे खुश रहना है.
मैं एक पक्षी की तरह उड़ना चाहता था....
उन्होंने कहा, "मैं एक पक्षी की तरह उड़ना चाहता था और दुनिया देखना चाहता था." तभी बाबा के जीवन में एक मित्र की भूमिका आई. मित्र ने युवा राम शंकर भट्ट से कहा कि, चूंकि वह शिक्षा पूरी करने और परिवार बनाने के बाद नौकरी करने जैसे सामान्य जीवन जीने में रुचि नहीं रखते हैं, इसलिए उन्हें साधु बन जाना चाहिए. इसके बाद मित्र ने अयोध्या के लोमश ऋषि आश्रम में राम शंकर भट्ट को स्वामी शिवचरण दास महाराज से मिलवाया.
बी.कॉम स्टूडेंट कैसे बन गए स्वामी राम शंकर दास?
स्वामी राम शंकर दास ने कहा, "मैं अपने गुरु से 2008 में मिला था, जब मैं बी.कॉम के तीसरे साल में था...आश्रम में मैंने देखा कि साधु हर तरह के छोटे-मोटे काम खुद ही करते हैं. और फिर मैं उपनिषद, रामायण और भगवत गीता का अध्ययन करना चाहता था."
आध्यात्मिक गुरु स्वामी राम शंकर दास की यात्रा
अयोध्या में स्वामी शिवचरण दास महाराज से दीक्षा लेने के बाद, राम शंकर भट्ट स्वामी राम शंकर दास बन गए और भारत के विभिन्न गुरुकुलों में रहे. राम शंकर दास गुजरात के साबरकांठा में वानप्रस्थ साधक ग्राम आश्रम, हरियाणा के जींद में कलवा गुरुकुल, संदीपनी हिमालय गुरुकुल, हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में चिन्मय मिशन, रिखियापीठ में बिहार स्कूल ऑफ योग और महाराष्ट्र के लोनावाला में कैवल्यधाम योग संस्थान जैसे गुरुकुलों में रहे.
अंत में वे हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के बैजनाथ में 6,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित नागेश्वर महाराज मंदिर पहुंचे. स्वामी राम शंकर दास ने कहा, "मैंने उनसे (मंदिर अधिकारियों से) कहा कि वे मुझे परीक्षण के तौर पर चार महीने रहने दें. उसके बाद वे फैसला कर सकते हैं." आज, नहगेश्वर महादेव मंदिर स्वामी राम शंकर दास का घर है. उन्होंने युवाओं में आध्यात्मिकता का सार भरने के लिए एक मिशन शुरू किया है.
डिजिटल बाबा युवाओं को देते हैं आध्यात्मिक ज्ञान
स्वामी राम शंकर दास ने कहा, "मेरा लक्ष्य युवा हैं. लेकिन मुझे एहसास हुआ कि बहुत कम युवा सत्संग में भाग लेते हैं...लेकिन युवा सोशल मीडिया से काफी जुड़े रहते हैं. फिर मैंने सोशल मीडिया के माध्यम से अपने संदेश भेजने का फैसला किया."
डिजिटल बाबा आज अपने संदेश भेजने के लिए फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर और यूट्यूब पर अपने सोशल मीडिया हैंडल का उपयोग करते हैं. उन्होंने कहा, "मेरे पास कोई कैमरामैन, संपादक या सहायक कर्मचारी नहीं है," उन्होंने कहा. "मैं कॉल या संदेशों के माध्यम से अनुरोधों का जवाब देता हूं."
युुवाओं से बातचीत करते दिख जाते हैं डिजिटल बाबा
चल रहे महाकुंभ में, डिजिटल बाबा त्रिवेणी संगम के तट पर एक तिपाई, एक रोड माइक और एक फोन पकड़े हुए युवा पीढ़ी के साथ बातचीत करते हुए दिखाई देते हैं. वह अपने सोशल मीडिया हैंडल पर संतों और भक्तों के साथ अपनी बातचीत साझा कर रहे हैं. यह पूछे जाने पर कि उनके संदेश क्या हैं, उन्होंने कहा कि मुख्य रूप से दो हैं.
हम बहिर्मुखी जीवन जीते हैं
उन्होंने कहा, "हम बहिर्मुखी जीवन जीते हैं. (बहिर्मुखी शख्स ऐसे व्यक्ति होते हैं जो लोगों के साथ बातचीत करके ऊर्जा प्राप्त करते हैं) हम पढ़ते हैं, नौकरी करते हैं और परिवार शुरू करते हैं. मेरी सीख है कि आपको आध्यात्मिक रूप से खुद को समझना चाहिए. बाहरी दुनिया में अच्छी और बुरी दोनों चीजें होती हैं. जीवन कभी संतुलित नहीं होता. केवल पैसा कमाने का लक्ष्य नहीं होना चाहिए. हमें एक ऐसी अवस्था में पहुंच जाना चाहिए जहां कोई आकर्षण न हो. तब हम जीवन-मरण के चक्र से बाहर निकल जाएंगे. अगर आप लाभ कमाने के लिए आम का पेड़ लगाते हैं, तो नुकसान होने पर आपको दुख होगा. लेकिन अगर आप पीपल का पेड़ लगाते हैं, तो आप लाभ के बारे में नहीं सोचते.
छोटे बच्चों को 'धर्म संस्कार'
उन्होंने कहा, पेड़ आपको आश्रय देता है. आप इसे बड़े हित के लिए करते हैं. यही व्यवसायों और गैर सरकारी संगठनों के बीच का अंतर है. डिजिटल बाबा की दूसरी महत्वपूर्ण सीख यह है कि छोटे बच्चों को 'धर्म संस्कार' (मानव जीवन को आध्यात्मिकता की दुनिया में ले जाने वाले संस्कार) के अनुसार जीवन जीना चाहिए. उन्होंने समझाया, "हमें स्वच्छता और पारिस्थितिकी जैसी सामाजिक जिम्मेदारियों को ध्यान में रखते हुए अपना जीवन जीना चाहिए."
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