हैदराबाद :चुनाव लड़ने वाली महिला उम्मीदवारों की संख्या में वृद्धि हुई है, लेकिन यह वृद्धि मात्र 10% है. पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के आंकड़ों के अनुसार, लोकसभा चुनाव लड़ने वाली महिला उम्मीदवारों की संख्या 1957 में तीन प्रतिशत से लगातार बढ़कर 2024 में दस प्रतिशत हो गई है. तब से चुनावों में महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि लगातार कम रही है.
इस साल, 797 महिलाएं मैदान में हैं, जो कुल 8,337 उम्मीदवारों का 9.6 प्रतिशत है. छह राष्ट्रीय दलों में, नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) में 67 प्रतिशत महिला उम्मीदवारों की संख्या और अनुपात सबसे अधिक है, यानी तीन में से दो महिलाएं हैं, जबकि ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) और ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक में महिला प्रतिनिधित्व का स्तर सबसे कम तीन प्रतिशत है. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने कांग्रेस पार्टी से बेहतर प्रदर्शन किया है. भाजपा ने 2024 के लोकसभा चुनावों में 16% महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा, जबकि कांग्रेस पार्टी ने 13% महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा.
20 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने वाले क्षेत्रीय दलों में, बीजू जनता दल (बीजेडी) में 33% महिला उम्मीदवार हैं और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) में 29% महिला उम्मीदवार हैं, जो महिला उम्मीदवारों का सबसे अधिक अनुपात है. इसके अलावा, तीसरे लिंग के छह व्यक्ति चुनाव लड़ रहे हैं. इनमें से चार उम्मीदवार निर्दलीय हैं, और दो गैर-मान्यता प्राप्त दलों के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं. पीआरएस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2014 और 2019 के चुनावों में भी छह थर्ड जेंडर उम्मीदवार थे. 19 अप्रैल को हुए पहले चरण के चुनाव में 1,618 उम्मीदवारों में से केवल 135 महिलाएं थीं. छोटी और क्षेत्रीय पार्टियों में महिला उम्मीदवारों का अनुपात अधिक रहा. नाम तमिलर काची में 40 में से 20 उम्मीदवार महिलाएं हैं. लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में 40 प्रतिशत महिला उम्मीदवार हैं.
लोकसभा चुनाव में महिला उम्मीदवारों की भागीदारी लगातार बढ़ रही है. दूसरी लोकसभा से लेकर मौजूदा आम चुनाव तक उनकी संख्या में वृद्धि देखी गई है. 1957 के चुनावों में कुल उम्मीदवारों में से केवल तीन प्रतिशत महिलाएं थीं, जो 2019 में बढ़कर नौ प्रतिशत हो गई है.
महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण कानून संसद में पारित हो गया है. लेकिन इसके कार्यान्वयन के लिए कोई समयसीमा तय नहीं की गई है. बताया जा रहा है कि जनगणना के बाद यह लागू हो जाएगा. आगामी 2024 के लोकसभा चुनाव में यह 33 फीसदी आरक्षण पूरी तरह से लागू नहीं हो सका है. तमिलनाडु में नाम तमिलर पार्टी ने 50 फीसदी आरक्षण देकर ध्यान खींचा है. यहां हम 1957 के लोकसभा चुनाव से लेकर 2019 के चुनाव तक चुनावी राजनीति में महिला उम्मीदवारों की संख्या और उनकी सफलता दर का विश्लेषण कर रहे हैं.
लोकसभा चुनावों में महिला उम्मीदवारों की भागीदारी की बात करें तो निश्चित रूप में उसमें बढ़ोतरी नजर आती है. हालांकि, यह बढ़ोतरी कितनी सार्थक है और कितनी प्रतीकात्मक यह अगल बहस का मुद्दा हो सकती है. 45 से 726 जी हां, संख्या के लिहाज यह वो सफर जो उम्मीदवारों की दावेदारी के लिहाज से हमने अपने लोकतांत्रिक इतिहास में तय की है.
1957 के दूसरे लोकसभा चुनाव में 45 महिला उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था जबकि 2019 के चुनाव में 726 लोगों ने चुनाव लड़ा. चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, महिला उम्मीदवारों की संख्या 1957 में 4.5 फीसदी से बढ़कर 2019 में 14.4 फीसदी हो गई. जबकि पुरुष उम्मीदवारों की संख्या 1957 में 1474 से बढ़कर 2019 में 7322 हो गई.
इसके साथ ही चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की संख्या 1957 की तुलना में 5 गुना बढ़ गई है. महिलाओं की संख्या 16 गुना बढ़ी है. 1957 में केवल 2.9 प्रतिशत महिलाओं ने चुनाव लड़ा था. 2019 में यह बढ़कर 9 फीसदी हो गयी. हालांकि गौर करने वाली बात यह है कि अब तक महिला उम्मीदवारों की संख्या कभी भी 1000 से अधिक नहीं हुई है. 1952 के पहले चुनाव में लिंगानुपात के आंकड़े नहीं हैं.