श्रीनगर:जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने ठेकेदारों को बड़ी राहत प्रदान करते हुए ग्रामीण विकास और पंचायती राज विभाग के आयुक्त/सचिव द्वारा जारी एक विवादास्पद निर्देश को रद्द कर दिया है. यह निर्देश उन ठेकेदारों को निविदा प्रक्रिया में भाग लेने से रोकता था, जिनके रिश्तेदार कभी राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों में संलिप्त थे. हाईकोर्ट ने निर्देश को रद्द करते हुए इसे असंवैधानिक और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन माना है. अदालत के इस ऐतिहासिक फैसले के जम्मू-कश्मीर में दूरगामी प्रभाव हो सकते हैं.
जस्टिस संजीव कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह फैसला सुनाया. उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि याचिकाकर्ताओं के चरित्र की जांच के दौरान सीआईडी द्वारा उन्हें किसी भी गलत गतिविधि का दोषी नहीं पाया गया. उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ताओं के चरित्र अथवा पूर्व गतिविधियों की जांच करते समय सीआईडी को उनके खिलाफ कुछ भी गलत नहीं मिला. याचिकाकर्ताओं को इस तर्क के आधार पर दंडित नहीं किया जा सकता है और उन्हें आजीविका के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है कि उनका कोई रिश्तेदार अतीत में राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों में शामिल था.
यह मामला जम्मू-कश्मीर ठेकेदार पंजीकरण नियम, 1969 के तहत ठेकेदारों द्वारा दायर की गई कई याचिकाओं से जुड़ा है, जो इन ठेकेदारों को सार्वजनिक निर्माण निविदाओं से प्रतिबंधित करने के इर्द-गिर्द घूमता है. विभाग का यह निर्णय सीआईडी रिपोर्ट पर आधारित था, जो बताती है कि उनके करीबी रिश्तेदार पूर्व में राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों में शामिल रहे थे. याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि यह निर्देश भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(जी) के तहत उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, जो हर नागरिक को किसी भी पेशे को अपनाने या कोई व्यवसाय या व्यापार करना के अधिकार की गारंटी देता है. उन्होंने यह भी तर्क दिया कि उनकी चरित्र सत्यापन रिपोर्ट में कुछ भी गलत नहीं पाया गया था.
वहीं, ग्रामीण विकास और पंचायती राज विभाग ने अदालत में अपने निर्देश का बचाव करते हुए कहा कि इसका उद्देश्य सरकारी अनुबंधों में निष्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित करना और राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों में शामिल लोगों को ऐसे अनुबंध प्राप्त करने से रोकना है. हालांकि, जस्टिस संजीव कुमार ने निर्देश को मौलिक अधिकारों, विशेष रूप से आजीविका के अधिकार का उल्लंघन पाया. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ठेकेदार पंजीकरण को नियंत्रित करने वाले अधिनियम और नियम अयोग्यता के लिए विशेष आधार निर्दिष्ट करते हैं, और याचिकाकर्ता इन अयोग्यताओं के दायर में नहीं आते हैं.