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झारखंड को अफीम का गुलाम बनाने की साजिश! बढ़ता जा रहा है खेती का दायरा, सैकड़ों करोड़ का हो रहा है कारोबार - OPIUM CULTIVATION IN JHARKHAND

झारखंड में लगातार अफीम की खेती का दायरा बढ़ता जा रहा है. रांची से राजेश कुमार सिंह की रिपोर्ट.

OPIUM CULTIVATION IN JHARKHAND
अफीम की खेती को नष्ट करती पुलिस (ईटीवी भारत)

By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Feb 22, 2025, 6:08 PM IST

रांची:जंगल, पहाड़, नदियां और झरने झारखंड की खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं. यहां के आदिवासी कम संसाधन में खुशी के साथ जीने की कला सिखाते हैं. अब इसी सादगी और सुंदरता पर नशा के सौदागरों की बुरी नजर गड़ गई है. सौदागरों के द्वारा भोले-भाले ग्रामीणों से अफीम की खेती करवाई जा रही है. कुछ को डराकर तो कुछ को लालच देकर, अब यह नासूर बनने लगा है. क्योंकि साल दर साल अफीम की खेती का दायरा घटने के बजाए बढ़ रहा है. आंकड़े चौंकाने वाले हैं.

साल 2016 में पुलिस ने 259 एकड़ खेत में लगी अफीम की फसल को नष्ट किया था. लेकिन इस साल 21 फरवरी तक 19,086 एकड़ में लगी फसल को नष्ट कर चुकी है. सबसे ज्यादा खूंटी में 10,520 एकड़ में अफीम की फसल को नष्ट किया गया है. दूसरे स्थान पर रांची है, जहां पर 4624 एकड़ में फसल नष्ट की गई है. अफीम की फसल की वजह से कुल आठ जिले खूंटी, चतरा, रांची, लातेहार, पलामू, पश्चिमी सिंहभूम, सरायकेला और हजारीबाग के इलाके प्रभावित हैं.

अफीम की फसल को नष्ट करते हुए (ईटीवी भारत)


283 कांड दर्ज, 190 की गिरफ्तारी

विनष्टीकरण अभियान के दौरान कुल 283 कांड और 958 सनहा दर्ज किए गए हैं. कुल 190 लोगों को गिरफ्तार किया गया है. डीजीपी अनुराग गुप्ता ने पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे वन विभाग द्वारा अफीम की खेती को लेकर की गई कार्रवाई की रिपोर्ट को आधार बनाकर संबंधित लोगों पर एफआईआर करें. उन्होंने बताया कि ऐसे मामलों में वन विभाग सिर्फ अतिक्रमण का मामला दर्ज करता है. हालांकि नशे की खेती के लिहाज से यह कार्रवाई बेहद कमतर साबित होती है.

ट्रैक्टर के जरिए अफीम की फसल को नष्ट करते हुए (ईटीवी भारत)


कैसे तय होती है अफीम की कीमत

एक अनुमान के मुताबिक एक एकड़ में लगी फसल से तीन से चार किलो कच्चा अफीम निकलता है. यह उत्तम बीज, पटवन और खाद की मात्रा पर निर्भर करता है. लिहाजा, एक एकड़ में औसतन 2 किलो कच्चा अफीम निकलता है. लोकल सौदागर औसतन 60 से 80 हजार रुपए प्रति किलो के हिसाब से किसानों से कच्चा अफीम खरीदते हैं. जब किसान खुद शहर में जाकर सौदा करता है तो उसे प्रति किलो एक लाख रुपए तक मिल जाता है. यहां रेट इसलिए बढ़ जाता है क्योंकि किसान को रिस्क उठाना पड़ता है. यही कच्चा अफीम जब अंतरर्राज्यीय बाजार में पहुंचता है तो प्रति किलो की कीमत तीन से चार लाख रुपए तक पहुंच जाती है. बाद में बड़े-बड़े माफिया कच्चे अफीम की प्रोसेसिंग कराकर कोकिन, हेरोइन जैसे ड्रग्स बना देते हैं. फिर इसकी कीमत कई गुणा बढ़ जाती है.

