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बिन वारंट-बिना हथकड़ी, ये है डिजिटल अरेस्ट! जानें, क्या बला है ये - Cyber ​​crime - CYBER ​​CRIME

Know what is digital arrest. साइबर क्राइम, जिसकी जद में अक्सर लोग आ रहे हैं. पुराने तरीकों को छोड़ अब अपराधी नये तरीकों से लोगों के खातों पर डाका डाल रहे हैं. झारखंड सीआईडी के साइबर क्राइम ब्रांच के लिए ऐसा ही एक तरीका चुनौती बनी गयी है. ईटीवी भारत की रिपोर्ट से जानिए

Know what is digital arrest through which cyber criminals commit fraud
ग्राफिक्स इमेज (Etv Bharat)

By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Jun 11, 2024, 8:07 PM IST

रांचीः साइबर अपराधियों के लिए बदनाम झारखंड में अब डिजिटल अरेस्ट एक बड़ी परेशानी के साथ साथ नयी चुनौती बन गयी है. झारखंड सीआईडी के साइबर क्राइम ब्रांच में डिजिटल अरेस्ट के चार मामले सामने आ चुके हैं. जिसमें करोड़ों रुपए की ठगी को अंजाम दिया गया है. डिजिटल अरेस्ट करने के लिए साइबर अपराधी विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों और पुलिस की फेक आईडी का सहारा ले रहे हैं.

डिजिटल अरेस्ट के बारे में बतातीं सीआईडी साइबर क्राइम ब्रांच की डीएसपी (ETV Bharat)

रिटायर्ड और नौकरी वालों को किया जा रहा टारगेट

सीआईडी साइबर क्राइम ब्रांच की डीएसपी नेहा बाला के अनुसार डिजिटल अरेस्ट साइबर अपराधियों का एक नया हथियार है. देशभर में सक्रिय साइबर अपराधी सीबीआई, ईडी, एनआईए और पुलिस के नाम पर इतना दहशत भर देते हैं कि ठगी का शिकार होने वाला व्यक्ति किसी से मदद भी नहीं मांग पाता है. सीआईडी के साइबर क्राइम ब्रांच के अनुसार डिजिटल अरेस्ट के मामले सबसे ज्यादा रिटायर्ड अधिकारियों और नौकरी पेशा वालों के साथ सामने आ रहे हैं. झारखंड में तो एक पूर्व आईएएस, डॉक्टर और बिजनेसमैन इसके शिकार हो चुके हैं.

कैसे करते हैं टारगेट

साइबर अपराधी डिजिटल अरेस्ट करने के लिए पूरी प्लानिंग के साथ काम करते हैं. जिस व्यक्ति से उन्हें ठगी करना है, उसका वह पूरा प्रोफाइल तैयार करते हैं. साइबर अपराधी यह जानते हैं कि किसी बड़े बिजनेसमैन, डॉक्टर और रिटायर अधिकारियों को इलीगल ट्रांजेक्शन और मनी लाउंड्रिंग जैसे मामले में डराया जा सकता है. इसके लिए सबसे पहला साइबर अपराधी विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों के बड़े अधिकारियों की तस्वीर और एजेंसी का लोगो जुगाड़ करते हैं. इसके बाद अपने शिकार को फोन करके बताते हैं कि उनके बैंक खाता और मोबाइल सिम का प्रयोग इलीगल ट्रांजैक्शन और मनी लाउंड्रिंग के लिए किया गया है.

साइबर अपराधी अपने शिकार को यह भी बताते हैं कि उनके खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी हो चुका है. अपने शिकार के नाम का गिरफ्तारी वारंट भी है उसके व्हाट्सएप पर फिर ईमेल आईडी पर भेज देते हैं. साइबर अपराधियों की धमकी से डरा हुआ व्यक्ति जब इस मामले से अपने आपको निर्दोष बताते हुए मदद के भीख मांगता है. इसके बाद साइबर अपराधी उन्हें अलग-अलग एकाउंट नंबर देकर लाखों रुपए की डिमांड करते हैं. सुरक्षा एजेंसियों के नाम के वारंट को देखकर लोग पैसे ट्रांसफर कर देते हैं. साइबर डीएसपी नेहा बाला के अनुसार साइबर क्राइम ब्रांच में डिजिटल अरेस्ट के चार मामले दर्ज हो चुके हैं.

