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आजादी के मतवालों की कब्रगाह से जुड़ा है यह रहस्यमयी गहरा कुआं, इस ऐतिहासिक स्थल को लेकर जागा कौतूहल - Dehradun Freedom Fighters Well - DEHRADUN FREEDOM FIGHTERS WELL

78th Independence Day 2024, 15 August 1947 देहरादून में गहरे कुएं से जुड़ा रहस्यमयी राज आज भी अनसुलझा है. यूं तो दशकों से इस कुएं के इतिहास और इसकी हकीकत को जानने की उत्सुकता लोगों में रही है, लेकिन करीब 200 साल पुराने इस ऐतिहासिक स्थल को लेकर स्वतंत्रता दिवस पर कौतूहल बढ़ जाता है. अंग्रेजों के समय स्वतंत्रता सेनानियों की कब्रगाह के रूप में देखी जाने वाली ये जगह आज खंडहर में तब्दील हो गई है. हालात ये है कि आजादी के इतने समय बाद भी इससे जुड़ी महत्वपूर्ण बातें और मान्यताएं अब भी रहस्य बनी हुई है. देहरादून में गहरे कुएं का क्या है राज और आजादी के मतवालों की इसे क्यों माना जाता है कब्रगाह? पढ़िए खास रिपोर्ट...

History of Well in Dehradun
अनसुलझा और रहस्यमयी कुआं (फोटो- ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Aug 15, 2024, 8:24 AM IST

Updated : Aug 15, 2024, 2:48 PM IST

रहस्यमयी कुएं पर स्पेशल रिपोर्ट (वीडियो- ETV Bharat)

देहरादून: उत्तराखंड के देहरादून का वो ऐतिहासिक स्थल, जिसके बारे में कहा-सुना तो गया, लेकिन कभी इसका दस्तावेजों में जिक्र नहीं आ पाया. न कभी इसकी ऐतिहासिकता को लिखित बयां किया जा सका और न ही इसके इतिहास को कहीं जगह मिल पाई, लेकिन इसके बावजूद पीढ़ी दर पीढ़ी इसकी कहानियां और मान्यताएं आगे बढ़ती रही. ऐसा ही एक रहस्यमयी जगह यानी कुआं है, जिसका इतिहास अनसुलझा और रहस्यमयी है.

देहरादून शहर में मौजूद है रहस्यमयी कुआं:दरअसल, देहरादून शहर के बीचों बीच जिलाधिकारी कार्यालय के ठीक पीछे करीब 200 साल पुराना कुआं है. जिस पर गुंबद नुमा स्ट्रक्चर बनाया गया है. ये कुआं करीब 350 फीट गहरा है. जिसमें पत्थर फेंकने से पता चलता है कि आज भी इसमें पानी मौजूद है. सालों साल से चली आ रही मान्यताओं से पता चलता है कि अंग्रेजों के समय में ही इसको बनाया गया था.

देहरादून का कुआं (फोटो- ETV Bharat)

शोरीज वैल से जाना जाता है कुआं:माना जाता है कि अंग्रेजी शासक एफजे शोरी ने इसे करीब 1820 में बनवाया था. इसलिए इसे शोरीज वैल नाम से भी जाना जाता है. इसका निर्माण पुराने पत्थरों से किया गया और उस दौरान इस पर उड़द की दाल का लेप लगाया गया था. ऐतिहासिक कुएं के पास में ही करीब 100 साल पुराना शिव मंदिर भी है. शिव मंदिर के पुजारी कहते हैं कि उनसे पहले मंदिर के पुजारी रहे उनके गुरु ने कुएं के बारे में कई कहानियां उन्हें बताई है.

कुएं में स्वतंत्रता सेनानियों की लाश को फेंकते थे अंग्रेज:शिव मंदिर के पुजारी पंडित सत्यनारायण मिश्रा कहते हैं कि इस कुएं में अंग्रेज स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी देने के बाद लाशों को फेंक दिया करते थे. इस काम को बेहद गोपनीय रूप से किया जाता था. ताकि, किसी को स्वतंत्रता सेनानियों की लाश ना मिले. इस दौरान अंग्रेजों ने कुछ मगरमच्छ भी इसमें छोड़ दिए थे. ताकि, यहां फेंकी जाने वाली लाशों को यह खा जाए. हालांकि, मंदिर के पुजारी कहते हैं कि इस कुएं में कई जलस्रोत होने की बात कही जाती है और यह पानी देहरादून से हरिद्वार तक जाता है.

