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मॉनसून के दौरान भूकंप के कारण बढ़ जाती हैं भूस्खलन की घटनाएं, ये है वजह - Earthquakes During Monsoon - EARTHQUAKES DURING MONSOON

Earthquakes During Monsoon उत्तराखंड में लगातार हो रही भारी बारिश ने एक तरफ प्रदेश के तमाम हिस्सों में आपदा जैसी स्थिति उत्पन्न कर दी है तो दूसरी तरफ चमोली जिले में आए भूकंप के झटकों ने लोगों के बीच दहशत को कई गुना बढ़ा दिया है. उत्तराखंड में मॉनसून सीजन के दौरान भूस्खलन की घटना होती रहती है. लेकिन भूकंप आने के बाद भूस्खलन की संभावनाएं और अधिक बढ़ जाती हैं.

Earthquakes During Monsoon
मॉनसून के दौरान भूकंप (PHOTO-ETV BHARAT GRAPHICS)

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Jul 8, 2024, 7:59 PM IST

Updated : Jul 8, 2024, 11:02 PM IST

मॉनसून के दौरान भूकंप के कारण बढ़ जाती हैं भूस्खलन की घटनाएं (VIDEO-ETV BHARAT)

देहरादूनः उत्तराखंड में विषम भौगोलिक परिस्थितियों के कारण हर साल आपदा जैसे हालात बनते रहते हैं. लेकिन मॉनसून सीजन के दौरान प्रदेश के खासकर पर्वतीय क्षेत्रों की स्थिति बेहद खराब हो जाती है. क्योंकि भारी बारिश का सिलसिला शुरू होने के बाद न सिर्फ भूस्खलन की समस्याएं बढ़ जाती है बल्कि भूस्खलन के कारण जान-माल का भी काफी नुकसान होता है. मौजूदा समय में भूस्खलन होने के कारण प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में दिक्कतों का अंबार लगना शुरू हो गया है. उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि देश के तमाम पर्वतीय राज्य हैं, जहां पर भूस्खलन होना आम है.

उत्तराखंड में भूकंप की स्थिति (PHOTO-ETV BHARAT GRAPHICS)

पर्वतीय क्षेत्रों में होने वाला भूस्खलन हमेशा से ही राज्य सरकारों के लिए बड़ी चुनौती बनता है. आंकड़ों के मुताबिक, देश की कुल भूमि का करीब 12 फीसदी क्षेत्र भूस्खलन से प्रभावित है. इन क्षेत्रों में आए दिन भूस्खलन की घटनाएं होती है. दरअसल, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के अलावा देश के पश्चिमी घाट में नीलगिरि की पहाड़ियां, पूर्वी हिमालय क्षेत्रों में दार्जिलिंग, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश, कोंकण क्षेत्र में महाराष्ट्र, पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर और उत्तराखंड के तमाम क्षेत्र भूस्खलन के दृष्टि से काफी संवेदनशील हैं. भूस्खलन के लिए कोई एक फैक्टर नहीं बल्कि तमाम फैक्टर जिम्मेदार हैं. जिसमें क्लाइमेटिक फैक्टर, एंथ्रोपोजेनिक एक्टिविटी, एक्सेसिव रेनफॉल, नेचुरल एक्टिविटी और एनवायरमेंटल डिग्रेडेशन जैसे फैक्टर्स शामिल है.

इन तमाम फैक्टर्स की वजहों से ही उत्तराखंड समेत अन्य हिमालयी क्षेत्रों में भूस्खलन की समस्या देखी जा रही है. लेकिन भूकंप फैक्टर भी भूस्खलन को बढ़ाने में बड़ा अहम रोल अदा करता है. क्योंकि भूकंप आने से भूस्खलन की संभावनाएं बढ़ जाती है. खासकर मॉनसून सीजन यानी बारिश के दौरान अगर भूकंप के झटके महसूस होते हैं तो पहाड़ों के दरकने की संभावना बढ़ने के साथ ही भूस्खलन की फ्रीक्वेंसी तेज हो जाती है.

उत्तराखंड में प्रतिवर्ष भूस्खलन की घटनाएं (PHOTO-ETV BHARAT GRAPHICS)

2023 में सबसे ज्यादा लैंडस्लाइड की घटनाएं: राज्य आपातकालीन परिचालन केंद्र से मिली जानकारी के अनुसार, साल 2018 में 496 भूस्खलन की घटनाएं हुई थी. जिसमें 47 लोगों की मौत, साल 2019 में 291 भूस्खलन की घटनाएं हुई थी जिसमें 25 लोगों की मौत, साल 2020 में 973 भूस्खलन की घटनाएं हुई थी जिसमें 25 लोगों की मौत, साल 2021 में 354 भूस्खलन की घटनाएं हुई थी जिसमें 48 लोगों की मौत, साल 2022 में 245 भूस्खलन की घटनाएं हुई थी जिसमें 39 लोगों की मौत हुई थी. इसी तरह साल 2023 में अगस्त महीने तक 1173 भूस्खलन की घटनाएं हुई थी. जिसमें 30 लोगों की मौत हुई थी.

