नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा निकाय व पंचायत चुनाव कराने के लिए 2024 की आरक्षण नियमावली को चुनौती देती अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई की. मामले की सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की एकलपीठ ने राज्य सरकार सहित राज्य चुनाव आयोग से 48 घंटे के भीतर याचिकाओं में लगाए गए आरोपों पर अपना जवाब प्रस्तुत करने को कहा है. अब मामले की अगली सुनवाई 6 जनवरी को होगी.
आज हुई सुनवाई पर याचिकाकर्ताओं की तरफ से कहा गया कि निकाय चुनाव में आरक्षण नियमों को ताक पर रखकर तय किया गया है. जैसे कि अल्मोड़ा नगर पालिका में आरक्षण जनरल सीट होनी थी, वहां पर रिजर्व कर दी गई, जहां-जहां रिजर्व सीट होनी थी, उसे जनरल सीट कर दिया गया. आरक्षण नियमावली के मुताबिक तभी निकायों में आरक्षण दिया जाएगा, जब एसटी, एससी, ओबीसी समेत अन्य की संख्या 10 हजार से ऊपर हो, लेकिन यहां उसका अनुपालन नहीं किया गया.हल्द्वानी और देहरादून में इनकी संख्या अधिक है, वहां जनरल सीट कैसे हो सकती है. इसका जवाब दें.
नियमावली सभी पर एक जैसी लागू होगी, जहां एसटी, एससी, ओबीसी और अन्य की संख्या दस हजार होगी, वहां आरक्षण का नियम लागू नहीं होगा, जबकि एसटी, एससी, ओबीसी और अन्य की संख्या दस हजार से ऊपर होगी, वहां पर आरक्षण लागू होगा. देहरादून की जनसंख्या 8 लाख से ऊपर है, जिसमें ओबीसी और अन्य की संख्या 95,000 से ऊपर है, वहां पर जनरल सीट कर दी गई. हल्द्वानी में भी ओबीसी और अन्य की संख्या 10,000 से ऊपर हैं, लेकिन वहां भी जनरल सीट कर दी गई, जबकि अल्मोड़ा में ओबीसी और अन्य की संख्या 2000 के लगभग है, लेकिन वहां रिजर्व सीट घोषित की गई है.
उच्च न्यायालय में इस मामले पर कई याचिकाएं दायर कर कहा गया है कि राज्य सरकार की ओर से निकायों के अध्यक्ष पदों के लिये जो आरक्षण प्रक्रिया अपनाई गई है, वह असंवैधानिक और कानूनी प्रावधानों के विपरीत है, जबकि राज्य सरकार ने आरक्षण जनसंख्या और रोटेशन के आधार पर नियामावली सुनिश्चित नहीं की है, जबकि सभी नगर पालिकाओं को आधार बनाकर आरक्षण तय किया जाना चाहिए था, इसलिए निकायों का फिर से आरक्षण तय हो.
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