जयपुर. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने साल 2014 में कैंसर जागरूकता दिवस की शुरुआत की थी. हर साल 7 नवंबर को मनाए जाने इस दिन का मकसद लोगों को जानलेवा बीमारी से जागरूक करने का था. जिस तरह से हमारे देश में कैंसर की रोकथाम, शुरुआती पहचान और इलाज के बारे में जागरूकता बढ़ाने के जरूरत है, उसे लिहाज से इस दिन का खास महत्व बन जाता है. स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, हमारी दिनचर्या और खानपान की कई ऐसी गड़बड़ आदतें हैं, जो कैंसर के खतरे को बढ़ाती जा रही हैं. ऐसे में इलाज के साथ-साथ इस बीमारी की पहचान भी जरूरी है. कैंसर की शुरुआती पहचान के लिए एक नई तकनीक, जिसे लिक्विड बायोप्सी कहा जाता है, कैंसर की जांच के क्षेत्र में क्रांति ला रही है. इस तकनीक की मदद से मरीजों के खून के नमूने से ही कैंसर के संकेत मिल सकते हैं. जिससे पारंपरिक बायोप्सी की जरूरत कम हो जाती है.
विशेषज्ञों की नजर में लिक्विड बायोप्सी :भगवान महावीर कैसर हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर के मेडिकल ऑन्कोलॉजी के निदेशक डॉ. अजय बापना ने बताया कि लिक्विड बायोप्सी एक ऐसी विधि है, जो शरीर के विभिन्न अंगों में मौजूद कैंसर कोशिकाओं के डीएनए के छोटे टुकड़ों का पता लगाती है. पारंपरिक बायोप्सी में प्रभावित टिशू का नमूना लिया जाता है. जो अक्सर दर्दनाक और जटिल होता है. वहीं, लिक्विड बायोप्सी खून के नमूने से ही कैंसर का पता लगाने में सक्षम होती है, जो इसे ना सिर्फ आसान बल्कि कम जोखिम भरा भी बनाती है. लिक्विड बायोप्सी कैंसर की जांच के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है, जो आने वाले वक्त में कैंसर की शुरुआती पहचान और बचाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. इससे ना सिर्फ मरीजों को राहत मिलेगी, बल्कि कैंसर के खिलाफ लड़ाई में भी यह एक बड़ा कदम साबित हो सकती है.
लिक्विड बायोप्सी का विस्तार जरूरी (वीडियो ईटीवी भारत जयपुर) पढ़ें: खाना खाते समय होती हैं ये 5 दिक्कतें, तो हो सकती है कैंसर की शुरुआत, समय रहते जानिए लक्षण - Cancer symptoms
लिक्विड बायोप्सी का विस्तार जरूरी : कैंसर की जांच के लिए आधुनिक तकनीक पर आधारित लिक्विड बायोप्सी के लिए आज भी पराधीनता देखने को मिल रही है. हालांकि हमारे देश में धीरे-धीरे लिक्विड बायोप्सी तकनीक का विस्तार हो रहा है. आमतौर पर संदिग्ध कैंसर मरीज को जांच के लिए अपना सैम्पल दिल्ली, बेंगलुरु और अहमदाबाद की लैब में प्रोसेस होने के लिए भेजना पड़ता है, ताकि मरीजों को समय पर और सरल तरीकों से कैंसर की पहचान और उपचार मिल सके. आने वाले सालों में यह तकनीक कैंसर स्क्रीनिंग का एक मुख्य साधन बन जाएगी और कैंसर से होने वाली मृत्यु दर को कम करने में मददगार साबित होगी.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 2014 में इसकी शुरुआत की (फोटो ईटीवी भारत जयपुर) इस तरह काम करती है लिक्विड बायोप्सी : लिक्विड बायोप्सी में रक्त के नमूने में मौजूद कैंसर कोशिकाओं के सर्कुलेटिंग ट्यूमर डीएनए की पहचान की जाती है. यह डीएनए तब रक्त में प्रवेश करता है, जब ट्यूमर कोशिकाएं मरती हैं और उनका जीनोमिक मटेरियल ब्लड सरकुलेशन में मिल जाता है. इस डीएनए की पहचान से यह पता लगाया जा सकता है कि शरीर में कहीं पर ट्यूमर मौजूद है और यह किस प्रकार का है.
लिक्विड बायोप्सी का महत्व :-
- प्रारंभिक पहचानःलिक्विड बायोप्सी से कैंसर की पहचान उसके शुरुआती चरणों में ही हो सकती है, जिससे रोगियों को जल्दी उपचार मिलने का अवसर मिलता है.
- कम जोखिम और दर्दः यह विधि पारंपरिक बायोप्सी की तुलना में अधिक सहज और कम जोखिम भरी है. साथ ही कैंसर के इलाज के बाद मॉनिटरिंग में भी यह कारगर है कि बीमारी कंट्रोल में है या नहीं.
- मल्टी ऑर्गन स्किनिंगः लिक्विड बायोप्सी से एक ही परीक्षण में कई अंगों में संभावित कैंसर की जानकारी प्राप्त की जा सकती है, जिससे यह मल्टीपल कैंसर डिटेक्शन के लिए उपयुक्त है.