उमरिया (अखिलेश शुक्ला):उमरिया जिले के बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में बाघ ही नहीं बल्कि यहां गिद्धों का भी घर है. बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व पर्यटकों के बीच केवल इसलिए पसंदीदा है, क्योंकि यहां बाघों का बड़ी आसानी से दीदार हो जाता है, लेकिन क्या आपको पता है, कि यहां कई अलग-अलग प्रजातियों के गिद्ध भी पाए जाते हैं. साल दर साल इनकी संख्या भी अब बढ़ रही है.
बांधवगढ़ में फिर होगी गिद्धों की गणना
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में एक बार फिर से फरवरी माह में गिद्धों की गणना की जाएगी. उम्मीद जताई जा रही है कि पिछली बार की तुलना में इस बार ज्यादा गिद्ध मिलेंगे, क्योंकि काफी तादात में इन दिनों बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में गिद्ध नजर आ रहे हैं. बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के उप संचालक पीके वर्मा बताते हैं कि "टाइगर रिजर्व में फरवरी के 17, 18 और 19 इन तीन दिनों में गिद्धों की गणना का काम पूरा किया जाएगा."
बांधवगढ़ में गिद्धों का बसेरा (ETV Bharat) काफी संख्या में हैं गिद्ध
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में काफी संख्या में गिद्ध नजर आ रहे हैं. बड़ी आसानी से यहां गिद्ध दिख भी जाते हैं, पिछले साल 2024 में बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में दो बार गिद्धों की गणना की गई थी. पहली गणना साल 2024 में फरवरी महीने में 16, 17 और 18 फरवरी को की गई थी. जिसमें 16 फरवरी को 242 गिद्ध देखे गए थे, जो वयस्क थे. साथ ही 12 बच्चे भी थे. 17 फरवरी को 166 गिद्ध देखे गए थे, जो वयस्क थे और 14 बच्चे भी देखे गए थे. फिर 18 फरवरी को 219 गिद्ध दिखे, जो वयस्क थे, जिसमें 14 बच्चे भी थे.
कहां-कहां पाई जाती हैं गिद्धों की प्रजातियां (ETV Bharat) इसके बाद साल 2024 के अप्रैल में एक बार फिर से 29 अप्रैल 30 अप्रैल और 1 मई को तीन दिन की गणना की गई. जिसमें 29 अप्रैल को 164 वयस्क गिद्ध दिखे और 21 बच्चे दर्ज किए गए. 30 अप्रैल को 246 वयस्क और 33 बच्चों को देखा गया. 1 मई को 257 वयस्क गिद्ध और 43 बच्चे गिद्ध दिखे, इस तरह से देखा जाए तो बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में साल 2024 में वयस्क और बच्चे गिद्ध मिला करके लगभग 300 के आसपास गिद्ध दर्ज किए गए. जो एक काफी बड़ी संख्या है. जिस तरह से बच्चों की संख्या 2024 में देखी गई थी. उसे देखते हुए ये कहा जा सकता है कि साल 2025 में जब गिद्धों की गणना होगी, तो इसमें यह संख्या और बढ़ेगी.
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व (ETV Bharat) बांधवगढ़ में किस-किस प्रजाति के गिद्ध
बांधवगढ़ में गिद्धों की संख्या लगातार बढ़ रही है. अच्छी खासी तादात भी है, लेकिन किस-किस प्रजाति के गिद्ध इस टाइगर रिजर्व में पाए जाते हैं. इसे लेकर बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के उप संचालक पी के वर्माबताते हैं कि "साल 2024 की गणना में बांधवगढ़ में ज्यादातर देसी प्रजाति की गिद्ध, कुछ हिमालयन गिद्ध, राज गिद्ध, सफेद गिद्ध, और काला गिद्ध इतनी प्रजातियां साल 2024 में जो गणना की गई थी, उसमें देखी गई थी."
बांधवगढ़ में किस-किस प्रजाति के गिद्ध (ETV Bharat) कहां-कहां पाई जाती हैं ये प्रजातियां
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में गिद्धों की जो प्रजातियां पाई जाती हैं. उसमें जो सफेद गिद्ध पाया जाता है, ये गिद्ध मध्य प्रदेश के अलावा गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, पंजाब, राजस्थान, उत्तराखंड देश के कई अलग-अलग हिस्सों में देखे जाते हैं.
- इसके अलावा राज गिद्ध की बात करें तो ये गिद्ध मध्य प्रदेश के साथ-साथ उत्तर प्रदेश और भारत के कई प्रदेशों में भी दिखाई पड़ता है.
- देसी गिद्ध की बात करें तो ये गिद्ध मध्य प्रदेश के अलावा गुजरात, हरियाणा, राजस्थान में भी दिखता है.
- हिमालयन गिद्ध की बात करें तो ये गिद्ध उत्तरी भारत के कुछ प्रदेशों में पाया जाता है, ये मध्य प्रदेश में भी दिखाई देता है.
- काला गिद्ध की बात करें तो ये गिद्ध मध्य प्रदेश के साथ उत्तर भारत के कई प्रदेशों में दिखाई पड़ता है.
ये सभी गिद्ध मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ के टाइगर रिजर्व में पिछले साल हुए गिद्धों की गणना में देखे गए थे. इस साल जब फिर से गणना होगी तो कई और नई प्रजातियां भी नजर आ सकती हैं.
बांधवगढ़ में गिद्धों की होगी गणना (ETV Bharat) जब गिद्धों पर आया था संकट
गिद्ध हमारे पर्यावरण के लिए जरूरी हैं, क्योंकि इसकी खान-पान की आदतें पारिस्थितिकी तंत्र या इकोसिस्टम को सही करती हैं. यह उसमें एक अहम रोल अदा करते हैं. एक तरह से कहा जाए तो गिद्ध फ्री में पारिस्थितिक तंत्र सेवाएं प्रदान करते हैं, जो पारिस्थितिकी तंत्र और वन्य जीवों के मानव कल्याण में किए जाने वाले योगदान हैं.
पर्यावरण के लिए इतना जरूरी होने के बाद भी गिद्ध की प्रजाति पर उस समय संकट आया, जब 1990 के दशक के मध्य आते-आते 5 करोड़ की आबादी वाले गिद्धों की संख्या डाइक्लोफिनेक नाम की दवा की वजह से घटने लग गई थी. डाइक्लोफिनेक वो दवा है, जो मवेशियों के लिए एक सस्ती और गैर स्टेरॉयड दर्द निवारक दवा है. जो गिद्धों के लिए घातक होती है. कहा जाता है कि जो भी पक्षी इस दवा से इलाज किए गए पशुओं के शवों को खाते थे, वो किडनी फेलियर की वजह से मर जाते थे.
पहले गायों के इलाज के लिए इस्तेमाल करने वाली दवाओं में यह दवा प्रमुख दवा थी. उन गायों को यह गिद्ध उनके मरने के बाद खाते थे. जिसकी वजह से उनकी मौत होने लगी थी, हालांकि उस दवा पर पशु चिकित्सा उपयोग पर कई साल पहले से ही प्रतिबंध लगा दिया गया था. अब पिछले कुछ सालों से एक बार फिर से गिद्धों की संख्या में इजाफा हो रहा है, जो पारिस्थितिकी तंत्र के लिए हमारे पर्यावरण के लिए बहुत ही अच्छी खबर है.