पुलिस द्वारा फसल को नष्ट करते हुए (ईटीवी भारत)


अबतक 1500 करोड़ से ज्यादा की फसल की गई नष्ट

21 फरवरी 2025 तक पूरे राज्य में 19 हजार एकड़ में फसल नष्ट किया जा चुका है. अगर इसको नष्ट नहीं किया गया होता तो प्रति एकड़ 2 किलो के हिसाब से करीब 38 हजार किलो कच्चा अफीम बाजार में पहुंचता. ग्रामीण स्तर पर 1 लाख रुपए प्रति किलो के हिसाब से पुलिस अबतक 380 करोड़ रुपए की अफीम को नष्ट कर चुकी है. पुलिस सूत्रों का कहना है कि अंतर्राज्यीय बाजार में पहुंचते ही इस अफीम की कीमत प्रति किलो तीन से चार लाख रुपए पहुंच जाती है. इस हिसाब से अबतक 1520 करोड़ का कच्चा अफीम नष्ट किया जा चुका है.

अफीम की खेती पर कार्रवाई करती पुलिस (ईटीवी भारत)


राज्य में पहली बार चलाया जा रहा है ज्वाइंट ऑपरेशन: डीजीपी

ईटीवी भारत से बात करते हुए डीजीपी अनुराग गुप्ता ने कहा कि राज्य में पहली बार अफीम की खेती के खिलाफ व्यापक अभियान चलाया जा रहा है. खुद मुख्य सचिव इसकी मॉनिटरिंग कर रही हैं. समय-समय पर अभियान की समीक्षा हो रही है. इस अभियान में वन विभाग और एनसीबी को भी शामिल किया गया है. डीजीपी ने कहा कि अबतक पुलिस के स्तर पर कार्रवाई होती थी. उन्होंने कहा कि अभियान अब 15 मार्च तक चलेगा.

डीजीपी से जब पूछा गया कि क्या यह समझा जाए कि पहले भी इसी स्तर पर अफीम की खेती हो रही थी लेकिन पुलिस वहां तक नहीं पहुंच पा रही थी. जवाब में उन्होंने कहा कि यह कहना मुश्किल है कि पहले क्या हो रहा था. हम आज की बात कर सकते हैं. उन्होंने दो टूक कहा कि अफीम की खेती करने वालों की अब खैर नहीं. उन्होंने बताया कि जहां फसल को नष्ट किया गया है, वहां दोबारा खेती शुरु की गई है या नहीं, इसकी सेटेलाइट इमेज से मिलान की तैयारी की जा रही है.


अफीम की खेती के लिए पत्थलगड़ी की हुई साजिश

खूंटी में अड़की थाना क्षेत्र के कुरुंगा गांव के सामाजिक कार्यकर्ता मंगल मुंडा ने अफीम की खेती का दंश देखा है. ईटीवी भारत से बात करते हुए उन्होंने जो बातें बताई हैं, उसे सुनकर किसी के भी रोंगटे खड़े हो जाएंगे. उन्होंने कहा कि शुरू में ग्रामीण बिल्कुल नादान थे. बाहर के व्यापारी आए और लालच दिया. किसानों को बीज, उर्वरक और पटवन का पैसा एडवांस में मिल जाता है. किसानों को इसकी खेती की लत लग चुकी है. अफीम की फसल को बचाने के लिए ही पत्थलगड़ी की साजिश रची गई. यही वजह है कि पुलिस और बाहरियों को गांव में घुसने नहीं दिया जा रहा था.


सूख रहा किसानों का शरीर, जान गंवा चुकी हैं महिलाएं: सामाजिक कार्यकर्ता

सामाजिक कार्यकर्ता मंगल मुंडा बताते हैं कि अफीम की खेती करने वालों के स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ रहा है. डोडे में चीरा लगाते समय अगर नाक में गंध चला गया तो गर्भ खराब होना तय है. दो महिलाओं का गर्भाशय निकलवाना पड़ा था. कई महिलाओं का गर्भ सड़ गया था. आरोप से बचने के लिए ग्रामीण कह देते हैं कि डायन खा गई. इस काम में बच्चों को भी लगाया जा रहा है. वैसे पुरुषों और बच्चों का शरीर सूख रहा है. अफीम की खेती करने वाले किसान अब एक बाल्टी पानी भी कुंआ से नहीं भर पा रहे हैं. किसान चौतरफा कुचले जा रहे हैं.

कई बार पुलिस की वर्दी पहनकर भी ग्रामीणों को सौदागर लूट लेते हैं. डर से किसान पुलिस के पास नहीं जाते थे. पहले पुलिस वाले डंडा से फसल नष्ट करते थे. फोटो खिंचवाकर तस्वीर शेयर कर देते थे. अब ट्रैक्टर का इस्तेमाल हो रहा है. मंगल मुंडा ने इस मुहिम के लिए डीजीपी अनुराग गुप्ता के प्रति आभार जताया है. उन्होंने सुझाव दिया है कि पुलिस के आलाधिकारियों को प्रभावित जिलों के सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ-साथ सांसद और विधायकों के साथ समय-समय पर बैठक करना चाहिए.


