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भोले भाले ग्रामीणों के सामने आ रहा नक्सलियों का असली चेहरा, स्थानीय भाषा में समझ रहे उनकी काली करतूत! - Naxalites in Jharkhand

Jharkhand Police Sai Ops against Naxalites. झारखंड पुलिस ने नक्सलियों के खिलाफ कमर कस ली है. बूढ़ापहाड़ के बाद अब कोल्हान और सारंडा से नक्सलियों को खदेड़ने की पूरी तैयारी है. साई ऑप्स के जरिए ग्रामीणों के बीच गरीबों के मसीहा बने नक्सलियों की काली करतूतों को उजागर किया जा रहा है. ईटीवी भारत की रिपोर्ट से जानें, क्या है अभियान- साई ऑप्स.

Jharkhand Police Sai Ops by making posters in local language against Naxalites
ग्राफिक्स इमेज (Etv Bharat)

By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Jun 29, 2024, 7:56 PM IST

रांचीः झारखंड के कोल्हान और सारंडा को नक्सलियों के जंगल से पूरी तरह से मुक्त करवाने के लिए लड़ाई के साथ-साथ पुलिस का साई ऑप्स भी शुरू कर दिया है. साई ऑप्स के तहत स्थानीय भाषाओं में बैनर और पोस्टर बनवाकर पुलिस नक्सलियों का असली चेहरा लोगों के सामने ला रही है.

दरअसल, झारखंड पुलिस को यह सूचना मिली थी कि अपने प्रभाव को खत्म होता देख नक्सली संगठन दोबारा ग्रामीणों से संपर्क करने की कोशिश में है. जिसके बाद पुलिस के तरफ से भी युद्ध स्तर पर साई ऑप्स को एक्टिव कर दिया गया है. इसके जरिए युद्धस्तर पर तैयारी कर गांव-देहात में स्थानीय भाषा में पोस्टर तैयार कर उन्हें बांटा भी जा रहा है.

दोतरफा वार जारी

बूढ़ापहाड़ के बाद झारखंड का चाईबासा जिला झारखंड पुलिस के लिए टारगेट बना हुआ है. इन इलाकों में पुलिस का जोरदार अभियान जारी है. इस ऑपरेशन के दौरान ही 17 जून को पांच नक्सली मारे गए. इस सफलता के बाद सारंडा में झारखंड पुलिस का अभियान और तेज हो गया. अभियान के साथ-साथ सुरक्षा बल अपने हाथ में पोस्टर और बैनर लेकर भी चल रहे हैं जो नक्सल प्रभावित गांव में बांटे जा रहे हैं. सभी पोस्ट को स्थानीय भाषा में बनाया गया है ताकि ग्रामीण भी उसे पढ़ सके.

स्थानीय भाषा में पुलिस द्वारा जारी पोस्टर (ETV Bharat)

झारखंड में नक्सलवाद के खात्मे को लेकर झारखंड पुलिस प्रदेश में बोली जाने वाली लोकल भाषाओं का प्रयोग कर ग्रामीणों को नक्सलियों के दोहरे चरित्र को सामने लाने का काम कर रही है. साई ऑप्स के जरिए झारखंड पुलिस ने नक्सल प्रभावित इलाकों में बोले जाने वाली भाषा का इस्तेमाल करते हुए पोस्टर और पम्पलेट बनवाया है और उसे गांव-गांव में बांटा जा रहा है. झारखंड में नक्सली संगठनों के द्वारा इलाकावार बोली जाने वाली भाषा में ही संगठन का प्रचार-प्रसार किया जाता रहा है. नक्सली संगठन गांव-गांव में घूमकर ग्रामीणों और युवाओं को जोड़ने के लिए स्थानीय भाषा में ही लोगों से संपर्क करते हैं. ऐसे में अब झारखंड पुलिस भी स्थानीय भाषाओं का इस्तेमाल अपने पोस्टर में कर रही है. जिसका उन्हें काफी फायदा भी मिला रहा है.