भूकंप से बढ़ती है भूस्खलन की संभावनाएं: ज्यादा जानकारी देते हुए वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी से रिटायर्ड भू-वैज्ञानिक डॉ सुशील कुमार ने बताया कि 7 जुलाई 2024 को चमोली में जो भूकंप आया वो स्मॉल अर्थक्वेक था. क्योंकि ये भूकंप 3.5 मेग्नीट्यूड का था. जब भी भूकंप आता है तो उसके सिस्मिक वेव पहाड़ों को हिलाते हैं. जिससे भूस्खलन की संभावना बढ़ जाती है.

उन्होंने बताया कि चमोली में 1999 में जो 6.8 का भूकंप आया था, उसके चलते 69 लैंडस्लाइड हुए थे. क्योंकि भूकंप के सिस्मिक वेव ने पहाड़ों में काफी अधिक कंपन पैदा किया था.

मॉनसून में भूकंप का ज्यादा असर: भू-वैज्ञानिक सुशील ने बताया कि जब सामान्य दिनों में भूकंप आता है तो लैंडस्लाइड की घटनाएं सामान्य तौर पर बढ़ जाती है. लेकिन मॉनसून सीजन के दौरान भूकंप आता है तो लैंडस्लाइड की घटनाएं काफी अधिक बढ़ जाती हैं. क्योंकि बारिश, पहाड़ के पत्थरों को कमजोर कर देती है. इससे पहाड़ कमजोर हो जाते हैं और इसी बीच अगर भूकंप आ जाए तो हलचल होने से भूस्खलन की फ्रीक्वेंसी और अधिक बढ़ जाती है. लिहाजा, मॉनसून के दौरान भूस्खलन की संभावनाएं काफी अधिक रहती है.

वहीं, उत्तराखंड आपदा सचिव विनोद कुमार सुमन ने बताया कि चमोली में जो भूकंप आया, वो 3.5 मेग्नीट्यूड का था, जो कि अल्प भूकंप की श्रेणी में आता है. हालांकि, इस तरह के भूकंप आते रहते हैं. इन जैसे भूकंप से कोई खतरा नहीं है. भूकंप की वजह से अभी तक फिलहाल किसी घटना सूचना नहीं है. हालांकि, भूकंप के कारण भूस्खलन की घटना को रोकना आसान नहीं है. लेकिन भूस्खलन के प्रभाव को कम जरूर किया जा सकता है.

उत्तराखंड के चिन्हित भूस्खलन संभावित क्षेत्र:-

  • बागेश्वर जिले में सुमगढ़, कुंवारी, मल्लादेश, सेरी, बड़ेत समेत 18 क्षेत्र शामिल हैं जो भूस्खलन के लिहाज से काफी संवेदनशील हैं.
  • अल्मोड़ा जिले में तीन चिन्हित भूस्खलन जोन हैं, जिसमें रानीखेत-रामनगर मोटर मार्ग पर टोटाम, अल्मोड़ा-धौलछीना मोटर मार्ग पर कसाड़ बैंड और अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ राष्ट्रीय राजमार्ग पर मकड़ाऊ शामिल है.
  • पिथौरागढ़ जिले के पिथौरागढ़-तवाघाट रूट के बीच करीब 17 भूस्खलन क्षेत्र चिन्हित हैं.
  • चमोली जिले में लामबगड़ के पास खचड़ा नाला, गोविंदघाट के पास कटैया पुल, हनुमान चट्टी के पास रडांग बैंड, भनेर पाणी, चाड़ा तोक, क्षेत्रपाल, पागला नाला, सोलंग, गुलाब कोटी, छिनका, चमोली चाड़ा, बाजपुर और कर्णप्रयाग भूस्खलन क्षेत्र है.
  • नैनीताल जिले में कुल 120 भूस्खलन जोन चिन्हित किए गए हैं, जिनमें 90 क्रॉनिक जोन भी शामिल हैं.
  • चंपावत जिले में 15 संवेदनशील भूस्खलन जोन हैं, जो टनकपुर-पिथौरागढ़ राष्ट्रीय राजमार्ग पर बारहमासी रोड पर मौजूद है.
  • पौड़ी जिले में भूस्खलन के लिहाज से 119 जोन चिन्हित किए गए हैं. जहां आए दिन भूस्खलन की घटनाएं होती रहती है.
  • टिहरी जिले के मुनिकीरेती से कीर्ति नगर के बीच हाईवे पर 15 चिन्हित भूस्खलन जोन चिन्हित हैं
  • उत्तरकाशी जिले में 16 सक्रिय जोन अतिसंवेदनशील चिन्हित किए गए हैं.

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Last Updated : Jul 8, 2024, 11:02 PM IST

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