रतलाम: दशहरे पर रावण दहन कर विजयदशमी का त्यौहार मनाया जाता है, लेकिन मध्य प्रदेश के रतलाम में एक गांव ऐसा है, जहां रावण का वध 6 महीने पहले ही हो जाता है. वह भी नाभि में तीर मारकर नहीं बल्कि उसकी नाक पर भाले से वार कर. जी हां, ये सब रतलाम के चिकलाना और कालूखेड़ा में होता है. कुछ ऐसा ही मंदसौर जिले के गांवों में भी होता है, जहां दशहरा चैत्र नवरात्रि के बाद ही मना लिया जाता है. यहां की परंपरा है कि मिट्टी से बनाए जाने वाले रावण का वध गांव के सबसे वरिष्ठ व्यक्ति करते हैं. चैत्र नवरात्रि में रामनवमी के ठीक अगले दिन यह अनोखा आयोजन होता है, जिसे देखने आसपास के गांव सहित दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं.
चैत्र नवरात्रि के बाद यहां होता है दशहरा
दरअसल, रतलाम के चिकलाना और कालूखेड़ा में यह अनोखी परंपरा करीब 400 सालों से जारी है. गांव के नरेंद्र सिंह चंद्रावत बताते है कि इन गांवों की स्थापना के साथ ही यह परंपरा लगातार जारी है. इसके पीछे का कारण पूछे जाने पर नरेंद्र सिंह बताते हैं, '' रावण द्वारा किया गया कृत्य क्षमा के योग्य नहीं था. रावण का दहन कर देना उसके पापों की पर्याप्त सजा नहीं है. बल्कि नाक काटकर उसे अपमानित करना और उसके घमंड को चूर करना इस परंपरा का लक्ष्य है, जिसके चलते हर वर्ष चैत्र नवरात्रि की रामनवमी के अगले दिन दशहरा मनाया जाता है.''
शारदीय नवरात्रि के दशहरे पर नहीं होता रावण दहन
जहां देश भर में शारदीय नवरात्रि के बाद विजयदशमी का त्यौहार मनाया जाता है और रावण का दहन किया जाता है. इसके विपरीत रतलाम और मंदसौर के इन गांवों में चैत्र नवरात्रि की रामनवमी के अगले दिन दशहरा मनाया जाता है, जिसमें रावण के प्रतिमा की नाक भाले से काटकर त्योहार मनाया जाता है. इस दौरान इन गांव में मेले का आयोजन भी किया जाता है. स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार विजयदशमी यानी इस शारदीय नवरात्रि के दशहरे पर गांव में किसी तरह का आयोजन नहीं किया जाता है. ना ही कोई रावण दहन होता है.