नई दिल्ली: दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए 5 फरवरी को मतदान होगा. आम आदमी पार्टी ने अपने सभी प्रत्याशियों के नाम का ऐलान कर दिया है. अरविंद केजरीवाल स्वयं नई दिल्ली विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. वहीं, बीजेपी ने इस सीट से जाट चेहरा प्रवेश वर्मा को चुनाव मैदान में उतारा है. ऐसे में अब जाटों का वोट पाने के लिए आम आदमी पार्टी ने बड़ा दांव खेला है. जाट समुदाय के वोट बैंक को दिल्ली चुनाव में बेहद प्रभावशाली माना जाता है. ऐसे में केजरीवाल ने जाट को केंद्र सरकार की ओबीसी लिस्ट में शामिल करने की मांग कर भारतीय जनता पार्टी पर बड़ा हमला बोला है.
केजरीवाल ने उठाई जाट समाज के लिए आरक्षण की मांग: गुरुवार को केजरीवाल ने दिल्ली के जाट वोट बैंक का ध्यान रखते हुए बड़ा ऐलान किया. उन्होंने कहा है कि पिछले 10 वर्षों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने बार-बार जाट समाज को केंद्र की ओबीसी सूची में शामिल करने का वादा किया, लेकिन इसे पूरा नहीं किया. उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार की ओबीसी सूची में जाट शामिल है, लेकिन केंद्र की ओबीसी सूची में उनका नाम नहीं है. नतीजा है कि दिल्ली में केंद्र सरकार के कॉलेज व अन्य संस्थाओं में उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिलता, जबकि अन्य राज्यों के जाटों को उसका लाभ मिलता है.
"जाट समुदाय के अलावा 5 जातियां भी राज्य की ओबीसी सूची में हैं, लेकिन केंद्र की ओबीसी सूची में नहीं हैं.इन 5 जातियों को भी केंद्र की ओबीसी सूची में शामिल किया जाना चाहिए ताकि इन 5 जातियों के युवाओं को केंद्र सरकार के संस्थानों में शिक्षा और रोजगार में समान अवसर मिल सकें. मैं जाट समुदाय के लिए लड़ूंगा और उन्हें केंद्र से आरक्षण दिलाऊंगा और इसके लिए जो भी जरूरी होगा, मैं करूंगा"-अरविंद केजरीवाल
समझिए क्या है दिल्ली की कास्ट पॉलिटिक्स: राजनीतिक विशेषज्ञ नवीन गौतम ने बताया कि दिल्ली के जातीय समीकरण को देखें तो 81 फीसद हिंदू वोटर हैं. 12 फीसद मुस्लिम, 5 फीसद सिख और तकरीबन एक-एक फीसद ईसाई और जैन समुदाय के वोटर हैं. वहीं, जातीय और क्षेत्रीय आधार पर दिल्ली में 25 फीसद वोटर पूर्वांचल के हैं, जो पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड के लोग दिल्ली में रहते हैं. जबकि, 22 फीसद के करीब पंजाबी वोटर हैं, जिनमें जाट और वैश्य वोटो की संख्या 8-8 फीसद है.
''दिल्ली की विधानसभा सीटों का सियासी मिजाज एक जैसा नहीं है. हर सीट का अपना समीकरण है और इसीलिए कोई भी राजनीतिक दल चुनाव से पहले हर तबके का वोट बैंक हासिल करने के लिए कोशिश करती है. आम आदमी पार्टी के अस्तित्व में आने के बाद पिछले तीन विधानसभा चुनाव परिणाम को देखें तो उनमें पूर्वांचल, वैश्य, पंजाबी और जाट मतदाता का रुझान जिसकी तरफ हुआ है, उसकी जीत निश्चित हुई है. कुछ सीटों पर दलित वोटर की भी भूमिका अहम हो जाती है.''-नवीन गौतम, राजनीतिक विशेषज्ञ