देहरादून: पर्यावरण संरक्षण के लिए पूरा विश्व 22 अप्रैल को अर्थ डे मानता है. पृथ्वी पर मंडरा रहे खतरे को दूर करने और लोगों को जागरुक करने के लिए कई संस्थाएं और सरकार मिलकर इस दिन को मनाती हैं. 1969 में यूनेस्को सम्मेलन में पहली बार अर्थ डे मनाया गया. उसके बाद से ही लगातार पूरा विश्व पृथ्वी को बचाने के उद्देश्य से इस दिन को खास तरीके से मना रहा है. उत्तराखंड में पृथ्वी को बचाने और पर्यावरण संरक्षण को लेकर हम कितने सजग हैं? आज के दिन उत्तराखंड में क्या हालात हैं? इसे समझने के लिए आसपास के जल रहे जंगल काफी हैं. इससे सारी स्थितियां स्पष्ट हो जाती हैं.
बता दें गर्मी के सीजन में उत्तराखंड में सैकड़ों आग लगने की घटनाएं सामने आ रही हैं. एक आंकड़े के मुताबिक 15 फरवरी से लेकर आज तक 350 से अधिक फॉरेस्ट फायर की घटनाएं उत्तराखंड में हो चुकी है. इतना ही नहीं बीते एक हफ्ते में इन घटनाओं में लगातार तेजी आ रही है.
साल दर साल बढ़ता जा रहा सिलसिला: पृथ्वी दिवस के दिन भी उत्तराखंड के जंगल धूं धूं कर जल रहे हैं. गर्मी के मौसम में उत्तराखंड में इस तरह की घटनाएं हर साल होती हैं. हर साल सरकार और सिस्टम जंगलों को बचाने के लिए लाख दावे और हजारों प्लानिंग करत है. उसका बाद भी जंगलों में लगने वाली आग पर काबू नहीं पाया जाता है. हर साल आग लगने की घटने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़कर सरकारी सिस्टम को मुंह चिढ़ती हैं. फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया का आंकड़ा बताता है कि पिछले साल आज की तारीख तक उत्तराखंड में आग लगने की मात्र 85 घटनाएं हुई थी, मगर इस साल ये आंकड़ा 300 से पार पहुंच गया है. आलम यह है कि अल्मोड़ा में तो लोकसभा चुनाव के लिए बनाए गए स्ट्रांग रूम तक आग पहुंच गई. वहां रखा जनरेटर भी आग की चपेट में आ गया. गनीमत रही कि समय रहते दमकल की टीम ने मौके पर पहुंचकर आग पर काबू पा लिया.
उत्तराखंड में फॉरेस्ट फायर के आंकड़े
उत्तराखंड में फॉरेस्ट फायर के आंकड़े इसके साथ ही साल 2022 में उत्तराखंड में लगभग 2080 वनाग्नि की घटना हुई. यही सिलसिला साल 2023 में भी बरकरार रहा. साल 2023 में 1600 से अधिक जगह जंगल जलने की घटनाएं सामने आई. इस साल हैरानी की बात यह है की अभी उत्तराखंड में गर्मी का सीजन शुरू हुआ है, मगर अभी तक 2023 नवम्बर से कुल 379 आग की घटनाएं हो चुकी हैं, जो वाकई में चिंता का विषय है.
मौसम विभाग चिंतित, बोले और बढ़ेंगी घटनाएं:उत्तराखंड में आग लगने की घटनाएंजिन स्थानों पर सबसे अधिक हो रही हैं वह प्रदेश के बीच के इलाके हैं. टिहरी, पिथौरागढ़, उत्तरकाशी, अल्मोड़ा, रुद्रप्रयाग, रामनगर, और हल्द्वानी में फॉरेस्ट फायर की घटनाएं हो रही हैं. इन इलाकों में चीड़ के जंगल अधिक हैं. लिहाजा आने वाले कुछ दिनों में इन इलाकों में आग लगने की घटनाओं में इजाफा होगा. उत्तराखंड मौसम विभाग के निर्देशक बिक्रम सिंह ने कहा 22 और 23 अप्रैल को कुछ स्थानों पर हल्की बारिश हो सकती है. चिंता इस बात की है कि बारिश फॉरेस्ट फायर वाले इलाकों में नहीं होगी. बारिश बदरीनाथ, केदारनाथ जैसे ऊपरी इलाकों में होगी. मौसम विभाग निदेशक इस बात को लेकर भी चिंतित हैं कि आने वाले पांच दिनों में तापमान 2 डिग्री तक ऊपर जा सकता है. तब आग लगने की घटनाओं में बढ़ोतरी होगी. यह सिलसिला 24 अप्रैल से लेकर 27 अप्रैल तक जारी रहेगा.
बिक्रम सिंह की मानें तो कुछ हद तक हालात 28 और 29 अप्रैल को सुधर सकते हैं. 6 दिनों के बाद कुछ इलाकों में बारिश की संभावना बन रही है. यह कितनी सटीक होगी यह 25 तारीख के बाद ही बताया जा सकता है. इस तरह के समीकरण बन रहे हैं कि जिन इलाकों में मौजूदा समय में आज की घटनाएं घट रही हैं वहां पर बारिश के बाद आज की घटनाओं में कमी आ सकती है. उन्होंने कहा अगला महीना भी इसी तरह से बेहद बढ़ते हुए तापमान वाला रहेगा.
क्या कहते हैं वन विभाग के अधिकारी:उत्तराखंड में 38000 स्क्वॉयर किलोमीटर का इलाका फॉरेस्ट का है. इसके साथ ही पूरे राज्य में 71% जंगल हैं. ऐसे में अंदाजा लगा सकते हैं कि जब उत्तराखंड में आग लगने की घटनाएं होती हैं तो किस तरह से पर्यावरण पर प्रभाव पड़ता है. उत्तराखंड देश के एक बड़े हिस्से को न केवल जल की आपूर्ति करता है बल्कि साफ हवा भी उत्तराखंड लोगों को दे रहा है. उत्तराखंड में लगातार हर साल आज की घटनाएं न केवल जंगलों को नुकसान पहुंचा रही हैं बल्कि यहां पर रहने वाले जंगली जानवरों और इंसानों के लिए भी यह खतरा बन रही हैं.
जानकार मानते हैं लगातार आग की घटनाएं बायोडायवर्सिटी पर बुरा असर डाल रही हैं. उत्तराखंड वन एवं आपदा प्रबंधन विभाग के अपर मुख्य वन संरक्षक निशांत वर्मा की मानें तो 1 नवंबर 2023 से लेकर 20 अप्रैल 2024 तक उत्तराखंड में 379 आग लगने की घटनाएं हुई हैं. लगभग इससे 387 हैक्टेयर भूमि से अधिक वन क्षेत्र प्रभावित हुआ है. वर्मा की मानें तो लगातार टोल फ्री नंबर जैसे ही कॉल आ रहे हैं, हम वैसे ही अपने कर्मचारियों को मौके पर भेजकर आग बुझाने की कोशिशें कर रहे हैं. इसमें स्थानीय लोगों के के साथ ही जनप्रतिनिधियों, ग्राम प्रधानों की भी मदद ली जा रही है.
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