रांचीः साइबर अपराधियों के लिए बदनाम झारखंड में अब डिजिटल अरेस्ट एक बड़ी परेशानी के साथ साथ नयी चुनौती बन गयी है. झारखंड सीआईडी के साइबर क्राइम ब्रांच में डिजिटल अरेस्ट के चार मामले सामने आ चुके हैं. जिसमें करोड़ों रुपए की ठगी को अंजाम दिया गया है. डिजिटल अरेस्ट करने के लिए साइबर अपराधी विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों और पुलिस की फेक आईडी का सहारा ले रहे हैं.
रिटायर्ड और नौकरी वालों को किया जा रहा टारगेट
सीआईडी साइबर क्राइम ब्रांच की डीएसपी नेहा बाला के अनुसार डिजिटल अरेस्ट साइबर अपराधियों का एक नया हथियार है. देशभर में सक्रिय साइबर अपराधी सीबीआई, ईडी, एनआईए और पुलिस के नाम पर इतना दहशत भर देते हैं कि ठगी का शिकार होने वाला व्यक्ति किसी से मदद भी नहीं मांग पाता है. सीआईडी के साइबर क्राइम ब्रांच के अनुसार डिजिटल अरेस्ट के मामले सबसे ज्यादा रिटायर्ड अधिकारियों और नौकरी पेशा वालों के साथ सामने आ रहे हैं. झारखंड में तो एक पूर्व आईएएस, डॉक्टर और बिजनेसमैन इसके शिकार हो चुके हैं.
कैसे करते हैं टारगेट
साइबर अपराधी डिजिटल अरेस्ट करने के लिए पूरी प्लानिंग के साथ काम करते हैं. जिस व्यक्ति से उन्हें ठगी करना है, उसका वह पूरा प्रोफाइल तैयार करते हैं. साइबर अपराधी यह जानते हैं कि किसी बड़े बिजनेसमैन, डॉक्टर और रिटायर अधिकारियों को इलीगल ट्रांजेक्शन और मनी लाउंड्रिंग जैसे मामले में डराया जा सकता है. इसके लिए सबसे पहला साइबर अपराधी विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों के बड़े अधिकारियों की तस्वीर और एजेंसी का लोगो जुगाड़ करते हैं. इसके बाद अपने शिकार को फोन करके बताते हैं कि उनके बैंक खाता और मोबाइल सिम का प्रयोग इलीगल ट्रांजैक्शन और मनी लाउंड्रिंग के लिए किया गया है.
साइबर अपराधी अपने शिकार को यह भी बताते हैं कि उनके खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी हो चुका है. अपने शिकार के नाम का गिरफ्तारी वारंट भी है उसके व्हाट्सएप पर फिर ईमेल आईडी पर भेज देते हैं. साइबर अपराधियों की धमकी से डरा हुआ व्यक्ति जब इस मामले से अपने आपको निर्दोष बताते हुए मदद के भीख मांगता है. इसके बाद साइबर अपराधी उन्हें अलग-अलग एकाउंट नंबर देकर लाखों रुपए की डिमांड करते हैं. सुरक्षा एजेंसियों के नाम के वारंट को देखकर लोग पैसे ट्रांसफर कर देते हैं. साइबर डीएसपी नेहा बाला के अनुसार साइबर क्राइम ब्रांच में डिजिटल अरेस्ट के चार मामले दर्ज हो चुके हैं.
करोड़ों का घोटाला बोलकर मांगते हैं पैसा
साइबर क्राइम ब्रांच के अनुसार साइबर अपराधी किसी बड़े घोटाले में शामिल होने का आरोप लगाकर ऐसे व्यक्ति को फोन करते हैं जो अधिकारी हो या अधिकारी रह चुका हो. सुरक्षा एजेंसियों के अधिकारी बनकर साइबर अपराधी फेक अरेस्ट वारंट भेजते हैं. इसके बाद वह अपने शिकार को यह विश्वास दिलातें हैं कि एजेंसी किसी भी वक्त उन्हें गिरफ्तार कर सकती है. एक तरह से साइबर अपराधी अपने शिकार को हिप्टोनाइज कर देते हैं. उसके बाद साइबर अपराधी अपने शिकार को यह बताते हैं कि जितने रुपए का घोटाला किया गया है उसका हिस्सा अगर वह तुरंत एकाउंट में जमा कर देंगे तो इस घोटाले में उन्हें राहत दिलाई जा सकती है. इसके बाद जांच की प्रक्रिया पूरी होने के बाद अगर आप निर्दोष साबित हुए तो आपके पैसे वापस कर दिए जाएंगे. सुरक्षा एजेंसी से बचने के लिए लोग लाखों रुपए साइबर अपराधियों के खातों में डाल देते हैं.
पीड़ित को घंटों घर में डिजिटली बंधक बना लेते हैं अपराधी
साइबर अपराधियों की इस नई तकनीक को सीआईडी की साइबर क्राइम ब्रांच के द्वारा डिजिटल अरेस्ट का नाम दिया गया है. सबसे खतरनाक बात तो यह है कि रांची के एक व्यक्ति को साइबर अपराधियों ने 12 दिनों तक उसके घर में ही डिजिटल अरेस्ट करके रखा हुआ था. जब उस व्यक्ति ने पुलिस अधिकारियों और वकील से बात करके मामले की जानकारी ली तब उन्हें यह पता चला कि उनके साथ ठगी को अंजाम दिया गया है. रांची में दर्ज हुए कई मामलों में ठगी के शिकार हुए लोगों ने बताया है की साइबर अपराधियों ने उन्हें घंटे तक फोन में ही उलझाए रखा फोन काटने पर, वे पूरे परिवार को गिरफ्तार कर लेने की धमकी देने लगते हैं.
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