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रूह कंपा देती हैं वो यादें..! ट्रेन हादसे में 800 लोग मारे गए थे, आपको याद है 43 साल पहले बिहार का वो खौफनाक मंजर - Train Accident In Bihar

पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में कंचनजंगा एक्सप्रेस ट्रेन एक्सीडेंट कोई पहला रेल हादसा नहीं है. देश के विभिन्न स्थानों से आए दिन ट्रेन एक्सीडेंट की खबरें सामने आती रहती हैं. कहीं ट्रेन पटरी से उतर जाती है तो कहीं दो ट्रेनों की भिड़ंत में यात्रियों को अपनी जान गंवानी पड़ती है. बिहार में ऐसे कई रेल हादसे हुए हैं जिसे याद कर आज भी लोग सिहर जाते हैं.

बिहार में ट्रेन हादसे
बिहार में ट्रेन हादसे (ETV Bharat)

By ETV Bharat Bihar Team

Published : Jun 17, 2024, 7:00 PM IST

पटना : सोमवार सुबह पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी से सटे फांसीदेवा ब्लॉक के घोषपुकुर इलाके में भीषण ट्रेन हादसा हुआ. इस हादसे में अबतक 15 लोगों की जान जा चुकी है, 60 से अधिक घायल हुए हैं. आज रेलवे काफी हाईटेक हो चुका है, संसाधनों के बावजूद हादसों पर कंट्रोल नहीं रह पा रहा है. ऐसे में पुराने हादसे दिलो-दिमाग में दस्तक दे रहे हैं.

बिहार में हुआ ट्रेन हादसा. (Getty Image)

राजधानी एक्सप्रेस हुई थी दुर्घटनाग्रस्त : जब भी रेल हादसों की बात होती है, बिहार में हुई घटनाओं की याद ताजा हो जाती है. 22 साल पहले 2002 की तस्वीर आज भी लोगों को याद है. जब कोलकाता से नई दिल्ली जा रही हावड़ा राजधानी एक्सप्रेस दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी. बिहार में रफीगंज के पास धावे नदी में गिर ट्रेन की बोगियां समां गई थी. इस हादसे में कम से कम 120 लोगों की जान चली गई थी. उससे ठीक 21 साल पहले बिहार वालों ने ऐसा ही हादसा देखा था.

43 साल पहले का वो मंजर :वो तारीख थी 6 जून 1981, जब एक साथ 800 लोग बागमती नदी में मौत की डुबकी लगाने लगे. कई किस्मत वाले थे, जो बच गए. लेकिन ज्यादातर लोग ट्रेन की बोगी में ही दम तोड़ दिए. 43 साल पहले का वो मंजर आज भी लोगों को अंदर से हिला डालता है.

ईटीवी भारत GFX. (ETV Bharat)

7 डिब्बे बागमती नदी में समाया :यात्रियों से खचाखच भरी 416 डाउन पैसेंजर ट्रेन मानसी से सहरसा जा रही थी. रास्ते में जोरदार बारिश और मौसम बिगड़ने के चलते ट्रेन जैसे ही पुल पर चढ़ ही रही थी कि तभी ड्राइवर ने इमरजेंसी ब्रेक लगा दिया. फिर क्या था 9 डिब्बों की पैसेंजर ट्रेन के 7 डिब्बे बागमती नदी में समा गए. चारों तरफ चीख पुकार मच गई. बागमती के अंदर ट्रेन के भीतर लोगों के सांसों डेर टूटन लगी.

800 की जान गई, 286 शव ही बरामद हुए : जब तक राहत का काम शुरू होता, तब तक सैकड़ों जिंदगी मौत के आगोश में जा चुकी थी. आंकड़ों के अनुसार 800 लोगों की मौत हुई थी. हालांकि सरकारी दस्तावेज में यह संख्या 286 तक ही सिमित रह गई. जब ये हादसा हुआ था. कई लोग बोगी में से निकलकर बोगी के ऊपर खड़े थे. लाशें बोगियों में फंसी थी. कुछ लोग क्षतिग्रस्त पुल पर चढ़े हुए थे. जब तक मदद नहीं पहुंची लोग वैसे ही अटके रहे.

गंभीरता से सोचने की जरूरत :दरअसल, मानसी से सहरसा के लिए एकमात्र पैसेंजर ट्रेन हुआ करती थी. जिस वजह से ट्रेन की छत पर बैठकर भी लोग यात्रा करते थे. 6 जून 1981 को जो यात्री अपने गंतव्य की ओर बढ़ रहे थे, उन्हें क्या पता था कि आगे मौत उनका इंतजार कर रही है. 43 साल बीत गए, पर रेलवे का सिस्टम अभी भी पूरी तरह दुरुस्त नहीं हुआ है. तभी तो आज भी वैसे ही लोगों की जान जा रही है. ऐसे में सरकार को गंभीरता से सोचने की जरूरत है.

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