पहाड़ी कोरवाओं की अनोखी प्रथा, परिवार के सदस्य की मौत पर छोड़ देते हैं घर, आज भी निभा रहे परंपरा - Unique Tradition Of Pahadi Korwa
Unique Tradition Of Pahadi Korwa Tribes छत्तीसगढ़ के पहाड़ी कोरवाओं में वैसे तो कई प्रथाएं प्रचलित है जो सुनने में काफी अटपटी लगती है. बावजूद इसके कोरवा आज भी अपनी प्रथाओं को लेकर काफी गंभीर है. ऐसी ही एक अनोखी प्रथा पहाड़ी कोरवा निभाते आ रहे हैं. इस प्रथा के अनुसार पहाड़ी कोरवा अपने घर के सदस्य की मौत होने के बाद उस घर को छोड़ देते हैं और नया बसेरा बना लेते हैं. कोरवा ऐसा क्यों करते हैं इसकी वजह जानने ETV भारत पहाड़ी कोरवाओं के गांव पहुंचा और उन्हीं से जानकारी ली.
पहाड़ी कोरवाओं की अनोखी प्रथा (ETV Bharat Chhattisgarh)
पहाड़ी कोरवाओं की अनोखी प्रथा (ETV Bharat Chhattisgarh)
कोरबा: छत्तीसगढ़ की पांच विशेष पिछड़ी जनजातियों में शामिल पहाड़ी कोरवाओं में आज भी कई रहस्यमयी प्रथाएं प्रचलित हैं. वनांचल में रहते हुए उनकी कई पीढ़ियां बीत चुकी हैं. इनमें कुछ ऐसी परंपरा चली आ रही है, जिनके बारे में जानकर आप भौचक्के रह जाएंगे. कहा जाता है कि आदिवासी ही इस पृथ्वी के मूल निवासी हैं. कोरवा से ही कोरबा जिले को उसका नाम मिला, लेकिन वह आज भी मुख्य धारा से नहीं जुड़ पाये हैं. जानकार कहते हैं इनकी परंपरा, जीवनशैली भी इनके विकास में बाधक बन जाते हैं.
कोरबा के पहाड़ी कोरवा (ETV BHARAT CHHATTISGARH)
कोरवाओं में एक अनोखी परंपरा है, जिसे कुप्रथा भी कह सकते हैं. जिसके कारण वह खानाबदोश जीवन जीते हैं. वह बेहद सीमित संसाधन से अपना घर जंगल में बनाते हैं. लेकिन जब इस घर में उनके परिवार के किसी सदस्य की मौत हो जाए. तब वह उस घर को पूरी तरह से त्याग देते हैं और वहां से पलायन कर किसी दूसरे स्थान पर जाकर फिर से अपना घर बनाते हैं. आखिर इसके पीछे क्या विचार और भ्रांतियां हैं. यह जानने के लिए ETV भारत कोरवाओं की बस्ती में पहुंचा और यह पता लगाने की कोशिश की कि आखिर कोरवा अपनी इस अनोखी परंपरा को आज भी क्यों निभा रहे हैं.
पहाड़ी कोरवा का उजड़ा मकान (ETV BHARAT CHHATTISGARH)
गमगीन माहौल से निकलने के लिए तोड़ देते हैं घर:अजगरबहार के बाघमारा में रहने वाला पहाड़ी कोरवा जनजाति का युवक चंद्रकुमार ने भी अपना घर छोड़ दिया है. चंद्रकुमार बोकलीभाटा में रहता था. महीनेभर पहले उसके माता पिता की मौत हो गई. उसके बाद चंद्रकुमार ने वो घर छोड़ दिया. घास फूंस, लकड़ी से कुछ लोगों की मदद से छोटा सा घर बना लिया .अब पत्नी और बच्चों के साथ चंद्रकुमार अपने नए घर में रहने लगा है.
