प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि पुलिस सीआरपीसी की धारा 173 (8) के तहत पुनर्विवेचना कर सकती है, लेकिन ऐसा करने से पहले उसे मजिस्ट्रेट की अनुमति लेना जरूरी है. मजिस्ट्रेट की अनुमति लिए बिना विवेचना करने का पुलिस को कोई अधिकार नहीं है. हाईकोर्ट ने कहा कि पुलिस का कोई भी अधिकारी चाहे वह विवेचक हो या प्रदेश का डीजीपी, किसी को भी पुनर्विवेचना का अधिकार नहीं है.
कोर्ट ने कहा कि ऐसा करने का अधिकार केवल हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट को है, किसी पुलिस अधिकारी को नहीं. यह आदेश न्यायमूर्ति जेजे मुनीर एवं न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की खंडपीठ ने नवनीत की याचिका पर अधिवक्ता आलोक कुमार यादव व सरकारी वकील को सुनकर दिया. एडवोकेट आलोक यादव ने कोर्ट को बताया कि गौतमबुद्धनगर के फेज-तीन थाने में आईपीसी की धारा 420, 406, 467, 468, 120 बी के तहत एक एफआईआर दर्ज कराई गई.
इसमें पुलिस ने विवेचना के बाद चार्जशीट दाखिल कर दी. आरोपी ऋषि अग्रवाल ने इस चार्जशीट को हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर चुनौती दी. हाईकोर्ट ने चार्जशीट को सही मानते हुए याचिका खारिज कर दी. इसी मामले में डिप्टी कमिश्नर गौतमबुद्ध नगर ने पुनर्विवेचना का आदेश कर दिया. इसके बाद इंस्पेक्टर क्राइम सेल राधारमण सिंह ने विवेचना की और फाइनल रिपोर्ट लगा दी. अब इंस्पेक्टर याची को थाने बुलाकर साक्ष्य पेश करने का दबाव बना रहे हैं और इसके लिए उसे नोटिस भेजा है.