सिरोही. राजस्थान के सिरोही जिले के वीरवाड़ा की सागर कंवर आज किसी पहचान की मोहताज नहीं है. उनकी पहल से सैकड़ों लोगों को रोजगार मिला है. उनका जीवन कई लोगों के लिए प्रेरणा है. सागर की शिक्षा जिले में ही सीमित रही और वो कभी गांव से बाहर नहीं गईं. शुरुआत में हर कदम पर प्रतिबंध रहा, पर इन सभी बाधाओं को पार करते हुए आज वह राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार प्राप्त कर चुकीं हैं. इस तरह वो नारी सशक्तिकरण की मिसाल भी हैं. आज वह स्वयं सहायता समूह की प्रमुख हैं. इसमें 400 से अधिक सदस्य हैं.
सागर कंवर के मुताबिक अब वह महिलाओं को कृषि को लाभकारी बनाने वाली प्रक्रिया बता रही हैं. वे महिला किसानों को आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनाने, जैविक खेती को बढ़ावा देने जैसी प्रेरणा दे रही हैं. उन्होंने अपनी इस मुहिम में आसपास के गांवों के साथ-साथ जिलेभर में जागरूकता कार्यक्रम चलाएं हैं. शुरुआत में ज्यादा लोग आगे नहीं आए, लेकिन अब उनकी प्रेरणा से लोग जैविक खेती के तरीकों को अपना रहे हैं. लोग मान रहे हैं कि इन तरीकों से पर्यावरण और समाज को कितना फायदा होता है. वे लोगों को बता रहीं हैं कि परिवार की आय बढ़ाने के लिए क्या करना चाहिए.
पढ़ें. Special : मिलिए जयपुर की मनभर से...बाल विवाह की बेड़ियां तोड़ लिखी सफलता की कहानी, अब बच्चियों को बना रही सशक्त
हर कदम पर सागर ने झेला विरोध :सागर कंवर ने ईटीवी भारत को बताया कि लड़कियों को खुद के लिए हमेशा कुछ अलग करने की जरूरत है. पढ़ाई के साथ नौकरी उनका भी काम है. अपने अनुभव के आधार पर वह कहती हैं कि आम तौर पर जो सामाजिक धारणाएं हमारे आसपास व्याप्त हैं, उनका विरोध अक्सर आपको अपराधी बना देता है. ऐसे में काम करते रहें और किसी विरोध का हिस्सा न बनें. सागर खुद बताती हैं कि वो ऐसी ही स्थितियों में अपने पैरों पर खड़ी हुईं.
महिलाओं को आगे बढ़ाने में निभा रहीं भागीदारी :सागर कंवर ने बताया कि पारिवारिक आर्थिक हालात ठीक नहीं होने पर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. 2016 ने एक पशु से आमदनी कम हुआ करती थी तो आशा महिला मिल्क प्रोड्यूसर से जुड़ीं. इसके बाद गांव और आसपास की महिलाओं को भी जोड़ा. वहां पशुओं और खेती को लेकर समृद्धि एग्रीकल्चर कम्पनी से प्रशिक्षण मिला. गांव में 35 महिलाओं से शुरू की गई योजना से आज हजारों महिलाएं जुड़ चुकी हैं और खेती और पशुपालन कर अपने परिवार का पोषन कर रहीं हैं. उन्होंने बताया कि पहले दूध के ठेकेदार आते थे तब गांव में महिलाएं अनपढ़ थी पर समूह में जुड़ने के बाद अब महिलाएं अपना काम सब खुद कर रही हैं.
सैंकड़ों महिलाओं के लिए मिसाल बनी सागर स्वयं सहायता समूह में 400 से अधिक सदस्य :सागर का जन्म और पालन-पोषण राजस्थान के पाली जिले के एक छोटे से गांव में हुआ था. बेटियों पर लगी बंदिशों के बीच ही उन्होंने पढ़ना-लिखना सीखा. 16 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई. इसके बाद घर के काम, बच्चों की जिम्मेदारी, खेत में गायों की देखभाल करना, मुर्गियां पालना और खेत में पति की मदद करना ही उनकी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा रहा. वे बताती हैं कि ऐसा करते-करते कई साल बीत गए. इसके बाद जो बदलाव आया, उसकी बदौलत आज वह एक स्वयं सहायता समूह की प्रमुख हैं. फिलहाल उनके स्वयं सहायता समूह में 400 से अधिक सदस्य हैं. इसके लिए जिला और राज्य स्तर के कार्यक्रमों में उन्हें सम्मानित भी किया गया है. अब वे गोबर गैस संयंत्रों से कचरा जमा करने और जैविक खाद बनाने की ट्रेनिंग दे रहीं हैं. इस काम ने उन्हें क्षेत्र में खास पहचान दी है.
पढ़ें. आत्मनिर्भरता की बेमिसाल नजीर बनी भरतपुर की ये महिला, कारनामे जान आप भी करेंगे साहस को सलाम
शुरुआत में घर और गांव ने बनाया था दबाव :टाटा ट्रस्ट के डेयरी मिशन से मिली प्रेरणा के बाद जब सागर कंवर से जुड़े लोगों को पता चला कि वह पढ़-लिख सकती हैं, तो उन्हें लेखा-जोखा के लिए काम सौंप दिया गया. धीरे-धीरे काम बढ़ने के साथ परिवार और गांव में सागर के लिए संघर्ष बढ़ता गया. घर वालों ने बच्चों के भविष्य का हवाला देकर दबाव बनाया, तो गांव वालों ने समाज की बेड़ियों को पैरों में डालने की कोशिश की. हालात यह रहे कि अक्सर उन्हें गांव वालों से दुर्व्यवहार और धमकियों का सामना करना पड़ा. घर में गांव की महिलाओं को बिगाड़ने के लिए ताने सुनने पड़े और प्रताड़ना का भी शिकार होना पड़ा.
सागर के लिए कामयाबी आज भी सपना :सागर कंवर के मुताबिक उन्होंने जो सपना देखा, उसे पूरा किया. वह अपने दम पर बच्चों को अच्छी शिक्षा दे रहीं हैं. उनकी बेटी बेंगलुरु में बेटा ग्रेजुएशन कर रहा है. खुद सागर को महिला किसानों के कल्याण और जैविक खेती के लिए प्रशंसा और पुरस्कार मिले हैं. पिछले साल दिल्ली में हुए राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रम में भी उन्हें सम्मानित किया गया. इसके अलावा इस साल जनवरी में भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) की ओर से किसान उत्पादक संगठन (पीएस) उत्कृष्टता पुरस्कार भी मिला.
महिलाओं को बहादुर बनकर आगे बढ़ना होगा : सागर बताती हैं कि नई दिल्ली में राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार प्राप्त करना उनके लिए एक सपने के सच होने जैसा था. जिन लोगों ने कभी उनका कड़ा विरोध किया था, वे अब सलाह और सुझाव ले रहे हैं. सागर कहती हैं कि उन्हें इस बात की संतुष्टि है कि उन्होंने सैकड़ों महिलाओं को आर्थिक रूप से स्थिर होने में मदद की है. हालांकि, इनमें कृषि क्षेत्र में महिलाएं ज्यादा हैं, जिन्हें उनकी मेहनत के लिए मान्यता नहीं मिलती है. सागर सभी को एक ही संदेश देती हैं कि अगर हम बेहतर भविष्य चाहते हैं, तो महिलाओं को बहादुर बनकर आगे बढ़ना होगा, जिससे लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव आ सके.