माता पिता की मौत से मन काफी दुखी था. घर का माहौल एकदम गमगीन हो गया था. इस वजह से मैंने उसे घर को तोड़ दिया. माता-पिता के जाने के बाद मैं काफी तकलीफ में हूं. उस घर में उनका साया था, वह प्रेत आत्मा बन चुके हैं. वहां से निकलकर मैंने दूसरा घर बनाया है. चंद्रकुमार, माता पिता की मौत के बाद घर छोड़ने वाला कोरवा युवक
पीएम आवास, महतारी वंदन योजना का नहीं मिल रहा लाभ: चंद्रकुमार ने बताया कि पीएम आवास के लिए भी गांव के सरपंच, सचिव को आवेदन किया था, लेकिन उन्हें अब तक वह नहीं मिला है. महतारी वंदना योजना के 1000 रुपये भी पत्नी को नहीं मिल रहे हैं. किसी भी योजना का लाभ नहीं मिलने से आक्रोशित चंद्र कुमार का कहना है कि सारी योजनाएं शहर और अमीरों के लिए होती हैं. गरीबों तक योजना नहीं पहुंचती.
कई बार तो लोगों ने पीएम आवास भी त्याग दिया :गांव वालों से पता चला कि यह प्रथा कई सदियों से चली आ रही है. कोरवाओं में जब परिवार के किसी सदस्य की मौत हो जाती है, तो प्रेत बाधा और उस घर को अशुभ माना जाता है. इन सबसे और उस दुख से निकलने के लिए घर तोड़ दिया जाता है और नया घर बनाकर पूरा परिवार उसमें रहने चला जाता है. कई बार तो परिवार के सदस्य की मौत होने पर लोगों ने पीएम आवास का भी त्याग कर दिया है. हालांकि पीएम आवास बहुत कम लोगों को मिले हैं, कुछ लोगों के घर अधूरे भी थे. अभी भी पहाड़ी कोरवा इस तरह की परंपरा का पालन करते हैं.
हमारा घर भी एक ही कमरे का होता है. अगर बहुत बड़ा घर होता तो दूसरे कमरे में चले जाते, लेकिन एक ही कमरे के घर में रहने के कारण बार-बार मृत परिजन की याद और प्रेत बाधा जैसा कुछ महसूस होता है. इसलिए हम लोग घर छोड़ कर चले जाते हैं. मैंने भी 12 साल पहले अपना घर तोड़ दिया था. मैं अब दूसरे गांव आ गया हूं और मुझे यहां लगभग 12 वर्ष हो चुके हैं. - अंजोर साय, बुजुर्ग पहाड़ी कोरवा, बोकलीभाटा
कई बार हम देखते हैं की विशेष पिछड़ी जनजाति को मुख्य धारा से जोड़ने के प्रयास तो होते हैं. हालांकि वह प्रयास भी पूरी इच्छा शक्ति के साथ नहीं होते. लेकिन जितने प्रयास हुए, उसमें भी आदिवासियों की परंपरा और इस तरह की कुप्रथाएं उनके ही विकास में बाधक बन जाती हैं.- प्रकाश साहू, वरिष्ठ पत्रकार
कोरवाओं की पुरानी प्रथाओं ने रोका उनका विकास: पहाड़ी कोरवा ही इस धरती के मूल निवासी हैं. उनके ही नाम से कोरबा जिले को इसका नाम भी मिला है. लेकिन विडंबना ही है कि वह आज भी बेहद पिछड़े हुए हैं. पहाड़ी कोरवाओं में सदियों से यह प्रथा चली आ रही है कि परिवार के सदस्य की मौत हो जाए तो वह घर को ही त्याग देते हैं. उनकी खानाबदोश जीवनशैली के कारण आज भी वह बीहड़ वनांचल में निवास कर रहे हैं. हालांकि सरकारों ने पहाड़ पर रहने वाले कई कोरवाओं को नीचे उतारा है. उनके लिए मूलभूत सुविधाओं का इंतजाम किया है. लेकिन पूरी तरह से उनका विकास नहीं हो सका है. पहली तो योजनाएं आधी-अधूरी उन तक पहुंचती हैं, धरातल तक पहुंचने से पहले ही योजनाएं दम तोड़ देती है. तो दूसरी ओर इस तरह की कुप्रथाओं के कारण भी वह आज भी पिछड़ेपन में ही जीवन व्यतीत कर रहे हैं.