उमरिया: शहडोल संभाग के उमरिया जिले का बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व इन दिनों सुर्खियों में है. यूं तो बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व बाघों के लिए जाना जाता है, लेकिन पिछले कुछ समय से हाथियों के लिए भी खास पहचान बना रहा है. इन दिनों इस टाइगर रिजर्व की सबसे ज्यादा चर्चा हाथियों की वजह से ही हो रही है, क्योंकि बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में तीन दिन में 10 हाथियों के मौत से पूरा देश हिल गया है. आखिर बांधवगढ़ में हाथी कैसे पहुंचे? बांधवगढ़ को कैसे अपना स्थाई पता बनाया? आईये जानते हैं.
जब बांधवगढ़ में हाथियों की हुई एंट्री
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व 1536 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. ये बाघों के लिए खास पहचान रखता है. क्योंकि यहां बाघों के दीदार बड़ी आसानी से हो जाते हैं. ज्यादातर पर्यटक बाघों के दीदार के लिए ही इस टाइगर रिजर्व में पहुंचते हैं. लेकिन पिछले कुछ सालों से बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व की पहचान हाथियों की वजह से भी बन रही है, क्योंकि 2018 से ही हाथियों ने इसे अपना स्थाई पता बना लिया है. ऐसा नहीं है कि पहले यहां हाथी नहीं आते थे, छत्तीसगढ़ के रास्ते कॉरिडोर का इस्तेमाल करते हुए पहले भी इस टाइगर रिजर्व में हाथी पहुंचते थे. लेकिन कुछ समय के लिए आते थे, विचरण करते थे और चले जाते थे. लेकिन 2018 में जब से 40 हाथियों का एक पूरा झुंड बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में पहुंचा तब से उन्होंने स्थाई पता बना लिया और इनकी संख्या लगातार बढ़ती गई. अभी यहां 60 से 65 के बीच हाथी मौजूद हैं.
हाथियों को बांधवगढ़ क्यों पसंद आया
आखिर बांधवगढ़ ही हाथियों को क्यों पसंद आया? यह भी एक बड़ा सवाल है. क्योंकि जब छत्तीसगढ़ से मध्य प्रदेश में हाथियों ने एंट्री की और 2018 से बांधवगढ़ को अपना स्थाई पता बनाया उसके बाद से हर कोई यह जानना चाह रहा है कि आखिर बांधवगढ़ में ही हाथी क्यों रहना चाहते हैं. पर्यावरण विद संजय पयासी बताते हैं कि, ''बांधवगढ़ हाथियों के लिए बहुत ही सुरक्षित जगह है. यहां घना जंगल है, पानी की अवेलेबिलिटी है, छोटी-छोटी कई नदियां हैं. हाथियों के लिए पर्याप्त भोजन है. और जहां भी किसी जीव को पर्याप्त भोजन, पानी और रहने के लिए उचित स्थान मिलेगा वह उसकी पसंदीदा जगह तो बन ही जाएगी. सबसे बड़ी बात की यहां बाकी जगहों की अपेक्षा यहां किसी तरह का कोई दखल नहीं है, जिसके चलते आसानी से हाथी यहां रह रहे हैं. इस वजह से भी हाथियों की यह पसंदीदा जगह बनी और हाथियों ने इसे अपना स्थाई पता बनाया.''
हाथियों का स्वभाव विचरण वाला
पर्यावरण विद संजय पयासी कहते हैं कि, ''हाथियों का स्वभाव ही विचरण वाला होता है. वो एक जगह नहीं रहते हैं, घूमते रहते हैं. इसीलिए वह पहले भी मध्य प्रदेश आते थे, बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व आते थे और यहां के जंगलों में घूम कर वापस चले जाते थे. लेकिन जब उनकी स्थाई जगह पर डिस्टरबेंस बढ़ने लगता है, लोगों का दखल बढ़ने लगता है और उन्हें परेशानी होने लगती है तो फिर वहां से वह मूव कर जाते हैं. विचरण के लिए अक्सर ही वो बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व आते थे बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में उन्हें वो सब चीजे मिलीं जो हाथियों के जीवन यापन के लिए जरूरी होती हैं.''
पुरखों के बताए रास्ते पर चलते हैं हाथी
पर्यावरण विद संजय पयासी कहते हैं कि, ''हाथी एक अलग ही तरह का जीव है. सबसे बड़ी बात इनमें होती है कि ये पुरखों के बताए रास्ते पर चलते हैं. इसे बहुत बुद्धिमान जानवर माना जाता है. इनकी जेनेटिक मेमोरी भी बहुत अच्छी होती है. ऐसा माना जाता है कि उनमें जेनेटिक मेमोरी उनके डीएनए से आती है. हाथी जन्म से ही अपने रास्तों को जानता है. सैकड़ों साल पुरानी बातें भी इन्हें याद रहती हैं. डॉल्फिन के बाद हाथियों की याददाश्त सबसे तेज होती है. कुत्तों के बाद सूंघने की क्षमता भी हाथी में सबसे तेज होती है. बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व उनके लिए कोई नया नहीं है, ये इनका पुराना कॉरिडोर ही है. 80 के दशक के आसपास हाथी असम से झारखंड होते हुए उड़ीसा आए. उड़ीसा से छत्तीसगढ़ आए और छत्तीसगढ़ से मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के लिए मूव किया.''
हाथियों का कॉरिडोर
हाथियों के कॉरिडोर की बात करें तो छत्तीसगढ़ के जनकपुर से होते हुए यह शहडोल के जयसिंहनगर होते हुए उमरिया जिले के बांधवगढ़ जाते हैं. बांधवगढ़ में बाकी जगह की तुलना में डिस्टरबेंस नहीं है. यहां कई ऐसी छोटी-छोटी नदियां बहती हैं जो हाथियों के लिए बहुत ही अच्छी हैं. हाथियों के कॉरिडोर में एक अच्छी बात यह भी होती है कि जितने कम गड्ढे नदी नाले होंगे उन्हें उतना पसंद होगा. जिस रास्ते पर भी हाथी चल रहे हैं वो उनका पुराना रास्ता होता है.