लेह/कारगिल:संविधान के अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद पहली बार लद्दाख में लोकसभा चुनाव हो रहा है. यहां छठी अनुसूची के तहत सुरक्षा उपाय, राज्य का दर्जा और रोजगार प्रमुख मुद्दे हैं. 59,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक में फैले लेह और कारगिल दो जिले हैं. बौद्ध बहुल लेह और शिया मुस्लिम बहुल कारगिल चार मांगों को लेकर एक साथ खड़े हैं.
दोनों जिलों के लिए संविधान की छठी अनुसूची के तहत सुरक्षा, राज्य का दर्जा, स्थानीय लोगों के लिए नौकरियों में आरक्षण और एक अलग लोक सेवा आयोग अहम मुद्दे हैं. अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद लद्दाख को बिना विधानसभा के केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया. वहीं, कारगिल में लोग विभाजन से नाखुश थे. हालांकि, जल्द ही यहां भूमि और नौकरियों के लिए सुरक्षा उपायों पर चिंताएं हावी हो गईं और विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए.
नौकरियां एक बड़ी चिंता
लेह के एक छात्र नेता पद्मा स्टैनजिन ने कहा कि रोजगार एक बड़ी चिंता है क्योंकि 2019 के बाद से यहां एक भी भर्ती नहीं हुई है. हमें बेहतर रोजगार के अवसरों का आश्वासन दिया गया था लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इसी तरह की चिंता लेह की एक युवा महिला नॉर्डन ने भी उठाई, जिन्होंने इस बात पर जोर दिया कि छठी अनुसूची सिर्फ एक राजनीतिक मांग नहीं है, बल्कि लोगों की मांग है. उन्होंने कहा, 'यहां की 90 प्रतिशत से अधिक आबादी आदिवासी है. नौकरियां एक बड़ी चिंता है, क्योंकि लद्दाख में बेरोजगारी की दर देश में सबसे ज्यादा है.जो भी पार्टी हमारी मांगों को पूरा करने का वादा करेगी, उसे हमारा समर्थन मिलेगा.'
कौन-कौन मैदान में
उन्होंने कहा कि लद्दाख में दो मुख्य राजनीतिक दल हैं बीजेपी और कांग्रेस. बीजेपी, जिसने लेह स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद के अध्यक्ष ताशी ग्यालसन को चुनाव में उतारा है, और कांग्रेस जिसने परिषद में विपक्ष के नेता त्सेरिंग नामग्याल को अपने उम्मीदवार के रूप में चुना है. तीसरे उम्मीदवार कारगिल से मोहम्मद हनीफा जान हैं, जो नेशनल कॉन्फ्रेंस छोड़ने के बाद निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं.