रांचीः साल 2024 नक्सलवाद के मुद्दे पर झारखंड पुलिस के लिए बेहद कामयाबी भरा रहा. पूरे साल अपने आप को झारखंड का सबसे बड़ा नक्सली संगठन कहने वाला भाकपा माओवादी भी बैकफुट पर रहा. पूरे राज्य से साल भर में अलग अलग गुटों के 400 से ज्यादा उग्रवादी सलाखों के पीछे पहुंचा दिए गए. वहीं 10 इनकाउंटर में भी नक्सली मारे गए.
कोल्हान में सिमटा नक्सलवाद
साल 2024 खत्म होने के कगार पर झारखंड के जन्म के समय से ही नक्सलवाद के रूप में जो काली छाया मंडरा रहा था, वो अब छटने के कगार पर पहुंच गया है. झारखंड के डीजीपी अनुराग गुप्ता कहते हैं कि झारखंड में नक्सलवाद का तिलिस्म अब खत्म होने के कगार पर पहुंच गया है. नक्सलियों के खिलाफ अभियान में पिछले पांच सालों के दौरान झारखंड पुलिस ने जबरदस्त कामयाबी हासिल की है. प्रशांत बोस जैसे बड़े नेताओं की गिरफ्तारी, महाराज जैसे दर्जन पर इनामी कमांडर्स का सरेंडर और 52 से अधिक नक्सलियों की इनकाउंटर में मौत ने नक्सलवाद पर कड़ा प्रहार किया.
10 का हुआ इनकाउंटर, 12 ने किया सरेंडर
10 जून 2024 को सारंडा में झारखंड पुलिस में नक्सलियों को सबसे बड़ा नुकसान दिया. 10 जून को एक साथ छह नक्सलियों को मार गिराया गया था, जिसमें दो इनामी थे. इस घटना के बाद नक्सली संगठन लगभग हताश ही हो गए हैं. अक्टूबर महीने में चतरा में पुलिस ने दो नक्सलियों को इनकाउंटर में मार गिराया. वहीं नवंबर में भी कुख्यात लम्बू को चाईबासा में मार गिराया गया. नक्सलियों के आत्मसमर्पण के लिहाज से भी साल 2024 झारखंड पुलिस के लिए कामयाबी भर रहा. चार इनामी नक्सलियों समेत इस बार 12 ने पुलिस के सामने हथियार डाल दिए. साल 2024 में राज्य के अलग अलग इलाकों से कुल 345 उग्रवादी-नक्सली गिरफ्तार किए गए.
हथियार और असलहे भी हुए रिकार्ड बरामद
साल 2024 में झारखंड पुलिस के द्वारा चलाया गया जोरदार अभियान में भारी मात्रा में असलहे और गोला बारूद बरामद किए गए. पुलिस मुख्यालय के आंकड़ों के अनुसार अभियान में 171 उम्दा हथियार, जिनमें एके-47 भी बरामद किया गया है. वहीं बाइक रेगुलर वेपन के साथ साथ कंट्री मेड कुल 94 हथियार भी पुलिस ने बरामद किए हैं. अभियान के दौरान साल 2024 में नवंबर महीने तक 16033 किलो विस्फोटक, आईईडी- 800, बारूद- 530 केजी और एक करोड़ तीन लाख रुपये भी हुए रिकवर किए गए हैं.
नक्सलियों ने भी माना खत्म हो रहा उनका जनाधार
झारखंड के डीजीपी अनुराग गुप्ता कहते हैं कि अब झारखंड में मात्र 10 प्रतिशत ही नक्सलवाद बचा हुआ है. उसे भी खत्म करने के लिए निर्णायक लड़ाई लड़ी जा रही है. जिसका असर सबको जल्द दिखेगा. झारखंड में नक्सली कमजोर हो चुके है ये सिर्फ पुलिस ही नही कह रही बल्कि हाल के दिनों में नक्सली संगठनों के प्रवक्ताओं के द्वारा जारी किए गए पत्र भी यह प्रमाणित करते हैं कि पिछले 3 सालों में नक्सलियों को भारी जानो- माल का नुकसान हुआ है. नक्सली यह भी मानते हैं कि सबसे ज्यादा नुकसान उन्हें झारखंड में हुआ है.
नक्सलियों को नहीं मिल रहा जन समर्थन
झारखंड के नक्सली इतिहास में पिछले पांच साल पुलिस के लिए कामयाबी भरे रहे हैं. ताबड़तोड़ अभियानों की वजह से नक्सलियों की जमीन झारखंड से लगभग खिसक ही गई है. पिछले साल और इस साल माओवादियों के सेंट्रल कमेटी के द्वारा जारी किए गए पत्रों में इस बात का जिक्र है कि भाकपा माओवादियों को सबसे ज्यादा नुकसान झारखंड में उठाना पड़ा है.
आलम यह है कि नक्सलियों को ना तो लोकल सपोर्ट मिल रहा है और ना ही बाहरी मदद. अपने पत्र में लगातार नक्सली समाज के बुद्धिजीवियों और ग्रामीणों से जन समर्थन की मांग कर रहे है. लेकिन कई पत्र जारी करने के बावजूद नक्सलियों को जन समर्थन न के बराबर मिल रहा है. इसके ठीक उलट झारखंड पुलिस के द्वारा जारी किए गए इनामी नक्सलियों के पोस्टर और लोकल भाषाओं में नक्सलियों के बारे में दी गई जानकारी की वजह से नक्सली पकड़े जा रहे हैं और एनकाउंटर में मारे जा रहे हैं. मतलब साफ है कल तक जो जन समर्थन नक्सलियों के पास था अब वह खिसक कर पुलिस के पास चला गया है.