ये है डिजिटल अरेस्ट (ETV Bharat)

करोड़ों का घोटाला बोलकर मांगते हैं पैसा

साइबर क्राइम ब्रांच के अनुसार साइबर अपराधी किसी बड़े घोटाले में शामिल होने का आरोप लगाकर ऐसे व्यक्ति को फोन करते हैं जो अधिकारी हो या अधिकारी रह चुका हो. सुरक्षा एजेंसियों के अधिकारी बनकर साइबर अपराधी फेक अरेस्ट वारंट भेजते हैं. इसके बाद वह अपने शिकार को यह विश्वास दिलातें हैं कि एजेंसी किसी भी वक्त उन्हें गिरफ्तार कर सकती है. एक तरह से साइबर अपराधी अपने शिकार को हिप्टोनाइज कर देते हैं. उसके बाद साइबर अपराधी अपने शिकार को यह बताते हैं कि जितने रुपए का घोटाला किया गया है उसका हिस्सा अगर वह तुरंत एकाउंट में जमा कर देंगे तो इस घोटाले में उन्हें राहत दिलाई जा सकती है. इसके बाद जांच की प्रक्रिया पूरी होने के बाद अगर आप निर्दोष साबित हुए तो आपके पैसे वापस कर दिए जाएंगे. सुरक्षा एजेंसी से बचने के लिए लोग लाखों रुपए साइबर अपराधियों के खातों में डाल देते हैं.

पीड़ित को घंटों घर में डिजिटली बंधक बना लेते हैं अपराधी

साइबर अपराधियों की इस नई तकनीक को सीआईडी की साइबर क्राइम ब्रांच के द्वारा डिजिटल अरेस्ट का नाम दिया गया है. सबसे खतरनाक बात तो यह है कि रांची के एक व्यक्ति को साइबर अपराधियों ने 12 दिनों तक उसके घर में ही डिजिटल अरेस्ट करके रखा हुआ था. जब उस व्यक्ति ने पुलिस अधिकारियों और वकील से बात करके मामले की जानकारी ली तब उन्हें यह पता चला कि उनके साथ ठगी को अंजाम दिया गया है. रांची में दर्ज हुए कई मामलों में ठगी के शिकार हुए लोगों ने बताया है की साइबर अपराधियों ने उन्हें घंटे तक फोन में ही उलझाए रखा फोन काटने पर, वे पूरे परिवार को गिरफ्तार कर लेने की धमकी देने लगते हैं.

बड़ा रैकेट काम कर रहा, विदेशों तक फैला है जाल

डिजिटल अरेस्ट की साजिश को अंजाम देने के लिए एक बड़ा रैकेट कम कर रहा है. साइबर अपराधियों के इस गिरोह के तार विदेशों से भी जुड़े हुए हैं. ठगी के पैसे खातों में ट्रांसफर करने के लिए बाहर देश के बैंकों का प्रयोग किया जा रहा है ताकि मनी ट्रेल के सबूत को प्रभावित किया जा सके.

रांची से पकड़ाया गिरोह

रांची के बरियातू इलाके में रहने वाले एक व्यक्ति को साइबर अपराधियों ने उनके घर में ही 12 दिनों तक डिजिटल अरेस्ट करके रखा और उनसे 26 लाख 97 हजार रुपये ठग लिए. जब यह मामला सीआईडी के साइबर क्राइम ब्रांच में पहुंचा तो सीआईडी डीजी अनुराग गुप्ता ने खुद इस मामले में शामिल अपराधियों को गिरफ्तार करने के लिए लग गए थे. इस मामले में सीआईडी के साइबर क्राइम ब्रांच को सफलता भी हाथ लगी और पांच साइबर अपराधियों को देश के अलग-अलग हिस्सों से गिरफ्तार किया गया, जिसमें से तीन रांची के थे.

