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एमपी के चीचली में बनते हैं चमचमाते और कलात्मक बर्तन, खरीददार पीतल को समझ बैठते हैं सोना

मध्य प्रदेश में भी यूपी की तरह पीतल की नगरी है. चीचली कस्बे में खास कलात्मक पीतल के बर्तन बनाए जाते हैं. पढ़िए पीतल नगरी.

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एमपी के चीचली में बनते हैं चमचमाते और कलात्मक बर्तन (ETV Bharat)

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : 4 hours ago

नरसिंहपुर: यूं तो पीतल नगरी के रूप में उत्तर प्रदेश का मुरादाबाद दुनिया में अपनी पहचान रखता है, लेकिन आपको जानकर थोड़ी हैरानी होगी कि मध्य प्रदेश में भी एक पीतल नगरी है. जिसे चीचली के नाम से जाना जाता है. यहां कुछ ऐसे खास बर्तन बनाए जाते हैं. जो दुनिया में और कहीं नहीं बनाए जाते. यहां के कलाकारोंं की सदियों पुरानी कला को सरकार यदि प्रचारित प्रसारित करे तो मध्य प्रदेश की यह पीतल नगरी भी अपनी चमक दुनिया में बिखेर सकती है.

नरसिंहपुर जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर गाडरवारा तहसील है. यहां चीचली नामक एक कस्बा है. यह जगह जबलपुर और इटारसी के बीच है. नरसिंहपुर जिला अपनी उपजाऊ काली मिट्टी की वजह से जाना जाता है, लेकिन चीचली की पहचान कुछ अलग है. जिस तरह भारत में सबसे ज्यादा पीतल का काम मुरादाबाद में होता है. इसी तरह मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा पीतल का काम चीचली में होता है. चीचली में पीतल के बर्तन बनाने वाले 1000 से ज्यादा कारीगर हैं.

चीचली में बनते हैं पीतल के सुंदर बर्तन (ETV Bharat)

गुंड (कसेड़ी)

चीचली के पीतल के कारीगर सैकड़ों सालों से कई किस्म के बर्तन बनाते रहे हैं. इनमें कसेड़ी (गुंड) सबसे महत्वपूर्ण रही है. यह एक घड़ेनुमा आकृति का बर्तन होता है, लेकिन इसकी साइज 10 लीटर से लेकर 50 लीटर तक की होती है. यह पीतल से ही बनता है. खास बात यह है कि इसे हाथ से बनाया जाता है. इसमें बहुत ज्यादा मशीनों का इस्तेमाल नहीं होता. इसमें कारीगर की मेहनत और हथौड़े के निशान स्पष्ट दिखते हैं. 50 लीटर की कसेड़ी को गुन्ड कहा जाता है. इस बर्तन का इस्तेमाल शादियों में होता रहा है. इसी क्षेत्र के रहने वाले प्रकाश सिंह बताते हैं कि 'शादियों में गुन्ड में ही सब्जी दाल बड़ी भट्टी के ऊपर रखकर बनाई जाती थी. यह सामान्य तौर पर सभी घरों में होता था. इसलिए टेंट से बर्तन नहीं बुलाए जाते थे.'

कोपर

कोपर एक थाली नुमा बर्तन होता है, लेकिन इसका आकार बहुत बड़ा होता है. घरों में राशन और दूसरे सामान को सुखाने से लेकर शादियों में खाना बनाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता था. इसे भी हाथ से ही बनाया जाता है. इसके अलावा भी कई छोटे बर्तनों का भी निर्माण किया जाता है.

चीचली में पीतल की गुंड फेमस (ETV Bharat)

पीतल के बर्तन में औषधि बन जाता है पानी

चीचली के पीतल कारोबारी मुकेश ताम्रकार बताते हैं कि 'पीतल एक मिश्र धातु है. जिसमें तांबा और जस्ता के अलावा दूसरी कुछ धातुओं में मिलाई जाती है. इस वजह से यह मजबूत हो जाती है और इसका उपयोग सदियों से घर में पानी के इस्तेमाल के लिए किया जाता रहा है. पीने का पानी भी पीतल के बर्तन में रखा जाता था. इसका फायदा यह था कि लोग उसको पीकर बीमार नहीं होते थे, बल्कि पीतल में रखे पानी में अशुद्धियां खत्म हो जाती थी. पीतल के ही बर्तन का इस्तेमाल नहाने के लिए पानी भरने में किया जाता था. इसकी वजह से शरीर के ऊपर चर्म रोग नहीं होते थे.'

पीतल से बनाए गए अलग-अलग सामान (ETV Bharat)

दोबारा चलन में आया पीतल

मुकेश ताम्रकार बताते हैं कि 'सदियों से पीतल बिकता रहा है, लेकिन प्लास्टिक एल्यूमिनियम और स्टील के बर्तन आने के बाद पीतल का चलन कुछ घट गया था. हालांकि महाकौशल और बुंदेलखंड क्षेत्र में आज भी शादी में पीतल के बर्तन देने का रिवाज है. इसलिए चीचली का कारोबार कभी मंदा नहीं हुआ. एक बार फिर अब पीतल के बर्तनों का उपयोग बढ़ रहा है और लोग हाथ से बने इन बर्तनों को खरीद रहे हैं. कुछ लोग इनका इस्तेमाल सजाने के लिए भी करते हैं और कुछ लोग इनकी विशेषता जानने के बाद इनका प्रयोग शुरू कर रहे हैं.'

एमपी सरकार से कलाकारों की दरख्वास्त

उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में पीतल के कई सामान बनाए जाते हैं. चीचली में भी कारीगर यह सामान बना सकते हैं, लेकिन सरकार मध्य प्रदेश के पीतल को प्रचारित प्रसारित करे तो मध्य प्रदेश के कलाकार भी पीतल की मूर्तियां और दूसरी कलाकृतियां बना सकते हैं. लोग इन्हें बड़े महंगे दामों में खरीदते भी हैं. इससे न केवल बड़े पैमाने पर राजस्व इकट्ठा किया जा सकता है, बल्कि सैकड़ों लोगों को रोजगार भी मुहैया करवाया जा सकता है.

चीचली में बनाए पीतल कोपर प्रसिद्ध (ETV Bharat)

क्या कहता हैं मध्य प्रदेश के पीतल के कलाकार

चीचली के अलावा बैतूल में भी पीतल के कलाकार हैं. बैतूल के पीतल के कलाकार गन्नू रावत ने बताया कि 'वे पीतल से मूर्तियां बनाते रहे हैं और इन मूर्तियों में मध्य प्रदेश के जंगलों और आदिवासी जीवन की झलक नजर आती है. यदि उन्हें मौका मिले तो उनकी कला भी देश और दुनिया तक मध्य प्रदेश की पीतल की पहचान पहुंचा सकती है.'

मुकेश ताम्रकारका कहना है की 'पीतल सोना भले ही नहीं है, लेकिन घाटे का सौदा कभी नहीं रहता. पीतल के बर्तन जितने पैसे में खरीदे जाते हैं. बढ़ती महंगाई में उससे महंगे दामों में बिकते हैं और पुराना पीतल कारीगर के हाथ से गुजर के एक बार फिर नया हो जाता है. इसलिए लोगों को पीतल के समान का उपयोग करना चाहिए और यदि सरकार की नजर इस पीली धातु पर पड़ जाए तो पीतल सोना बन जाएगा.'

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