पटना:बिहार में अप्रैल 2016 में पूर्ण शराबबंदी कानून लागू किया गया था. शराबबंदी को लागू करने के लिए बिहार में कड़े कानून बनाए गए थे. बाद में शराबबंदी कानून को लेकर कई संशोधन किए गए. शराबबंदी कानून में पीने वालों के लिए राहत भी दी गई और जुर्माने की राशि लेकर छोड़ने का प्रावधान किया गया. इस कानून को लेकर हमेशा राजनीतिक विवाद छिड़ा रहा. नीतीश की साथ रहनेवाली पार्टी को छोड़कर अन्य पार्टियों इसके ठीक से लागू नहीं होने की बात करते रहते हैं.
शराबबंदी कानून खत्म करने पर जोर :यदि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़ों की बात करें तो नीतीश सरकार द्वारा शराबबंदी लागू किए जाने के बाद से लगभग 1 करोड़ बिहारियों ने शराब पीना छोड़ दिया है. इसका असर भी दिखाई पड़ रहा है. एक रिसर्च (एशियाई विकास अनुसंधान संस्थान) के मुताबिक शराबबंदी के बाद से दूध जैसी चीजों पर घरेलू खर्च बढ़ गया है. बावजूद इसके बिहार के कई राजनीतिक पार्टियां अपनी रोटी सेंकने में लगी है. उनका कहना है कि 2025 बिहार विधानसभा चुनाव में अगर उनकी पार्टी सरकार में आती है तो बिहार से शराबबंदी कानून खत्म कर देंगे. ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि राजनीतिक दलों के लिए बिहार में शराबबंदी सिर्फ एक वोट बैंक है?
महिलाओं को पसंद है यह कानूनः शराबबंदी कानून से महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा में 37% की कमी दर्ज की गई है. राष्ट्रीय स्तर पर इस तरह के मामले 12% बढ़े हैं. महिलाओं के खिलाफ अपराध दर में 45% की कमी दर्ज की गई है, राष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं के खिलाफ अपराध दर में 3% की वृद्धि हुई है. शराबबंदी कानून के पक्ष में महिलाएं आवाज बुलंद करती रही हैं और इसका फायदा भी नीतीश कुमार को मिलता रहा है.
पीके की घोषणा से सियासत तेजः कोई भी पार्टी इसे समाप्त करने की बात नहीं कही. तमाम तरह की कमियां निकालती रही है. विपक्ष में रहनेवाली पार्टियों ने यहां तक आरोप लगाये हैं कि इस कानून के तहत सिर्फ गरीब और दलित समुदाय के लोग पकड़े जा रहे हैं. शराब माफिया को पुलिस छोड़ देती है. इस कानून के आने के बाद समानांतर अर्थव्यवस्था शुरू होने के भी आरोप लगते रहे हैं, लेकिन किसी भी दल ने इसे समाप्त करने की वकालत नहीं की. अब प्रशांत किशोर ने यह घोषणा कर सभी को बैकफुट पर धकेल दिया.
क्या कहते हैं राजनीति के जानकारः राजनीतिक विश्लेषक डॉक्टर संजय कुमार का मानना है कि 2025 के विधानसभा चुनाव में शराबबंदी बड़ा मुद्दा बनने जा रहा है. राजनीतिक दल इसे अपने-अपने तरीके से भुनाने में जुटे हैं. शराबबंदी कानून को लेकर राजनीतिक दलों का कई बार दोहरा स्टैंड देखने को मिला है. राजनीतिक दल जब नीतीश कुमार के साथ होते हैं तो वह शराबबंदी की खूबियों को बताते हैं लेकिन जैसे ही विपक्ष में आ जाते हैं तो उन्हें खामियां नजर आने लगती है.
"शराब कौन पीता है. युवा वर्ग इसका सेवन करते हैं. शराबबंदी कानून समाप्त करने की बात करके प्रशांत किशोर बिहार के युवाओं पर डोर डाल रहे हैं तो नीतीश कुमार को महिलाओं से समर्थन की उम्मीद है. नीतीश का मानना है कि महिलाओं को घरेलू हिंसा का शिकार नहीं होना पड़ रहा है."- डॉक्टर संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक
जीतन राम मांझी का अपना स्टैंडः शराबबंदी कानून को लेकर हम पार्टी के संरक्षक जीतन राम मांझी का एक अपना अलग स्टैंड रहा है. वो अगर सत्ता पक्ष यानी कि नीतीश कुमार के साथ में भी रहते थे तो शराबबंदी की समीक्षा करने की वकालत करते रहते थे. उन्होंने कई मौके पर इस पर अपने सुझाव दिया. साथ ही नीतीश कुमार से मिलकर इस कानून को समाप्त करवाने की भी बात कही थी. उनका कहना है कि शराबबंदी कानून के तहत ज्यादातर गरीब जेल के अंदर बंद हैं. जो सामर्थ्यवान हैं वह छूट जाते हैं.
"हमारे नेता जीतन राम मांझी का स्टैंड क्लीयर है. हम लोग शराबबंदी कानून के रिव्यू की बात करते रहे हैं और आज भी उसे पर कायम हैं. शराबबंदी कानून का रिव्यू होना चाहिए क्योंकि कानून के तहत ज्यादातर गरीब लोग जेल जा रहे हैं."- विजय यादव, मुख्य प्रदेश प्रवक्ता, हम