इस गिरोह का सरगना रांची के किशोरगंज का रहने वाला योगेश अग्रवाल था. योगेश अग्रवाल चीन के रहने वाले कुछ साइबर अपराधियों के साथ मिलकर ठगी के इस धंधे को चल रहा था. योगेश अग्रवाल के द्वारा साइबर फ्रॉड के लिए कई कॉर्पोरेट बैंक अकाउंट विभिन्न नाम और पते पर ओपन करवाता था. एक से दो ठगी के बाद ही अकाउंट ब्लैक लिस्टेड हो जाता था, ब्लैकलिस्टेड एकाउंट में पैसे आ तो जाते थे लेकिन उसे कोई निकाल नहीं सकता है. ऐसे में योगेश और दूसरे साइबर फ्रॉड लगातार नए-नए कॉर्पोरेट बैंक का एकाउंट खुलवाते थे. ठगी के अपने धंधे को बेहतर तरीके से चलने के लिए योगेश अग्रवाल ने बाकायदा रांची में एक आलीशान दफ्तर भी खोल कर रखा था.

ठगी से मिलता है लाखों का कमीशन

26 लाख रुपए की साइबर ठगी के मामले में रांची से गिरफ्तार पांच आरोपियों ने सीआईडी के साइबर क्राइम ब्रांच के सामने यह खुलासा किया है कि उनका सरगना योगेश अग्रवाल पार्टनरशिप फर्म का करंट बैंक अकाउंट खाता खोलकर कॉरपोरेट इंटरनेट बैंकिंग खातों को सक्रिय करता था. इसके बाद टेलीग्राम हैंडल के माध्यम से चीन के सहयोगियों के साथ क्रैडेंशियल साझा करता था. सीआईडी के साइबर क्राइम ब्रांच के अनुसार कॉरपोरेट अकाउंट से एक करोड़ से ज्यादा का ट्रांजेक्शन होने पर 15 से 20 लाख रुपए का बतौर कमीशन योगेश को मिलता था.

फ्रॉड कॉल आने पर क्या करें (ETV Bharat)

बचाव के लिए सावधानी ही एक मात्र उपाय

सीआईडी के साइबर क्राइम ब्रांच के अनुसार डिजिटल अरेस्ट से बचने का एकमात्र तरीका सावधानी ही है. लोगों को यह जानना होगा कि कोई भी सुरक्षा एजेंसी किसी भी व्यक्ति को वीडियो कॉल के जरिए कभी भी पूछताछ नहीं करती है. पूर्व में अगर कोई मामला ना हो तो ऐसे में वारंट जारी ही नहीं हो सकता है. इन सब चीजों को आम लोगों को समझना जरूरी है. उन्हें जागरूक होना होगा कि ये सिर्फ साइबर ठगी का नया हथकंडा है.

फोन आने पर क्या करें

  • किसी भी हाल में डरें नहीं.
  • साइबर अपराधी अगर मोबाइल कॉल न काटने दें तो भी आप फोन डिस्कनेक्ट कर दें.
  • तुरंत साइबर क्राइम ब्रांच के हेल्पलाइन नंबर या फिर नजदीकी साइबर थाना से संपर्क करें.
  • साइबर अपराधियों के द्वारा भेजे जाने वाले वारंट का सत्यापन करवाएं.
  • अपने दोस्तों और परिवार वालों को पूरी बात बताएं.
  • जरूरत हो तो साइबर क्राइम ब्रांच के द्वारा जारी किए गए अधिकारियों के नंबर पर सीधे संपर्क करें.

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