झारखंड में अफीम की खेती का बढ़ता दायरा!

साल अफीम के खेती का दायरा (एकड़ में)
2025 19,000
2024 3974
2023 2545
2022 2926
2021 3034
2020 2634
2019 2015
2018 2160
2017 2676
2016 259
2015 516
2014 81.26
2013 247
2012 66.60
2011 26.85

मौत के सौदागरों को क्यों नहीं हो पाती है सजा

इसकी कई वजहें हैं. सजा इसलिए नहीं हो पाती है क्योंकि जब्ती की प्रक्रिया को एनडीपीएस एक्ट के प्रावधानों के तहत पूरा नहीं किया जाता है. हर थाना में डीडी किट यानी ड्रग डिटेक्शन किट दिया गया था. जब्ती की प्रक्रिया में उसका इस्तेमाल होना चाहिए. नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो से जुड़कर पुलिस को काम करना पड़ता है. पुलिस को अपने स्तर से रेड और जब्ती करने पर गवाह मिलना मुश्किल होता है. क्योंकि इस कारोबार को प्रतिबंधित संगठनों का समर्थन रहा है.

यही वजह है कि डर की वजह से स्वतंत्र गवाह सामने नहीं आ पाते हैं. ससमय गवाही नहीं दिलाए जाने का फायदा अभियुक्तों को मिल जाता है. भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, भारतीय न्याय संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 के आने से अभियुक्तों को सजा दिलाने में प्रभावी साबित होने की संभावना बढ़ी है. क्योंकि अब साक्ष्यों को पुख्ता बनाने के लिए वीडियो रिकॉर्डिग से लेकर कई तरह की प्रक्रिया पूरी करनी पड़ती है.


अफीम की फसल तैयार होने का प्रोसेस

अक्टूबर से खेत को तैयार किया जाता है. नवंबर में खेतों में मेढ़ तैयार कर बीजारोपण किया जाता है. अफीम की फसल को बेहतर ग्रोथ के लिए ठंड और नमी की जरुरत होती है. नवंबर के अंत तक पौधा निकल जाता है. दिसंबर माह में फसल की लंबाई एक से डेढ़ फीट तक हो जाती है. जनवरी माह में फूल आने लगते हैं. इसके तीन रंग के फूल खिलते हैं. सबसे प्रमुख होता है सफेद. इसके बाद बैगनी और गुलाबी रंग के भी फूल खिलते हैं. कुछ खेतों में सफेद फूल में गुलाबी या बैगनी का छींटा भी दिखता है.

वैसे यह फसल जहर होती है, लेकिन देखने में बेहद खूबसूरत लगती है. नवंबर में फसल लगाने पर फरवरी में पॉपी निकल आता है. पौधा परिपक्व होने पर गोल आकार वाले पॉपी में ब्लेड से चीरा लगाया जाता है. पॉपी के आकार के हिसाब से सामान्यत: छह से आठ चीरा लगाकर छोड़ दिया जाता है. उस चीरा से दूध की तरह दिखने वाला एक तरल पदार्थ निकलता है तो एक दिन में सूखकर उसी पॉपी पर ब्राउन रंग धारण कर लेता है. यही कच्चा अफीम होता है. खेती करने वाले हर पॉपी से निकले ब्राउन पदार्थ को खुरचकर पतीले में जमा करते हैं. कुछ दिन बाद उसी पॉपी पर पूर्व में हुई कटिंग वाले जगह को छोड़कर दोबारा चीरा लगाया जाता है. इस प्रक्रिया को कई बार दोहराया जाता है.


कच्चा अफीम, पोस्ता और डोडा का खेल

पुलिस सूत्रों के मुताबिक कच्चा अफीम को खरीदने के लिए पंजाब, राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, रांची और बिहार के खरीदार पहुंचते हैं और किसान को गुणवत्ता के हिसाब से कीमत लगाते हैं. यही व्यापारी उस कच्चे अफीम को दूसरे स्टेट में जाकर दो से तीन गुणे दाम पर बेचते हैं. बाद में बड़े-बड़े ड्रग माफिया इसकी प्रोसेसिंग कराते हैं और हेरोइन समेत अन्य नशीले पदार्थ बनाकर प्रति ग्राम हजारों की उगाही करते हैं. वोल्यूम के हिसाब से यह कारोबार सैकड़ों करोड़ में चला जाता है.

