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अलसी का रेशा किसानों को बना सकता करोड़पति, फैशन इंडस्ट्री में है भारी डिमांड - LINEN CLOTHES FROM LINSEED FIBER

कड़ी मेहनत के बाद सागर के वैज्ञानिक ने अलसी की एक नई वैरायटी तैयार की है. इसके रेशे से लिनन के महंगे कपड़े तैयार होंगे.

LINEN CLOTHES FROM LINSEED FIBER
अलसी की नई वैरायटी से निकलने वाला रेशा (ETV Bharat)

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Feb 25, 2025, 4:59 PM IST

Updated : Feb 25, 2025, 5:15 PM IST

सागर: मध्य प्रदेश के इकलौते अलसी अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक ने 10 साल की कड़ी मेहनत के बाद अलसी की एक नई वैरायटी तैयार की है. इस नई वैरायटी में अलसी के बीज के अलावा उसके तने से निकलने वाले प्राकृतिक रेशे से किसान मोटी कमाई कर सकेंगे. सबसे खास बात ये है कि इस वैरायटी से निकलने वाले रेशे से लिनन के कपड़े तैयार किए जाएंगे. इस प्रकार के रेशे की टेक्सटाइल और फैशन इंडस्ट्री के कपड़ों को तैयार करने वाली फैक्ट्रियों में बहुत डिमांड है.

विदेश से निर्यात करती हैं रेशा

हमारे देश की टेक्सटाइल कंपनियां चीन, फ्रांस और बैल्जियम से प्राकृतिक रेशा निर्यात करती हैं. हर साल करीब 600 करोड़ की भारतीय मुद्रा विदेश जाती है. खास बात ये है कि यहां ईजाद की गयी वैरायटी से लिनन के कपड़े भी तैयार किए गए हैं. इसके अलावा इसी वैरायटी से उच्च गुणवत्ता का बॉन्ड पेपर भी तैयार किया जा सकता है.

अलसी का रेशा किसानों को बना सकता करोड़पति (ETV Bharat)

अलसी अनुसंधान केंद्र प्रभारी डाॅ के के प्यासीबताते हैं कि "जो देश में प्राकृतिक रेशे की मांग और आपूर्ति में बड़ा अंतर है. प्राकृतिक रेशा चाहे सनई, जूट, केला के प्राकृतिक रेशे या अलसी का फ्लेक्स फाइबर है. ये प्राकृतिक रेशा विदेशों से निर्यात करना पड़ता है. जिसकी 50 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी चीन की है. ऐसे में हमने सोचा कि क्यों ना फ्लेक्स फाइबर (अलसी का रेशे) के लिए ही देश में अलसी की ऐसी प्रजाति विकसित करें कि हमारे किसानों द्वारा उत्पादित हो और किसान उनसे बीज के अलावा पौधे के तने से रेशा निकाले और रेशे से अतिरिक्त आमदनी करें."

अलसी के तने से बना रेशा (ETV Bharat)

अलसी की नई वैरायटी एसएसएल-142

जवाहर नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र के अंतर्गत मध्य प्रदेश का इकलौता अलसी अनुसंधान केंद्र सागर में स्थित है. 1987 में स्थापित अलसी अनुसंधान केंद्र ने अलसी की नई वैरायटी ईजाद की है. हाल ही में यहां केवैज्ञानिक डाॅ के के प्यासी ने अलसी की एक नई वैरायटी तैयार की है, जिसे एसएसएल-142 कहा गया है. उससे बीज के साथ उच्च गुणवत्ता के प्राकृतिक रेशे को निकालने पर काम किया है. जो देश की टेक्सटाइल और फैशन इंडस्ट्री के लिए मददगार साबित होगा.

अलसी अनुसंधान केंद्र सागर (ETV Bharat)

एसएसएल-142 वैरायटी से निकलेगा प्राकृतिक रेशा

अलसी अनुसंधान केंद्र प्रभारी डाॅ के के प्यासी बतातेहैं कि "ये हमारी नई प्रजाति एसएलएस-142 है. सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण पहलू इसकी ऊंचाई है, जो करीब 1.2 मीटर है. पौधे के ऊपर 30 सेमी के एरिया में फल और फूल आते हैं, उसको अलग कर दिया जाता है. पौधे की छाल में 70 से 80 प्रतिशत सेल्यूलोज होता है. इसका तना बहुत मजबूत है. इस छाल का आवरण मशीन के माध्यम से गला लेते हैं. तीन चार दिन गलाने के बाद बड़ी आसानी से छाल को निकाला जाता है. फिर इसको मशीन या गन्ने के जूस निकालने की मशीन में डालकर तना को मसल देते हैं और फिर इसे साफकर रेशे को निकलते हैं."

अलसी का पौधा (ETV Bharat)

बीज के साथ रेशा भी करें हासिल

डाॅ के के प्यासी बताते हैं कि "अगर इस वैरायटी से हम सिर्फ प्राकृतिक रेशे निकालना चाहते हैं तो इसे 15 दिन बाद की अवस्था में हार्वेस्ट करते हैं लेकिन हमें बीज नहीं मिलेगा. सिर्फ उच्च गुणवत्ता का रेशा मिलेगा. जिसकी किसानों को बहुत अच्छी कीमत मिल सकती है. अगर बीज और रेशा दोनों चाहते हैं तो इसके लिए पौधे के पूरा विकसित हो जाने पर ऊपर के हिस्से को बीज के लिए अलग कर नीचे के हिस्से से रेशा निकाल सकते हैं. रेशा निकलने के बाद तने के बचे हुए हिस्से से उच्च गुणवत्ता के ग्रीटिंग और बॉन्ड पेपर बनाए जाते हैं."

अलसी का तना (ETV Bharat)

धरती का सबसे शक्तिशाली पौधा

डाॅ के के प्यासी बताते हैं कि "ये धरती का सबसे शक्तिशाली पौधा है. इस पौधे के हर भाग का उपयोग परिष्करण और मूल्य संवर्धन के बाद किया जाता है. ये विधा बहुत पुरानी है, परंपरागत रूप से सनई और जूट में बुजुर्ग ये काम करते हैं. पिछले सालों में अनाज वाली फसलों को ज्यादा महत्व दिए जाने के कारण तिलहन की अलसी की फसल का रकबा तेजी से घटा है. इस प्रजाति बनाने का उद्देश्य ये अलसी को किसानों के बीच में पुनर्स्थापित करना और बड़े पैमाने पर किसानों को लगवाना, जिससे किसानों को अतिरिक्त आय भी हो."

अलसी के रेशे से बना कपड़ा (ETV Bharat)

अलसी अनुसंधान केंद्र की वैरायटी से बना लेनिन का कपड़ा

डाॅ के के प्यासी बताते हैं कि "पिछले सालों में हमने लगातार प्रयास कर अलसी के तने से उच्च गुणवत्ता का रेशा निकाला. फिर अहमदाबाद की एक कंपनी से कपड़ा बनवाया है. इसी किस्म के अलसी के तने के रेशे को अहमदाबाद भेजा था, जिसका कपड़ा तैयार किया गया है. एक किलो धागे का मूल्य तय किया जाए, तो गुणवत्ता के आधार पर 200-300 रूपए तक होता है. एक मीटर कपड़ा बनाने में 10 किलो धागा का उपयोग किया जाता है. लिनन या काटन या दूसरे प्रकार के धागों के साथ अलग-अलग प्रतिशत में मिश्रित कर फैशन और टेक्सटाइल इंडस्ट्री की मांग पूरी कर सकते हैं."

Last Updated : Feb 25, 2025, 5:15 PM IST

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