रांची: पेसा कानून को राज्यों में लागू करने को लेकर भारत सरकार के पंचायती राज मंत्रालय के द्वारा इन दिनों गहन मंथन किया जा रहा है. इसी के तहत महाराष्ट्र के पूणे में हुई बैठक के बाद रांची में सोमवार 4 मार्च से दो दिवसीय बैठक सह कार्यशाला की शुरुआत हुई. इस बैठक में भारत सरकार के पंचायती राज विभाग के सचिव विवेक भारद्वाज सहित देश के पांच राज्यों के अधिकारी और विशेषज्ञ अपनी राय रख रहे हैं. इस मौके पर भारत सरकार के पंचायती राज सचिव विवेक भारद्वाज ने कहा कि देश के 10 राज्यों के अनुसूचित जनजाति बहुल क्षेत्रों में पेसा कानून लागू किया जाना है. 1996 में बना पेसा एक्ट अब तक राज्य में लागू नहीं हो पाई है. झारखंड में पेसा रुल्स तैयार हो चुका है जल्द ही इसे लागू करने की तैयारी की जा रही है.
झारखंड में पेसा कानून जल्द होगा लागू
झारखंड में पेसा कानून को जल्द ही लागू किया जायेगा. झारखंड सरकार द्वारा तैयार नियमावली पर आपत्ति और सुझाव मिलने के बाद पंचायती राज विभाग ने इसे अंतिम रुप देते हुए कैबिनेट की मंजूरी के लिए प्रस्ताव भेजने का निर्णय लिया है. विभाग द्वारा तैयार पेसा नियमावली पर 262 सुझाव और आपत्ति प्राप्त हुए थे जिसमें से 142 सुझाव को सरकार ने मानते हुए पेसा नियमावली में आवश्यक संशोधन किया है. राज्य के 13 जिले पेसा रुल्स के अधीन होंगे जिसमें ग्राम सभा को सशक्त कर जनजाति बहुल क्षेत्र को विकसित किया जायेगा. झारखंड सरकार के पंचायती राज निदेशक निशा उरांव ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने भी झारखंड सरकार के पेसा नियमावली को सही माना है. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने पैरा 43 बी में झारखंड राज्य पंचायती राज अधिनियम को पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में भी वैध माना है.
पेसा नियमावली पर पांच राज्यों ने रखे विचार
पेसा नियमावली पर झारखंड सहित देश के पांच राज्यों के प्रतिनिधियों ने पहले दिन विभिन्न विषयों पर विचार रखे. इस दो दिवसीय बैठक में जिन राज्यों के प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं उसमें आंध्र प्रदेश, ओडिशा, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और झारखंड शामिल है. कई सत्रों में आयोजित इस कार्यक्रम में पेसा के तहत ग्राम सभा की भूमिका, पेसा के तहत अधिकार, भूमि कानून आदि पर विस्तार से चर्चा की गई. आदिवासी पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था के पंचानन सोरेन ने कहा कि 1996 में जिस जनजाति बहुल क्षेत्र के लिए कानून बनाया गया वह आज तक अमल में नहीं लाया जाना बेहद ही दुर्भाग्यपूर्ण है इसके माध्यम से जनजाति क्षेत्र को संरक्षित किया जाना है ऐसे में आवश्यकता इस बात की है कि बगैर इसमें छेड़छाड़ किए बिना राज्य में इसे लागू किया जाय.
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