नई दिल्ली : 'गुरुदेव' के नाम से मशहूर नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर एक विश्व प्रसिद्ध कवि, लेखक, दार्शनिक, संगीतकार, नाटककार, चित्रकार और समाज सुधारक थे. गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 को कलकत्ता के एक प्रतिष्ठित बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके पिता देवेंद्रनाथ टैगोर ब्रह्मो समाज के नेता थे, जो एक सुधारवादी हिंदू संप्रदाय था और सामाजिक न्याय में विश्वास करता था.
वह 20 वीं सदी के प्रारंभ में बंगाल और पूरे भारत में एक प्रमुख लेखक, कवि और कलाकार के साथ-साथ दुनिया भर में लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्रोत रहे. उनकी कृतियों का एक विशाल संग्रह आज भी भारत के लिए अमूल्य धरोहर है. इंग्लैंड में अपनी औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद टैगोर को अपनी बंगाली जड़ों से गहरा जुड़ाव था. टैगोर सिर्फ कलात्मक गद्य और कविता में ही माहिर नहीं थे, बल्कि उनके लेखन में व्यापक राजनीतिक और सामाजिक टिप्पणियां भी शामिल होती थीं, जो तत्कालीन ब्रिटिश शासन पर करारा चोट करती थी. उनकी कविताओं का संग्रह गीतांजलि ने बंगाली साहित्य को समृद्ध बनाने का काम किया. 'गीतांजलि' के लिए उन्हें 1913 में नोबेल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया.
त्याग दी नाइट की उपाधि
नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले एशियाई होने के साथ-साथ रवींद्रनाथ टैगोर साहित्य में अपने अनुकरणीय योगदान के लिए यह पुरस्कार पाने वाले पहले गैर-यूरोपीय भी थे. 2004 में शांतिनिकेतन में हुई चोरी में टैगोर का नोबेल पुरस्कार पदक चोरी हो गया था. जिसके बाद स्वीडिश अकादमी ने उन्हें दो प्रतिकृतियों, एक स्वर्ण और एक रजत, के रूप में फिर से पुरस्कार दिया. ब्रिटिश सरकार ने 1915 में उन्हें नाइट की उपाधि दी. हालांकि, बाद में उन्होंने जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोध में इसे त्याग दिया था. उस दौर में जिस शख्स के पास नाइट हुड की उपाधि होती थी, उसके नाम के साथ सर लगाया जाता था लेकिन रवींद्रनाथ टैगोर ने जलियांवाला हत्याकांड की निंदा करते हुए अंग्रेजों को ये सम्मान वापस लौटा दिया था.