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चुनाव से पहले झारखंड सरकार का रिपोर्ट कार्ड, सीएम हेमंत के वादों का क्या हुआ हाल, क्या बचे समय में पूरी होंगी लोगों की उम्मीदें - Reality of JMM promises

By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Jul 10, 2024, 4:14 PM IST

Promises in JMM manifesto. चुनाव नजदीक है और जनता से किए गए वादे अब भी अधूरे हैं. सीएम हेमंत सोरेन के पास छह महीने से भी कम समय बचे हैं. 2019 में जब वे सरकार में आए थे तो उन्होंने जनता से कई वादे किए थे. अब फिर से वे चुनाव में जाने वाले हैं. ऐसे में उनके द्वारा किए गए उन वादों का क्या हुआ, पढ़िए यह रिपोर्ट.

Promises in JMM manifesto
ईटीवी भारत ग्राफिक्स इमेज (ईटीवी भारत)

रांची: झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 में अब छह महीने से भी कम समय बचा है. तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी कम समय में ज्यादा काम करने की बात कर रहे हैं. भले ही इन पांच सालों में तीन बार मुख्यमंत्री बदले गए, लेकिन सरकार जेएमएम, कांग्रेस और आरजेडी की महागठबंधन की ही रही. ऐसे में चुनाव से पहले एक बड़ा सवाल यह है कि क्या सरकार 2019 में जिन वादों के साथ चुनाव में उतरी थी, उन्हें पूरा कर पाई है. अगर नहीं, तो कौन से वादे पूरे नहीं हो पाए. वहीं एक सवाल यह भी है कि सरकार बचे हुए छह महीने में कितने बचे हुए वादे पूरे कर पाएगी. आइए हेमंत सोरेन द्वारा किए गए वादों और कौन से वादे अधूरे रह गए, उसके बारे में विस्तार से जानते हैं.

सीएम हेमंत के वादे क्यो नहीं हुए पूरे (ईटीवी भारत)

2019 के विधानसभा चुनाव में हेमंत सोरेन ने तत्कालीन सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी सरकार को सत्ता से बेदखल करने के लिए महागठबंधन के नेता के रूप में आक्रामक तरीके से लड़ाई लड़ी थी. रघुवर दास के पांच साल के शासन से नाखुश समाज के विभिन्न वर्गों के लिए कई लोकलुभावन घोषणाएं की गई थीं. अब जब महागठबंधन सरकार का पांच साल का शासन पूरा होने वाला है, तो झामुमो के घोषणापत्र और वादों पर गौर करें तो निश्चित रूप से कुछ वादों को पूरा करने का प्रयास किया गया है, जबकि कई पर अमल होना अभी बाकी है.

युवाओं के लिए घोषणाएं -झामुमो ने 2019 में अपने घोषणा पत्र में युवाओं के लिए बहुत सारी घोषणाएं की थी. युवाओं के अधिकार के तहत झामुमो का वादा था कि दो वर्षों के अंदर सरकार राज्य में रिक्त विभिन्न सरकारी पदों पर लाखों झारखंडी युवक-युवतियों की नियुक्ति करेगी. लेकिन सच्चाई यह है कि आज भी सरकारी विभागों में लाखों सृजित पद रिक्त हैं. विधानसभा में सरकार द्वारा दिए गए उत्तर से स्पष्ट है कि हेमंत सरकार रिक्त सरकारी पदों को भरने में सफल नहीं हो पाई है.

बेरोजगारी भत्ता -इसी तरह युवाओं को बेरोजगारी भत्ता देने का झामुमो का बेहद आकर्षक चुनावी वादा भी फलीभूत नहीं हुआ है. झामुमो ने 2019 में वादा किया था कि नौकरी नहीं दे पाने की स्थिति में सरकार बेरोजगार स्नातक युवाओं को ₹5000 तथा बेरोजगार स्नातकोत्तर युवाओं को ₹7000 बेरोजगारी भत्ता देगी. झामुमो ने ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं से एक और खास वादा किया था, वह था राज्य की प्रतियोगी परीक्षाओं में दस प्रतिशत अतिरिक्त अंक देकर मेधा सूची तैयार करने का वादा. लेकिन यह वादा भी पूरा नहीं हुआ. वहीं नशे के चंगुल में फंस चुके युवाओं को बचाने तथा उन्हें इस लत से मुक्ति दिलाने के लिए हर प्रखंड में नशा मुक्ति केंद्र खोलने का झामुमो का वादा आज भी फलीभूत नहीं हुआ है.

