जयपुर. साल 2002 में वसुंधरा राजे ने बतौर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष राजस्थान में अपना जलवा बिखेरा और 2003 के विधानसभा चुनाव में पहली बार राज्य में पूर्ण बहुमत से भाजपा की सरकार बनी थी. इस चुनाव में पार्टी को 120 सीटें हासिल की थी. वहीं, 2003 के चुनाव के बाद 2008 में भाजपा और कांग्रेस में कोई खास अंतर नहीं रहा, लेकिन 2013 में एक बार फिर भाजपा ने 81% सीटों पर जीत हासिल की और इसका श्रेय वसुंधरा राजे को गया. 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भी सभी 25 सीटों पर भाजपा ने जीत हासिल की तो वसुंधरा राजे के नेतृत्व की चर्चा पूरे देश में हुई. अब 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रदेश भाजपा की चुनावी मुहिम में वसुंधरा राजे के बीते दो दशक वाला असर नजर नहीं आ रहा है.
राजस्थान के अलग-अलग हिस्सों में होने वाली चुनावी रैलियों से इतर राजे ने खुद को अपने गृह क्षेत्र झालावाड़ तक सीमित रखा है. वो लगातार अपने बेटे व स्थानीय सांसद दुष्यंत सिंह के समर्थन में चुनावी सभाएं कर रही हैं. वहीं, अगर राजे के सोशल मीडिया अकाउंट एक्स पर गौर किया जाए तो जाहिर होगा कि बीते दो हफ्ते में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के राजस्थान आगमन पर अल्फाजों के जरिए उनका इस्तकबाल तो किया, लेकिन अपनी मौजूदगी के मामले में वो सिफर रहीं. इस समयावधि में दुष्यंत सिंह के अलावा राजे ने किसी अन्य प्रत्याशी के लिए न तो प्रचार किया और न ही कोई वोट अपील की. इधर, राजस्थान की राजनीति के जानकार पूर्व सीएम के इस रुख को उनकी वर्तमान सियासी भूमिका के असर से जोड़ कर देख रहे हैं. माना जा रहा है कि राजे का यह रुख भाजपा के लिए चुनावी नतीजे में भारी पड़ सकता है.
पढ़ें: पीएम मोदी बोले- सत्ता में आई कांग्रेस तो होगा देश को बड़ा नुकसान, घुसपैठियों में बांटी जाएगी संपत्ति
चुनावी कैंपेन में हाशिए पर राजे की भूमिका :इस लोकसभा चुनाव में वसुंधरा राजे के प्रभाव वाले क्षेत्रों में भी उनके चुनावी दौरे नहीं हुए. लिहाजा करौली-धौलपुर सीट को कड़े संघर्ष में भी भाजपा के लिहाज से पिछड़ा माना जा रहा है. मारवाड़ और शेखावाटी में भी भाजपा की स्थिति कमजोर हुई है. बाड़मेर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जल्द दूसरी जनसभा को संबोधित करने के लिए आ रहे हैं और कोटा में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला अपने प्रतिद्वंद्वी से कड़ी चुनौती का सामना कर रहे हैं. वसुंधरा राजे राजस्थान में स्टार प्रचारक हैं, लेकिन प्रचार अभियान में उनका सक्रिय नहीं होना राजनीतिक खामोशी से भरा इशारा माना जा रहा है. इस बार वसुंधरा राजे की पोस्ट में 10 साल के मोदी सरकार के राज से ज्यादा 20 साल तक झालावाड़ में सांसद रहे दुष्यंत सिंह के कामकाज पर ध्यान केंद्रित दिख रहा है.
भाजपा के संकल्प पत्र पर झालावाड़ में चर्चा :15 अप्रैल को वसुंधरा राजे ने अलग से भारतीय जनता पार्टी के संकल्प पत्र पर झालावाड़ में प्रेसवार्ता की थी. इस प्रेसवार्ता की तस्वीरों में वसुंधरा राजे अकेली नजर आईं. प्रदेश के बड़े नेता का इस तरह से अकेले मीडिया से मुखातिब होना भी सवालों के घेरे में है. एक तरफ जयपुर में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी मोदी के विजन की बात कर रहे हैं तो दूसरी ओर देश के चर्चित चेहरों में शुमार भाजपा की बड़ी नेता एक लोकसभा क्षेत्र तक सीमित रह गई हैं. वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी कहते हैं कि वसुंधरा राजे जिस अंदाज से राजनीति करती हैं, उसमें वो अपनी खामोशी के जरिए अक्सर विरोधियों को जितनी मजबूत चुनौती देती है, उतना मुखर बयानबाजी में भी प्रभाव नहीं दिखता है. ऐसे में भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को राज्य की खामोशी को हल्के में नहीं लेना चाहिए.
पढ़ें: चुनाव प्रचार में दिख रहे नेताओं के अलग - अलग रंग, कहीं जीमण की मनवार तो कोई बना चायवाला
राजे समर्थक भी नहीं हैं उत्साहित :वसुंधरा राजे के साथ-साथ उनके समर्थकों का रुख भी खामोश है. इसको लेकर भी सियासी गलियारों में चर्चाओं का बाजार गर्म है. दो बार के भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी भी इस बार चुनावी मुहिम से अलग दिख रहे हैं. उनकी जयपुर शहर सीट पर कोई सक्रियता नहीं दिख रही है. वहीं, पूर्व मंत्री राजपाल सिंह शेखावत भी जयपुर ग्रामीण क्षेत्र में स्थानीय प्रत्याशी के प्रचार अभियान से खुद को अलग किए हुए हैं तो पूर्व मंत्री कालीचरण सराफ भी कैंपेन से बाहर हैं. इसी तरह प्रताप सिंह सिंघवी, कालू लाल गुर्जर और संगठन के कई बड़े नाम राजस्थान के चुनावी माहौल में नहीं दिख रहे हैं.