पॉपी से कच्चा अफीम निकालने की प्रक्रिया पूरी होने के बाद वह पॉपी सूखने लगता है. जिसमें से पोस्ता दाना निकलता है. इसकी भी अच्छी खासी कीमत मिलती है. इसके बाद सूख चुके अफीम के पौधे का शेष हिस्सा डोडा के रूप में इस्तेमाल होता है. किसान इसको बोरियों में भरकर चोरी-छुपे बेचते हैं और अच्छी कमाई कर लेते हैं. इसका भी इस्तेमाल नशे के रूप में किया जाता है. बेहद सुंदर दिखने वाला यह पौधा मौत बांटता है. लेकिन इसका दूसरा पहलू भी है. इसका इस्तेमाल कई तरह की दवाओं में होता है. साइकोट्रॉपिक दवाओं में इसका इस्तेमाल होता है. पोस्ता को भी काफी गुणकारी कहा जाता है.


स्पेशल कोर्ट और स्पेशल थाने का स्टेट्स

साल 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने एनडीपीएस यानी नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस एक्ट के तहत झारखंड के 12 जिलों में विशेष कोर्ट की स्थापना का आदेश दिया था. हाईकोर्ट के निर्देश पर खूंटी, चतरा, रांची, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिम सिंहभूम, सिमडेगा, पलामू, गढ़वा, लातेहार, हजारीबाग, गिरिडीह और धनबाद में विशेष कोर्ट के गठन का प्रस्ताव था. अबतक सिर्फ चतरा में एनडीपीएस के तहत विशेष कोर्ट का संचालन हो रहा है. अप्रैल 2024 में तत्कालीन डीजीपी अजय कुमार सिंह ने हाईलेवल मीटिंग कर हजारीबाग, जमशेदपुर, चतरा, खूंटी, सरायकेला और रांची में नारकोटिक्स थाना खोलने के लिए प्रस्ताव दिया था. लेकिन अभी तक इसको भी अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका है.


नशा के कारोबार पर सख्त सजा का है प्रावधान

नशे के कारोबार पर पूरी तरह से रोक नहीं लगने पर हाईकोर्ट भी फटकार लगा चुका है. जून 2024 में हाईकोर्ट अपनी मौखिक टिप्पणी में कह चुका है कि कहीं नशे के कारोबार में पुलिस की संलिप्तता तो नहीं है. एनडीपीएस एक्ट के तहत दो तरह के नशीले पदार्थ आते हैं. पहला है नारकोटिक यानी मादक और दूसरा है साइकोट्रॉपिक यानी मनोदैहिक. भारत में दोनों पदार्थों का उपयोग वर्जित है. इससे जुड़े अपराध के लिए मामले की गंभीरता के आधार पर एक साल से 20 साल तक की सजा का प्रावधान है.


खूंटी के पांच थाना क्षेत्र अफीम की खेती के लिए बदनाम

खूंटी जिला में अड़की, खूंटी और मुरहू प्रखंड के कुल पांच थाना क्षेत्र मसलन खूंटी, मुरहू, मारंगहादा, साइको और अड़की में व्यापक स्तर पर अफीम की खेती होती है. ये सभी इलाके आदिवासी बहुल हैं. गुमला से लगे कर्रा के क्षेत्र में भी अफीम की खेती होती है. हर साल खूंटी में अफीम की फसल के विनष्टीकरण का दायरा बढ़ रहा है. इससे साफ है कि ग्रामीणों में पुलिस कार्रवाई का कोई असर नहीं पड़ रहा है.

आपको जानकार हैरानी होगी कि अफीम की फसल लगाने के मामले में जो प्राथमिकियां दर्ज हो रही हैं, उनमें मुखिया, ग्राम प्रधान, पंचायत सेवक, पारा टीचर के भी नाम सामने आ रहे हैं. यह बताता है कि नशा का यह कारोबार किस कदर पैठ जमा चुका है. नशे की लत की वजह से पंजाब का क्या हाल है, यह किसी से छिपा नहीं है. झारखंड से इस फसल को जड़ से नहीं उखाड़ा गया तो आने वाले समय में यह पूरे सिस्टम को अपनी जद में ले लेगा.

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