नीमच (मनीष बागड़ी): 1857 की क्रांति के दौरान नीमच से आजादी की अलख जगाने वाले 27 क्रांतिकारियों को अंग्रेजों ने इस बरगद पर फांसी के फंदे पर चढ़ा दिया था. 27 क्रांतिकारियों को यहां एक ही बरगद पर एकसाथ फांसी पर लटका दिया गया था. 168 साल बाद यह बरगद का पेड़ आज भी नीमच में चर्चा का विषय बना रहता है. क्षेत्र के लोग इस पेड़ के पास जाने से भी डरते हैं. इस पेड़ की रक्षा आर्मी, नेवी और एयरफोर्स से रिटायर्ड लोग करते हैं. शहीद दिवस, कारगिल दिवस, 15 अगस्त और 26 जनवरी को यहां कई आयोजन भी होते हैं. इस दौरान यहां वीर सैनिकों को श्रद्धांजलि दी जाती है. 26 जनवरी के मौके पर हम आपको बता रहे हैं जल्लाद बरगद की कहानी.
शहीदों का चश्मदीद गवाह है पेड़
इतिहासकार व प्रोफेसर डॉ. सुरेंद्र सिंह ने ईटीवी मध्य प्रदेश को जानकारी देते हुए बताया, " अंग्रेजों से लड़ाई में नीमच जिले का विशेष योगदान रहा है. अंग्रेजों ने आजादी के लिए आवाज उठाने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी पर लटकाया था. यहां आज भी वो पेड़ है. ये पेड़ 1857 की क्रांति के उन शहीदों का चश्मदीद गवाह है. 1857 की क्रांति में नीमच से क्रांति जगाने वाले क्रांतिकारियों को अंग्रेजों ने फांसी के फंदे पर चढ़ा दिया था. उनकी संख्या सैकड़ों में थी. फांसी की सजा पाने वाले 27 क्रांतिकारी में, रामरतन खत्री, रूप सिंह राजपूत, प्यारे खान पठान, केसर सिंह बैंस, दिलीप सिंह जैसे कई नाम उस दौर में काफी चर्चित थे."
रिटायर सैनिक करते हैं देखरेख
जहां पर यह पेड़ है, उस स्थान पर 2003 में विधायक दिलीप सिंह परिहार ने आसपास हो रहे अतिक्रमण को हटाकर उस स्थान पर शहीद पार्क बना दिया. इसकी देखरेख के लिए अब पूर्व सैनिक संकल्पित हैं. बता दें बरगद के पेड़ के ऊपर चढ़ा दिए गए अनेक क्रांतिकारियों को गोलियों से भून दिया गया था, तो कुछ को तोप के मुंह से बंद कर उड़ा दिया गया था. उनमें ठाकुर केसरी सिंह, राम रतन खत्री और उसके साथ में ही अन्य अनेक लोग थे. सलीम खान पठान के साथ-साथ रूप सिंह जैसे कई लोगों ने यहां पर फांसी के फंदे पर चढ़कर अपने प्राणों को न्यौछावर किया है.
ऐसे हुआ क्रांति का आगज किया
इतिहासकार व प्रोफेसर डॉ. सुरेंद्र सिंह कहते हैं, ''नीमच का गौरवशाली इतिहास इस दृष्टि से है कि 3 जून 1857 को मोहम्मद अली बेग ने क्रांति का आगाज किया था. 1857 की क्रांति पूरे मध्य भारत की क्रांति है. पूरे मध्य प्रदेश में 1857 के क्रांति में पहली गोली चलने का गौरव केवल और केवल नीमच को प्राप्त है.''