200 साल पुराना कुआं (फोटो- ETV Bharat)

कभी-कभी कुएं से आती भयानक आवाजें:बताया जाता है कि आज भी इस कुएं से कभी-कभी भयंकर आवाजें आती है. माना जाता है कि कुएं में आज भी मगरमच्छ मौजूद हैं और जब वो ज्यादा हलचल करते हैं, तब कुएं के अंदर से आवाज आती है. कुएं की गहराई को इस बात से समझा जा सकता है कि इसमें जब पत्थर फेंका जाता है तो करीब 8 से 10 सेकंड बाद इससे पत्थर के टकराने की आवाज आती है. इसके बाद पानी की भी हलचल सुनाई देती है.

राज्य आंदोलनकारी प्रदीप कुकरेती ने दी ये खास जानकारी:देहरादून के इसी कुएं के पास अपना बचपन गुजारने वाले प्रदीप कुकरेती बताते हैं कि उनके पिता कुएं के पास अंग्रेजों की ओर से बनाए गए अस्तबल वाले भवनों में रहते थे. उनके पिता और बुजुर्गों ने भी उन्हें बताया था कि अंग्रेज जब किसी को फांसी के रूप में सजा देते थे, तब इसी कुएं में ऐसे लोगों के शव फेंक दिए जाते थे.

गहरा कुंआ (फोटो- ETV Bharat)

प्रदीप कुकरेती कहते हैं कि लोक निर्माण विभाग में ड्राफ्टमैन का काम करने वाले एक व्यक्ति ने साल 1950 के दौरान कुएं के संरक्षण के लिए तमाम अधिकारियों को पत्राचार किया था. इसके बाद प्रदीप कुकरेती ने भी साल 1985 के दौरान आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को पत्र लिखकर इसके संरक्षण एवं इस पर शोध की बात कही थी, लेकिन कभी भी इसके संरक्षण या इस पर शोध को लेकर सरकारों ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई.

कुएं के संरक्षण को लेकर काम करने की जरूरत:देहरादून निवासी केशव उनियाल भी इस ऐतिहासिक कुएं के संरक्षण को लेकर चिंतित नजर आते हैं. केशव कहते हैं कि उनके बुजुर्गों ने उन्हें इस कुएं के बारे में बताया था, लेकिन उनकी चिंता इस कुएं की पहचान बढ़ाने के लिए इसके संरक्षण के साथ उस जल स्रोत की भी है, जो इसमें मौजूद है. केशव उनियाल कहते हैं कि ऐतिहासिक कुएं का इस्तेमाल कई रूप से किया जा सकता था, लेकिन आज इसके संरक्षण और साफ सफाई तक के लिए कोई भी कदम नहीं बढ़ा रहा.

कुएं का गुंबद नुमा संरचना (फोटो- ETV Bharat)

इस कुएं का नहीं है कोई प्रमाण या लिखित दस्तावेज:उत्तराखंड के इतिहास पर तमाम लेख लिखने वाले इतिहासकार और वरिष्ठ पत्रकार शीशपाल गुसाईं कहते हैं कि देहरादून के इस कुएं का इतिहास बेहद महत्वपूर्ण है. अंग्रेजी लेखक वॉल्टन ने साल 1910 में देहरादून के इतिहास पर लिखी देहरादून गजेटियर में इस कुएं का जिक्र नहीं है. शीशपाल गुसाईं ने कहा कि किसी भी इतिहास की किताबों में इसका जिक्र नहीं है, लेकिन कई तरह चर्चाओं में ये बात कही जाती है. ऐसी चर्चाएं कई तरह की दूसरी ऐतिहासिक बातों को लेकर भी रखी जाती है, लेकिन जिनका कोई प्रमाण या लिखित दस्तावेज नहीं है.

स्वतंत्रता दिवस पर उठी कुएं के संरक्षण की मांग:गहरे कुएं का राज आज भी राज बना हुआ है. स्वतंत्रता दिवस पर एक बार फिर इस कुएं के संरक्षण की मांग स्थानीय लोगों की ओर की जा रही है. लोक निर्माण विभाग का भवन भी इस कुएं से लगा हुआ है. यह भवन साल 1890 में बनाया गया था. जबकि, इससे लगे हुए कुएं को इससे कई पहले यहां निर्मित कर दिया गया था. अंग्रेजों के घोड़ों के लिए इसी जगह पर अस्तबल का निर्माण, तारकोल के लिए एक बड़ा स्टोर भी यहां अंग्रेजों के समय बनाया गया.

खंडहर होता कुआं (फोटो- ETV Bharat)

माना जाता है आजादी के मतवालों की कब्रगाह:बताया जाता है कि अंग्रेजों ने न केवल सजा पाने वाले लोगों को फांसी देने के बाद इस कुएं में फेंक दिया. बल्कि, आजादी के दौरान अंग्रेजों की ओर से की गई बर्बरता में मारे गए लोगों के शवों को भी इसमें हमेशा के लिए दफन कर दिया जाता था. इसलिए इसे आजादी के मतवालों की कब्रगाह के रूप में बयां किया जाता है.

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Last Updated : Aug 15, 2024, 2:48 PM IST

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