महिलाओं के लिए घोषणाएं -महिलाओं के अधिकार के तहत 2019 के विधानसभा चुनाव में झामुमो ने ढेर सारे वादे किए थे. लड़कियों के लिए प्राथमिक से पीएचडी तक की सारी शिक्षा मुफ्त करने, हर अनुमंडल में महिला कॉलेज खोलने, पूरे राज्य में महिला बैंक स्थापित करने, तीन साल से कम उम्र के बच्चों वाली महिला श्रमिकों को 15% अधिक न्यूनतम मजदूरी देने, गरीब परिवारों की महिलाओं को खाना बनाने के खर्च के रूप में ₹2000 प्रतिमाह देने और 03 लाख की आबादी पर एक महिला थाना खोलने का वादा अब तक पूरा नहीं हुआ है.

सीएम हेमंत के वादे (ईटीवी भारत)

गरीबों के लिए वादा -गरीबों के अधिकार के तहत झारखंड मुक्ति मोर्चा ने 2019 के विधानसभा चुनाव में बेहद लोकलुभावन वादा किया था कि हर गरीब परिवार को हर साल 72 हजार रुपये की राशि सुनिश्चित की जाएगी. जन वितरण प्रणाली (पीडीएस) की दुकानों में चायपत्ती, सरसों तेल, साबुन, सब्जी और दाल उपलब्ध कराने का वादा भी अधूरा है.

किसान और मजदूर के लिए वादा - किसानों और खेतिहर मजदूरों के अधिकार के तहत झारखंड मुक्ति मोर्चा ने 2019 के विधानसभा चुनाव में राज्य के किसानों से ढेर सारे वादे किए थे. उन वादों में राज्य में "किसान बैंक" की स्थापना, सब्जियों का एमएसपी तय करना, किसानों के फसल उत्पादन के लागत मूल्य का 150% न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करना, हर प्रखंड में मॉडल किसान विद्यालय खोलना जैसे कई वादे अधूरे हैं, जबकि किसानों के कर्ज माफ करने में सरकार ने दो कदम आगे जरूर बढ़ाया है.

आदिवासी और अल्पसंख्यक के लिए वादे -झामुमो ने 2019 के विधानसभा चुनाव के दौरान अपने घोषणा पत्र में आदिवासी, दलित कल्याण और वन संरक्षण के तहत राज्य में "पेसा एक्ट" को सख्ती से लागू करने का वादा किया था. जो अधूरा रहा. खनन की जगह पर्यटन विकास नीति जैसी योजनाएं भी लागू नहीं हो सकीं.

झामुमो ने 2019 में राज्य के अल्पसंख्यकों से भी कई वादे किए थे, जिसमें सच्चर कमेटी की रिपोर्ट लागू करना पहले नंबर पर था. चुनावी घोषणा पत्र में दिए गए सच्चर कमेटी की रिपोर्ट लागू करना, अल्पसंख्यक कल्याण बोर्ड, उर्दू अकादमी का गठन जैसे वादे आज भी अधूरे हैं.

सीएम हेमंत के वादे (ईटीवी भारत)

शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए वादे -शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी जनता से किए गए वादों को झामुमो भूल गया. 2019 में झामुमो ने शिक्षा और स्वास्थ्य की स्थिति सुधारने के लिए जनता से कई वादे किए थे, जो अब भी अधूरे हैं, जबकि सरकार अपना कार्यकाल पूरा करने वाली है. सभी सरकारी स्कूलों में कंप्यूटर शिक्षा, गिरिडीह-साहिबगंज में मेडिकल कॉलेज खोलने, निजी स्कूलों में मनमानी फीस वृद्धि पर रोक लगाने, कैंसर, किडनी, लीवर जैसी गंभीर बीमारियों में गरीबों का सारा खर्च सरकार द्वारा उठाने के वादे पूरे नहीं हो सके.

स्मार्ट सिटी का वादा -शहरी विकास और पर्यटन के क्षेत्र में झामुमो ने 2019 में राज्य की जनता से वादा किया था कि 25 हजार करोड़ खर्च कर पलामू, गढ़वा, गिरिडीह, चाईबासा, दुमका और देवघर को विश्वस्तरीय शहर के रूप में विकसित किया जाएगा और स्मार्ट सिटी बनाया जाएगा. सरकार के 05 साल पूरे होने वाले हैं और शहर का स्वरूप सबके सामने है. राज्य के सभी पर्यटन स्थलों को जोड़ते हुए पलामू, संथाल परगना और चाईबासा को पर्यटन सर्किट बनाने का वादा भी अधूरा है.

प्रशासनिक सुधार को लेकर भी झामुमो के घोषणा पत्र में कई वादे थे. 2019 में झामुमो ने पलामू, चाईबासा और हजारीबाग को उपराजधानी बनाने और राज्य के 40 हजार अधिवक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए झारखंड अधिवक्ता अधिनियम बनाने का वादा किया था, लेकिन वादा पूरा नहीं हुआ.

