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जम्मू-कश्मीर : लिथियम नीलामी फिर बोलीदाताओं को आकर्षित करने में विफल रही - Lithium Auction Fails

Jammu And Kashmir, जम्मू कश्मीर में लिथियम के भंडार मिलने के बाद उसके खनन के लिए बोली लगाने का दूसरा प्रयास भी विफल हो गया है. यहां मिले लिथियम का भंडार करीब 59 लाख मीट्रिक टन होने का अनुमान है. पढ़िए जुल्कारनैन जुल्फी की रिपोर्ट...

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jul 4, 2024, 4:20 PM IST

Jammu and Kashmir Lithium Auction Fails to Attract Bidders Again
जम्मू-कश्मीर लिथियम नीलामी फिर बोलीदाताओं को आकर्षित करने में विफल रही (IANS)

श्रीनगर :जम्मू कश्मीर में मिले लिथियम भंडार के लिए खनन के लिए दूसरे प्रयास में कोई बोली नहीं लगने से झटका लगा है. बता दें कि सरकार ने पहली बार फरवरी 2023 में इस क्षेत्र में लिथियम भंडार की पहचान की थी, जिसका अनुमान 59 लाख मीट्रिक टन था. नवंबर 2023 में प्रारंभिक नीलामी में आवश्यक न्यूनतम तीन बोलियां प्राप्त करने में विफल रहने के बाद, इस वर्ष मार्च में ब्लॉक की पुनः नीलामी की गई, जिसके लिए बोली की अंतिम तिथि 14 मई थी.

इस संबंध में एक आधिकारिक सूत्र ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि इस ब्लॉक को आगे की खोज के लिए संभवतः एक सरकारी एजेंसी को सौंप दिया जाएगा. इलेक्ट्रिक वाहन बैटरियों के लिए लिथियम पर बढ़ते वैश्विक फोकस के साथ, भारत घरेलू और विदेश में लिथियम परिसंपत्तियों को सुरक्षित करने की कोशिश कर रहा है.

बता दें कि पिछले साल जून में भारत सरकार ने लिथियम, निकेल, टाइटेनियम, वैनेडियम और टंगस्टन समेत 30 खनिजों को अपने स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों के लिए महत्वपूर्ण बताया था. वहीं मार्च में जम्मू-कश्मीर ने तीसरे चरण के तहत अपने लिथियम भंडार को नीलामी के लिए फिर से सूचीबद्ध किया. खनन मंत्रालय के अनुसार, इस चरण में सात महत्वपूर्ण खनिज ब्लॉकों को समग्र लाइसेंस के रूप में नीलामी के लिए रखा गया है. 'इन सात खनिज ब्लॉकों की नीलामी खनिज (नीलामी) नियम 2015 के नियम 9 के उप-नियम 10 और उप-नियम 11 (बी) के अनुसार नीलामी के दूसरे प्रयास के तहत की गई है.

मंत्रालय ने मार्च 2024 में कहा था निविदा आमंत्रण सूचना (NIT) एमएसटीसी ई-नीलामी पोर्टल और खनन मंत्रालय की वेबसाइट पर प्रकाशित कर दी गई है. ये ब्लॉक बिहार, झारखंड, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर के ग्लौकोनाइट, ग्रेफाइट, निकल, पीजीई, पोटाश, लिथियम और टाइटेनियम जैसे महत्वपूर्ण खनिजों से संबंधित हैं.' भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) ने पिछले वर्ष जम्मू-कश्मीर में लिथियम भंडार की खोज की थी, जिसमें रियासी जिले के सलाल-हैमना क्षेत्र में 59 लाख मीट्रिक टन अनुमानित संसाधन (G3) की पहचान की गई थी.

रियासी जिला मुख्यालय से 23 किलोमीटर दूर और पहाड़ों से घिरा सलाल, सलाल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर स्टेशन का हब है. यह चिनाब नदी पर 690 मेगावाट की रन-ऑफ-द-रिवर जलविद्युत परियोजना है. इस परियोजना से उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, चंडीगढ़ और राजस्थान जैसे राज्य को फायदा होगा.

गौरतलब है कि सलाल, चिनाब रेलवे पुल के रास्ते में भी स्थित है. वहीं चिनाब जो दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे पुल है, जो एफिल टॉवर से 35 मीटर ऊंचा है. भारतीय रेलवे ने हाल ही में इस पुल पर ट्रायल रन पूरा किया है. जम्मू-कश्मीर के खनन सचिव अमित शर्मा ने फरवरी 2024 में दावा किया था कि इस प्रत्याशित परियोजना में कौशल स्तर की परवाह किए बिना स्थानीय लोगों को शामिल किया जाएगा. उन्होंने कहा कि सलाल में पाया जाने वाला लिथियम उच्च गुणवत्ता वाला है और बड़ी मात्रा में उपलब्ध है. इस लिथियम का ग्रेड 500 पार्ट्स प्रति मिलियन (पीपीएम) है, जबकि सामान्य ग्रेड 220 पीपीएम है. 59 लाख मीट्रिक टन के भंडार के साथ, भारत लिथियम उपलब्धता के मामले में चीन से आगे निकल सकता है.

लिथियम ईवी बैटरी, पवन टर्बाइन और सौर पैनल बनाने के लिए महत्वपूर्ण है. विश्व बैंक के एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि लिथियम जैसी महत्वपूर्ण धातुओं की मांग 2050 तक लगभग 500 प्रतिशत बढ़ जाएगी.सितंबर 2023 में, पीडीपी अध्यक्ष और जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने लिथियम भंडार की योजनाबद्ध नीलामी के जवाब में भाजपा पर क्रोनी पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए जम्मू-कश्मीर के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने का आरोप लगाया था.

हालांकि, जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने सतर्क आशावाद व्यक्त करते हुए कहा था, "यदि लिथियम निष्कर्षण से संसाधनों और राजस्व के मामले में जम्मू-कश्मीर को लाभ होता है, तो इससे बेहतर कुछ नहीं है. दुर्भाग्य से, जल संसाधनों के साथ हमारा अनुभव बहुत अच्छा नहीं रहा है. अधिकतर बिजली परियोजनाएं केंद्रीय उपक्रमों द्वारा बनाई गई हैं और बिजली निर्यात की जाती है, लेकिन हमें बमुश्किल कुछ मिलता है. अधिकतर बिजली परियोजनाएं केंद्रीय उपक्रमों द्वारा बनाई गई हैं और बिजली निर्यात की जाती है, लेकिन हमें बमुश्किल कुछ मिलता है.

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