हैदराबाद: आज हम जिस शख्स को एआर रहमान के नाम से जानते हैं, उस शख्स को जन्म 6 जनवरी 1967 को चेन्नई में हुआ था. एआर रहमान का असली नाम दिलीप कुमार था. बचपन से ही एआर रहमान को संगीत का माहौल मिला है. उनके पिता आरके शेखर एक म्यूजिक कंडक्टर और कंपोजर थे. एआर रहमान के पिता ये जानते थे कि उनका बेटा बहुत ही प्रतिभाशाली है. वह अपने म्यूजिशियन से कहते थे कि वह रहमान को हर एक चीज सिखाए. आरके शेखर चाहते थे कि उनके बेटे की प्रतिभा पूरी दुनिया देखे. तो चलिए जानते है एआर रहमान के पर्सनल लाइफ से जुड़े कुछ दिलचस्प बातें...
एआर रहमान की प्रतिभा देख हैरान रह गए सुदर्शन मास्टरजी
एक इंटरव्यू में एआर रहमान की बहन रिहाना ने अपने भाई के बचपन की कहानी साझा की. उन्होंने बताया, 'मेरे पिता आरके शेखर ने एक बार मशहूर हारमोनियम मास्टर सुदर्शन से कहा था कि एआर रहमान एक जीनियस है. तब सुदर्शन मास्टरजी ने कहा कि मैं बिना देखे नहीं मान सकता कि वह एक जीनियस है. मैं खुद देखकर ही यकीन कर पाऊंगा. पिताजी ने मेरे भाई (एआर रहमान) को बुलवाया. तभी सुदर्शन मास्टरजी ने एक धुन बजाई और मेरे पिता से कहे कि आप कहते हैं न कि आपका बेटा एक जीनियस है, तो आपका बेटा ये धुन बजाकर दिखाए. मास्टरजी के कहने पर ही मेरे भाई ने वो धुन बजा दी. मास्टरजी को लगा कि रहमान ने उनकी उंगलियों की हरकत और धुन दिमाग में बैठाकर वो बजाया. मास्टरजी को यह जानना था कि रहमान को धुन याद था या फिर उंगलियों की हरकत . ये जानने के लिए उन्होंने हारमोनियम पर एक कपड़ा डाल दिया और कपड़े के अंदर से धुन बजाया और फिर रहमान को उनकी बजाई हुई धुन को बजाने के लिए कहा. रहमान की धुन बजाते हुए देख मास्टरजी काफी खुश हुए और उसे गोद में उठाकर गोल-गोल घुमाने लगे'.
जैसा कि रहमान के पिता शेखर चाहते थे कि उनके इस जीनियस बेटे की ये प्रतिभा चमके, लेकिन 1978 में एक हासदा हुआ. रहमान के पिता चल बसे. तब उनकी मां करीमा बेगम की उम्र 28 साल थी. छोटे से रहमान को अपने परिवार के गुजर-बसर करने के लिए अपने पिता के म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स को किराए पर देना पड़ा.
एक इंटरव्यू में एआर रहमान ने बताया, 'जब मेरे पिता गुजरे थे तब मैं 11-12 साल का था. तब मैं छोटे-मोटे काम करता था. मैं लाइव म्यूजिक और आर्केस्ट्रा के लिए सारे म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स को सेट करता था'. इस दौरान रहमान की मां ने हालात को संभाला, जिससे रहमान को असली मंजिल की ओर बढ़ने में मदद मिली.
इंटरव्यू के दौरान रहमान ने बताया, 'डैड के गुजर जाने के बाद मैं प्रोग्राम देखा करता था, मंदिरों में भी प्रोग्राम देखे. इस तरह से मैंने हर तरह के एक्सपीरियंस लिए. 13 साल की उम्र में मैंने बच्चों के साथ मिलकर अपना म्यूजिक बैंड बनाया. हमारे यहां तिरुविड़ा नाम का एक फेस्टिवल हुआ करता था. ऐसे बड़े फेस्टिवल में मैं फिल्मों के लाइव म्यूजिक किया करता था. पढ़ाई खत्म करने के बाद मैंने कुछ कॉमर्शियस किए और तभी मुझे एक नई दुनिया दिखाई दी'.
फिल्म म्यूजिक बिल्कुल नहीं सुनते थे रहमान
इंटरव्यू में रहमान ने बताया, मैं फिल्म म्यूजिक बिल्कुल नहीं सुनता था, क्योंकि मैं शुरुआती के 10 सालों तक कंपोजर के साथ काम किया बतौर की-बोर्ड प्लेयर. तो फिल्म म्यूजिक मेरे दिमाग पर हावी ना हो जाए, इसलिए फिल्म म्यूजिक के अलावा बाकी मैं सब कुछ सुनता था, फिर चाहे वो भारतीय शास्त्री संगीत हो या साउंड ट्रैक्स हो या फिर जॉन विलियम के म्यूजिक हो. मैंने एक और चीज का एक्सपेरिमेंट किया. मैंने इन सब चीजों को मिला लिया और अपना साउंड बना लिया. इस दौरान मेरे मन में सवाल आया कि मैं हमेशा दूसरों के लिए काम करता आ रहा हूं तो अपने लिए क्यों न करूं. तो क्यों दोनों को मिक्स किया जाए, जो मुझे और दूसरो को पंसद आए.