साई ऑप्स के बारे में बताते हुए झारखंड पुलिस के प्रवक्ता सह आईजी अभियान अमोल वी होमकर ने बताया कि माओवादियों से निपटने के लिए पुलिस अब स्थानीय भाषाओं का इस्तेमाल कर रही है. माओवादियों के खिलाफ चलाए जा रहे साई ऑप्स में भी स्थानीय भाषा में पोस्टरबाजी हो रही है. स्थानीय भाषा में ही ग्रामीणों को माओवाद से दूर रहने और माओवादियों की गतिविधि की जानकारी दी जा रही है. इस अभियान का फायदा भी पुलिस को मिल रहा है.

क्या है पोस्टर में

नक्सलियों के खिलाफ बनाए गए पोस्टर में नक्सलियों के द्वारा मारे गए आम लोगों के साथ-साथ पुलिस के शहीद जवानों के बारे में भी बताया गया है. पोस्ट में यह बताया गया है कि नक्सली संगठन सिर्फ अपने फायदे के लिए ग्रामीणों का इस्तेमाल करते हैं. जब वे लोगों आम लोग या पुलिस को मारते हैं तब यह नहीं देखते हैं कि वह उनके गांव का है या दूसरे शहर का. चाईबासा में एक दर्जन से ज्यादा लोगों की मौत नक्सलियों के द्वारा लगाए गए बमों से हुआ है. पुलिस के पोस्टर में इस बात का भी जिक्र किया गया है, यहां तक की जो ग्रामीण घायल हुए हैं या मारे गए हैं उनके फोटो भी पोस्टर में लगाए गए हैं.

पुलिस द्वारा जारी इनामी नक्सलियों के पोस्टर (ETV Bharat)

दोबारा भी चस्पा किये गये इनामी नक्सलियों के पोस्टर्स

17 जून को हुए एनकाउंटर के बाद सारंडा में डेरा डाले हुए नक्सलियों के बीच खलबली मची हुई है. इनामी से लेकर छोटे बड़े नक्सली सारंडा से निकलने की फिराक में है. वहीं दूसरी तरफ झारखंड पुलिस और केंद्रीय बलों के जवान किसी भी हाल में उन्हें सारंडा से नहीं निकलने देने के प्लान पर काम कर रहे हैं. इसके लिए नए सिरे से नक्सल प्रभावित सभी गांव में इनामी और दूसरे वांटेड नक्सलियों के पोस्टर लगाए गए हैं, उसमें उनके सिर पर घोषित इनाम की भी बातें लिखी गई है ताकि इनाम पाने के लिए ही, सही कोई उनकी सूचना दे दे.

ग्रामीणों के बीच पहुंच रही पुलिस

चाईबासा के कोल्हान और सारंडा से नक्सलियों के सफाए के लिए ग्रामीणों का सहयोग सबसे जरूरी है. कई दशकों से नक्सलवाद इसलिए फल-फूल रहा है क्योंकि उन्हें ग्रामीणों का सहयोग मिलता रहा है. पिछले 3 वर्ष के दौरान परिस्थितियों काफी बदल रही हैं खासकर चाईबासा में. नक्सलियों के द्वारा लगाए गए आईईडी की वजह से ग्रामीणों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है. सारंडा और कोल्हान इलाके में पढ़ने वाले दर्जनों गांव अब नक्सलियों के खिलाफ हो गए हैं और पुलिस को सूचनाएं दे रहे हैं जबकि कभी इन्हीं गांवों में नक्सलियों की जन अदालत लगा करता था. सुरक्षा बलों को ग्रामीणों का भरपूर सहयोग मिल रहा है. इसके बाद सुरक्षा बल भी ग्रामीणों तक चिकित्सा सुविधा से लेकर तमाम तरह की चीजों को पहुंचा रहे हैं.

पोस्टर के जरिए सरेंडर पॉलिसी की जानकारी (ETV Bharat)

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