देवघर: झारखंड आदिवासी बहुल राज्य माना जाता है क्योंकि यहां आदिवासी समुदाय बहुत संख्या में हैं. यहां आदिवासियों की कई उपजातियां भी रहती हैं. जिसमें एक पहाड़िया जनजाति भी है. पहाड़िया जनजाति सबसे ज्यादा झारखंड के संथाल परगना में निवास करती है. इनके बारे में कहा जाता है कि ये पहाड़ या फिर उसके आसपास ही रहते हैं.
संथाल क्षेत्र में आदिवासी समाज के लिए काम कर रहे और उनके बारे में जानकारी रखने वाले सामाजिक कार्यकर्ता एहतेशाम अहमद बताते हैं कि पूरे देश में पहाड़िया जनजाति की तीन उपजातियां हैं. जिसमें कुमारभगा पहाड़िया, सावर या सोरिया पहाड़िया और माल पहाड़िया हैं. लेकिन झारखंड में सिर्फ दो तरह की पहाड़िया जनजाति रहती है. जिसमें एक सावर या सोरिया पहाड़िया और दूसरी माल पहाड़िया जनजाति. जिसके उपनाम पुजर या पुजहर, नैया, देहरी, सिंग अन्य होते हैं.
मूलभूत सुविधाओं से महरूम पहाड़िया जनजाति
संथाल क्षेत्र के देवघर जिले में रहने वाले वैसे पहाड़िया आदिम जनजाति के लोग आज भी मूलभूत सुविधाओं से महरूम हैं. देवघर जिले के कई ऐसे गांव हैं जहां माल पहाड़िया जनजाति के लोग निवास करते हैं. इनमें उखरिया, धनपड़ी, धमनी, तुलसी डाबर, नीलामत डीह, तिलैया सहित अन्य गांव शामिल हैं. इन सभी गांव में ईटीवी भारत की टीम ने जब जायजा लिया तो देखा कि झारखंड में आदिम जनजाति कहे जाने वाले समाज के लोग आज भी मूलभूत सुविधाओं से काफी दूर हैं. इनके पास ना तो रहने के लिए घर है ना ही किसी तरह की सुविधाएं.
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देवघर जिले में आदिम जनजाति माल पहाड़िया के लिए वर्षों से काम कर रहीं बेलिया देवी बताती हैं कि देवघर जिले के कई ऐसे प्रखंड हैं, जहां पर हमारी जाति रहती है, लेकिन उन्हें सरकार की विशेष सुविधा का लाभ नहीं मिलता है. उन्होंने अपनी समस्या बताते हुए कहा कि आज देवघर जिले में रहने वाले हजारों माल पहाड़िया जनजाति के लोगों का जाति प्रमाण पत्र सही तरीके से नहीं बन पा रहा है.
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'पहाड़िया समाज के लोग जब प्रखंड कार्यालय में अपना जाति प्रमाण पत्र बनाने जाते हैं तो वहां पर बैठे अधिकारी उन्हें यह कहकर लौटा देते हैं कि उनकी जाति को अब पहाड़िया जनजाति से अलग कर दिया गया है. इसलिए उन्हें सरकार की तरफ से मिलने वाली विशेष सुविधा नहीं दी जाएगी. बेलिया देवी ने बताया कि ऑनलाइन तरीके से बनने वाले जाति प्रमाण पत्र में पुजहर, नैय्या, डेहरी, सिंग टाइटल रखने वाले लोगों को अब अनुसूचित जाति में शामिल किया जा रहा है, जबकि यह सभी आदिम जनजाति के लोग हैं. बेलिया देवी ने बताया कि उनके पूर्वजों के जाति प्रमाण पत्र पर माल पहाड़िया लिखा गया था तो फिर वर्तमान समय में जिला प्रशासन किस आधार पर उन लोगों को आदिम जनजाति की श्रेणी से अलग कर रहा है.'- बेलिया देवी, सामाजिक कार्यकर्ता
नहीं मिलता आर्थिक पैकेज
वहीं, लोगों की समस्या को लेकर हमने जब पिछरीबाग पंचायत की मुखिया शांति देवी के प्रतिनिधि सुकू हेंब्रम से बात की तो उन्होंने कहा कि उनके पास भी क्षेत्र में रहने वाले माल पहाड़िया आदिम जनजातियों के लिए कोई विशेष आर्थिक पैकेज नहीं पहुंचता है. इसलिए वो भी ग्रामीणों तक कोई सुविधा नहीं पहुंचा पा रहे हैं. उन्होंने जिला प्रशासन और राज्य सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार की तरफ से देवघर जिले में रहने वाले पुजहर, नैय्या, डेहरी समाज के लिए स्पेशल पैकेज दिया जाता तो वह निश्चित रूप से लोगों तक मदद पहुंचा पाते. लेकिन सरकारी उदासीनता के कारण वह लोगों की मदद नहीं कर पा रहे हैं.
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'किसी भी सरकारी योजना का लाभ उनके गांव तक नहीं पहुंचता है. पहाड़ के बगल में रहने की वजह से कई बार उनके गांव के लोग हादसे के शिकार हो जाते हैं. पहाड़ से निकलने वाले सांप और बिच्छू के काटने के कारण कई लोगों की मौत हो जाती है. लेकिन सरकार उनकी समस्याओं पर ध्यान नहीं दे रही है.'- गुलटन पूजर, निवासी धनपरी गांव
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देवघर के पुजर, पुजहर, नैय्या, डेहरी समाज से ताल्लुक रखने वाले लोगों की समस्या को लेकर हमने जब देवघर जिले के कल्याण विभाग के पदाधिकारी दयानंद दुबे से बात की तो उन्होंने कहा कि लोगों की समस्या को सुनने के बाद उन्होंने उपायुक्त के आदेश पर राज्य सरकार से पत्राचार किया है. राज्य स्तर पर बैठे अधिकारी की तरफ से इसको लेकर अभी तक कोई दिशा निर्देश नहीं आया है. इसलिए ऐसे लोगों को फिलहाल आदिम जनजाति की श्रेणी में नहीं रखा जा रहा है.
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सरकारी आंकड़ों के अनुसार देवघर जिले में वर्तमान में सिर्फ 68 ऐसे गांव हैं जहां पर माल पहाड़ी निवास करते हैं, जिनकी संख्या करीब साढ़े चार हजार है. जबकि सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि लगभग 200 ऐसे गांव हैं. जहां पर आदिम जनजाति जीवन यापन कर रहे हैं और उन्हें आदिम जनजाति की श्रेणी से दूर रखा जा रहा है. सामाजिक कार्यकर्ताओं के अनुसार पूरे देवघर जिले में 20 से 22 हजार माल पहाड़िया आदिम जनजाति वास कर रही है.
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कैसे हो सकता है विकास
रघुवर दास की सरकार के समय में प्रीमिटिव ट्राइब्स के लिए पहाड़िया कल्याण ऑफिस को मजबूत करने की बात की गई थी, लेकिन वह भी सिर्फ घोषणा ही बन कर रह गई. आदिम जनजातियों के लिए काम करने वाले बुद्धिजीवियों का कहना है कि झारखंड में माल पहाड़िया जैसे आदिम जनजातियों का पूर्ण विकास तभी हो सकता है. जब प्रीमिटिव ट्राइब्स कमीशन का गठन सरकार द्वारा किया जाए.
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