भद्रक : ओडिशा के सैनिक आनंद पात्री को पाकिस्तान की जेल में बंद हुए लगभग 60 साल हो गए हैं. वह 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में शामिल थे, तब से वह पाकिस्तान की लाहौर जेल में युद्धबंदी के रूप में बंद हैं. इस बीच 6 दशक बीत गए. परिवार वालों ने आनंद को बचाने की पूरी कोशिश की, उनकी रिहाई आज तक नहीं हो पाई है. अब कई सालों बाद उनकी रिहाई की प्रक्रिया दोबारा शुरू हो गई है. आनंद के मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के सचिव को उचित कदम उठाने का निर्देश दिया है. साथ ही आनंद के परिवार को इस मामले में जरूरत पड़ने पर राष्ट्रीय मानवाधिकार कार्यकर्ता और सुप्रीम कोर्ट के वकील राधाकांत त्रिपाठी की मदद लेने का भी निर्देश दिया गया है. अब इन प्रयासों से 70 के दशक से मुक्ति पाने के लिए संघर्ष कर रहे इस उड़िया सैनिक की रिहाई की उम्मीद जगी है.
1965 भारत-पाकिस्तान युद्ध
आनंद पत्री का घर भद्रक जिले के धामनगर थाना अंतर्गत कल्याणी गांव में है. उनका जन्म 1928 में हुआ था. उन्हें भारतीय सेना भर्ती केंद्र गोखेल रोड, कोलकाता के माध्यम से भारतीय सेना में भर्ती किया गया था. बाद में उन्हें भारतीय सेना की 31 बंगाल इंजीनियरिंग रेजिमेंट में एक जवान के रूप में नियुक्त किया गया. 1962 में आनंद भारत-चीन युद्ध में शामिल हो गए. 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ था. इस युद्ध में वह भी शामिल थे. तब से, आनंद पत्री पाकिस्तान के लाहौर में कोट-लकपत सेंट्रल जेल में युद्धबंदी के रूप में अपना जीवन बिता रहे हैं.
फोटो देखकर बेटे ने पहचाना
7 फरवरी 2003 को गृह विभाग की ओर से एक विज्ञापन प्रकाशित किया गया था. उसमें आनंद की फोटो थी. फोटो से पता चला कि वह पाकिस्तान की जेल में है. लेकिन इस्लामाबाद में भारत के उच्चायुक्त ने घोषणा की कि उनका नाम 'नसीम गोपाल' है. चूंकि नसीम (आनंद) की मानसिक स्थिरता खो गई थी, इसलिए उसके बारे में अधिक जानकारी नहीं जुटाई जा सकी. वहीं, एक विज्ञापन में आनंद पात्री की फोटो आने के बाद उनके परिवार और बेटे विद्याधर पात्री, जो पेशे से पुजारी हैं और कोलकाता में रहते हैं, उन्होंने फोटो देखकर अपने पिता को पहचान लिया. उनके गांव वालों ने भी विज्ञापन में लगी तस्वीर की पहचान आनंद की तस्वीर के रूप में की. इस विज्ञापन को देखने के बाद विद्याधर कोलकाता में 'दिगंता' (एक सामाजिक कल्याण संगठन) के कार्यालय गए. वहां उन्होंने पश्चिम बंगाल राज्य उपभोक्ता संरक्षण परिषद के सदस्य और अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार परिषद दिगंता के जनरल एडिटर उत्पल रॉय को इसकी जानकारी दी. इस संदर्भ में, 5 फरवरी 2004 को, रॉय ने आनंद पात्री की रिहाई के लिए ओडिशा राज्य सैनिक बोर्ड के सचिव और निदेशक और ओडिशा गृह विभाग के उप सचिव को एक अनुरोध पत्र भेजा.
तत्कालीन विदेश मंत्री को पत्र
इस मुद्दे पर आनंद के बेटे विद्याधर पात्री और उत्पल रॉय ने तत्कालीन विदेश मंत्री प्रणब मुखर्जी और विदेश सचिव शिवशंकर मेनन से मुलाकात की. उन्हें लिखित पत्र में अपनी चिंता व्यक्त की. इसके अलावा उन्होंने ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और कई गणमान्य लोगों से मुलाकात कर इस बात की जानकारी दी. भारत ही नहीं, उन्होंने इसकी जानकारी पाकिस्तान के तत्कालीन विदेश मंत्री श्री अनवर बर्नी को भी दी, जो अपने आधिकारिक दौरे पर पंजाब के चंडीगढ़ आए थे. इसके अलावा, विद्याधर ने पाकिस्तान के विशेष दूत हामिद अंसारी परानी से मुलाकात की और उनसे अनुरोध किया कि युद्ध बंदी नीति के अनुसार उनके पिता को मुक्त और प्रत्यर्पित किया जाए.
2006 में हैंडओवर की संभावना पैदा हुई
12 नवंबर 2006 को, ओडिशा के मुख्यमंत्री ने आनंद की पाकिस्तान जेल से रिहाई की सुविधा के लिए प्रणब मुखर्जी को एक अनुरोध पत्र भेजा. 20 दिसंबर 2006 को, विदेश मंत्रालय के तत्कालीन संयुक्त सचिव (पाकिस्तान डिवीजन) और सीएम ने उत्पल रॉय को उन्हें लाने के लिए वाघा सीमा पर जाने की सूचना दी.