सीएम हेमंत के वादे (ईटीवी भारत)

संविदाकर्मियों से किए गए वादे -झामुमो ने राज्य के संविदाकर्मियों से भी कई वादे किए थे, जिसमें संविदा पर नियुक्ति की व्यवस्था समाप्त कर स्थायी नियुक्ति के माध्यम से नौकरी देने का वादा किया गया था, लेकिन इस सरकार में संविदा से भी बदतर व्यवस्था के साथ थर्ड पार्टी भर्ती खुलेआम की गई. होमगार्ड और सहायक पुलिसकर्मियों को पुलिस भर्ती में आयु सीमा में छूट देने और भविष्य में होने वाली पुलिस भर्ती में उन्हें 50% आरक्षण देने का वादा भी पूरा नहीं किया गया.

खिलाड़ियों के वादे अधूरे - 2019 के विधानसभा चुनाव से पहले झामुमो ने राज्य में खेलों को बढ़ावा देने के लिए मतदाताओं से कई वादे किए थे. जिसमें कहा गया था कि पंचायत स्तर से लेकर राज्य स्तर तक खेल के क्षेत्र में विभिन्न पदों का सृजन किया जाएगा, ताकि खिलाड़ियों को नौकरी मिल सके. बहुउद्देश्यीय खेल प्रशिक्षण संस्थान का निर्माण और सभी प्रमंडलों में खेल महाविद्यालय खोलने के वादों के पूरा होने का राज्य के युवा और खिलाड़ी आज भी इंतजार कर रहे हैं.

2014 का वादा भी अबतक अधूरा -2019 के विधानसभा चुनाव के दौरान झामुमो ने जनता से 2014 की यूपीए सरकार के जनकल्याणकारी फैसलों को फिर से लागू करने का वादा किया था. 2014 में झारखंड में यूपीए की सरकार बनी थी. उस समय के बादे को आगे बढ़ाते हुए झामुमो ने 2019 में वादा किया था कि महिलाओं को सरकारी नौकरियों में 50% आरक्षण दिया जाएगा. साथ ही गरीब लड़की की शादी के बाद सुखी वैवाहिक जीवन के लिए सोने के सिक्के के साथ जरूरी सामान देने की योजना शुरू की जाएगी. ये सभी वादे बस वादे ही रह गए हैं.

जनता को महागठबंधन ने दिया धोखा- भाजपा

झारखंड मुक्ति मोर्चा के चुनावी घोषणापत्र को आगे रखकर भारतीय जनता पार्टी ने महागठबंधन सरकार को घेरने की पूरी तैयारी कर ली है. भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता अविनेश कुमार सिंह कहते हैं कि राज्य की जनता समझ चुकी है कि उनके साथ धोखा हुआ है. महिलाओं को 50% आरक्षण, युवाओं को बेरोजगारी भत्ता, पलामू, हजारीबाग और चाईबासा को उपराजधानी बनाने का धोखा, किसानों को सब्जियों के लिए एमएसपी का अधूरा वादा, समाज का कोई वर्ग ऐसा नहीं है जिसे झामुमो और महागठबंधन सरकार ने न ठगा हो.

भाजपा की साजिश के कारण वादे रहे अधूरे-झामुमो

वहीं भाजपा के इस आरोप पर झामुमो के केंद्रीय प्रवक्ता मनोज पांडेय कहते हैं कि सत्ता में आते ही पहले कोरोना महामारी और बाद में भाजपा ने जनता के लिए समर्पित होकर काम करने में बाधाएं खड़ी कर दीं, जिसके कारण कई वादे अधूरे रह गए. राज्य की जनता झामुमो और महागठबंधन की मंशा को भलीभांति समझती है और उन खलनायकों को भी पहचानती है, जिन्होंने केंद्रीय एजेंसी का दुरुपयोग कर सरकार को अस्थिर करने की कोशिश की, जिससे राज्य में विकास की गति अवरुद्ध हो गई.

उन्होंने कहा कि इसके बावजूद कोरोना काल में सफल प्रबंधन के साथ-साथ राज्य में पुरानी पेंशन योजना लागू करना, 100 यूनिट बिजली माफ करने की चुनावी घोषणा से आगे बढ़कर 200 यूनिट बिजली बिल माफ करना, ओबीसी आरक्षण को 14% से बढ़ाकर 27% करने का विधानसभा से प्रस्ताव पारित करना, 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति, सरना धर्म कोड जैसे कई काम किए गए हैं. भाजपा बताए कि उनके वादों का क्या हुआ?

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