हैदराबाद: धरती कई विचित्र चीजों की जन्मस्थली है. इसमें जैव विविधता की अपनी एक खास पहचान है. इस ग्रह पर कई ऐसी दुर्लभ प्रजातियां हैं, जिनसे हम अनजान हैं. वैज्ञानिक ऐसी चीजों की खोज के लिए लगातार रिसर्च कर रहे हैं. इसी कड़ी में शोधकर्ताओं ने आंध्र प्रदेश के पूर्वी घाट में एक दुर्लभ प्रजाति के दो मेंढकों की पहचान की है. इन्हें राना ग्रेसिलिस...गोल्डन बैक्ड फ्रॉग...श्रीलंकाई ब्राउन ईयरड श्रब फ्रॉग...स्यूडोफिलॉटस रेगियस के नाम से भी जाना जाता है. ये दोनों दुनिया में सिर्फ श्रीलंका में ही पाए जाते हैं, लेकिन पहली बार भारत में इनके अस्तित्व का पता चला है.
इको सिस्टम मानव अस्तित्व का सूचक होता है. अगर यह अच्छा है जैव विविधता नहीं नष्ट होगी. इको सिस्टम को जीवों के सहारे की जरूरत होती है. इसमें वेरटेब्रेट्स और एम्फिबियंस की खास जगह होती है. जीवन के अस्तित्व में इनकी भूमिका बहुत अहम है. इस धरती पर ऐसी कई चीजें हैं जो पर्यावरण परिवर्तन के कारण विलुप्त हो रही हैं, जबकि कुछ बहुत कम दिखाई देती हैं. वैज्ञानिकों ने ऐसे ही एक दुर्लभ एम्फिबियंस की खोज की है. हाल के दिनों में पूर्वी घाट में एम्फिबियंस पर बड़े पैमाने पर अध्ययन और शोध चल रहे हैं. वैश्विक स्तर पर...खासकर भारत में जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में पर्यावरण संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है.
श्रीलंका से पूर्वी घाटों की ओर पलायन
रिसर्च से पता चलता है कि एम्फिबियंस ने प्लीस्टोसीन के दौरान श्रीलंका से पूर्वी घाटों की ओर पलायन किया. इन तथ्यों को सच साबित करते हुए...शोधकर्ताओं ने आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले की शेषचलम पहाड़ियों में स्यूडोफिलॉटस रेजियस नामक मेंढक की एक दुर्लभ प्रजाति की खोज की है. इसके अलावा, श्रीलंका गोल्डन बैक्ड फ्रॉग...राना ग्रेसिलिस गौनीथिम्मेपल्ली में पलामनेरु कौंडिन्य वन क्षेत्र के पास एक तालाब में पाया गया. उन्हें हैदराबाद जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के वैज्ञानिकों ने एपी बायोडायवर्सिटी बोर्ड के सदस्यों के साथ मिलकर खोजा था.
जलवायु परिवर्तन से दुनिया का दम घुट रहा है. हालांकि...अच्छे पर्यावरण और जैव विविधता के चलते पूर्वी घाट के क्षेत्रों में श्रीलंकाई मेंढक पाए गए. उन्हें हैदराबाद जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया-जेडएसआई कार्यालय में लाया गया और डीएनए परीक्षण किए गए. पूर्वी घाट में श्रीलंकाई स्यूडोफिलाटस रेगियस की पहचान होने पर...अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध न्यूजीलैंड जर्नल ज़ूटाक्सा में भी एक लेख प्रकाशित हुआ.