शहीद सप्ताह के दौरान 23 पन्ने का लिखा था पत्र
माओवादियों के सेंट्रल कमेटी के द्वारा हाल में ही शहीद सप्ताह को लेकर एक लंबा चौड़ा पत्र जारी किया गया है. 23 पन्नों के उस पत्र में पिछले एक साल के दौरान जिन जिन नक्सलियों की मौत एनकाउंटर में हुई है या फिर बीमारी से सभी की जानकारी साझा की गई थी. सेंट्रल कमेटी के पत्र में स्पष्ट लिखा गया है कि उन्हें सामरिक रूप से सबसे ज्यादा नुकसान झारखंड में हुआ है.
इस पत्र में इस बात का जिक्र है कि सबसे ज्यादा जान का नुकसान दण्डकारण्य में हुआ है. एक साल के भीतर देशभर में कुल 160 के करीब कॉमरेड शहीद हुए हैं. जिसमें झारखंड में 20, तेलंगाना में 09, दंडकारण्य में 68, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ स्पेशल जोन में पांच, आंध्र प्रदेश, ओडिशा सीमा पर 3, ओडिशा में 09, आंध्र प्रदेश में 01, पश्चिमी घाटियों में एक और पश्चिम बंगाल में एक कॉमरेड शामिल है.
देश भर में 38 महिला नक्सली मारी गई
नक्सलियों के पत्र में एक चौंकाने वाली जानकारी भी दी गई है. पत्र के अनुसार सबसे ज्यादा शहीद होने वाली महिला कॉमरेड हैं, इनकी संख्या 38 है. झारखंड में भी पिछले साल 2023-24 के बीच चार महिला नक्सली एनकाउंटर में मारी गई है जबकि तीन के करीब गिरफ्तार की गई.
झारखंड सामरिक रूप से था महत्वपूर्ण
नक्सलियों के पत्र में इस बात का भी जिक्र है कि झारखंड-बिहार सामरिक रूप से उनके लिए बेहद महत्वपूर्ण था. छत्तीसगढ़, ओडिशा, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों से सीमाएं सटने की वजह से कॉमरेड्स को आंदोलन में सहूलियत होती थी. लेकिन झारखंड पुलिस ने नक्सलियों के लिए सामरिक रूप से महत्वपूर्ण बूढ़ापहाड़, पारसनाथ, झुमरा और बुल बुल जंगल से नक्सलियों को खदेड़ दिया है. सारंडा में भी नक्सलियों के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ी जा रही है. भाकपा माओवादियों के अनुसार झारखंड में एक वर्ष के भीतर उनके 300 से ज्यादा कमांडर, कैडर और समर्थकों को जेल में भी डाला गया है.
अरविंदजी के मौत के बाद स्थिति हुई खराब
पुलिस के द्वारा की गई तबाड़तोड़ कार्रवाई की वजह से झारखंड के सबसे बड़े नक्सली संगठन भाकपा माओवादियों को अब उनके प्रभाव वाले इलाकों में ही बिखरने पर मजबूर कर दिया है. झारखंड में भाकपा माओवादियों के प्रभाव का बड़ा इलाका नेतृत्वविहीन हो गया है. झारखंड, छत्तीसगढ़ और बिहार तक विस्तार वाला बूढ़ापहाड़ का इलाका माओवादियों के सुरक्षित गढ़ के तौर पर जाना जाता था. अब बूढ़ापहाड़ के इलाके में पड़ने वाले पलामू, गढ़वा, लातेहार से लेकर लोहरदगा तक के इलाके में माओवादियों के लिए नेतृत्व का संकट हो गया है.
गौरतलब है कि साल 2018 के पूर्व सीसी मेंबर देवकुमार सिंह उर्फ अरविंदजी बूढ़ापहाड़ इलाके का प्रमुख था. देवकुमार सिंह की बीमारी से मौत के बाद तेलगांना के सुधाकरण को यहां का प्रमुख बनाया गया था. लेकिन साल 2019 में तेलंगाना पुलिस के समक्ष सुधाकरण ने सरेंडर कर दिया था. इसके बाद बूढ़ापहाड़ इलाके की कमान विमल यादव को दी गई थी. विमल यादव ने फरवरी 2020 तक बूढ़ापहाड़ के इलाके को संभाला, इसके बाद बिहार के जेल से छूटने के बाद मिथलेश महतो को बूढ़ापहाड़ भेजा गया था. तब से वह ही यहां का प्रमुख था लेकिन मिथिलेश को भी बिहार में गिरफ्तार कर लिया गया. नतीजा अब सिर्फ और सिर्फ कोल्हान इलाके में ही नक्सलियों का शीर्ष नेतृत्व बचा हुआ है.
क्या है पुलिस का कहना
झारखंड पुलिस के आईजी अभियान जिनके कार्यकाल में झारखंड में नक्सलियों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुचा है. उनका कहना है कि जब तक अंतिम नक्सली सरेंडर नहीं कर देता तब तक यह अभियान जारी रहेगा. आईजी होमकर के अनुसार झारखंड में चाईबासा को छोड़ पूरे झारखंड में नक्सलियों का अस्तित्व ना के बराबर है. चाईबासा में भी नक्सलियों के सफाए के लिए अभियान चल रहा है.
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