देहरादून (नवीन उनियाल): पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में देशभर के मुकाबले बाघों की अच्छी संख्या है. कॉर्बेट व आसपास के इलाकों में भी बाघों की अच्छी मौजूदगी मिल जाती है. हालांकि, इसके बीच यहां हर साल बाघ अपनी जान भी गंवा रहे हैं. नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी के मुताबिक, उत्तराखंड में पिछले 12 सालों के दौरान हर साल औसतन 11 बाघों ने अपनी जान गंवाई हैं. वहीं, पिछले साल 2024 की बात करें तो उत्तराखंड में 8 टाइगर्स की मौतें दर्ज हुई हैं.
वैसे बीते सालों की तुलना में साल 2024 में मौत का ये आंकड़ा कम हुआ है, लेकिन इस स्थिति को संतोषजनक बिल्कुल नहीं कहा जा सकता. खासतौर से राष्ट्रीय स्तर पर बाघों की मौत के आंकड़े सालाना 100 से पार ही रिकॉर्ड हो रहे हैं.
8 प्रतिशत बाघों की मौत का कारण स्पष्ट नहीं: देशभर में 50 प्रतिशत बाघों की मौत टाइगर रिजर्व क्षेत्र के भीतर ही हो रही है. नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (NTCA) की रिपोर्ट के अनुसार पिछले 12 सालों के दौरान कुल 1386 बाघों की मौत हुई, जिसमें 50 प्रतिशत मौत टाइगर रिजर्व क्षेत्र में हुईं. 42 प्रतिशत बाघों की मौत टाइगर रिजर्व क्षेत्र के बाहर हुई और 8 प्रतिशत बाघों पर स्थिति स्पष्ट नहीं हुई.
टाइगर रिजर्व के आसपास ज्यादा मौतें रिकॉर्ड हुई हैं: वहीं, उत्तराखंड के लिहाज से देखें तो टाइगर्स की मौत के मामले सबसे ज्यादा कॉर्बेट टाइगर रिजर्व या इसके आसपास से ही सामने आते रहे हैं. इसके पीछे की वजह इस क्षेत्र में ही बाघों की ज्यादा संख्या होना माना गया है. इसके कारण स्वाभाविक रूप से मौत के मामले भी टाइगर रिजर्व या इसके आसपास के क्षेत्र में ही ज्यादा रिकॉर्ड हुए हैं.
देश भर में इतने बाघों की मौत: साल 2024 में 12 महीनों के दौरान देश में कुल 125 बाघों की मौत रिकॉर्ड की गई है. वैसे तो 2023 के मुकाबले यह आंकड़ा कम है, लेकिन इससे पहले के सालों से इसकी तुलना करें तो ये आंकड़ा कम नहीं दिखाई देता. साल 2023 में देश में कुल 182 बाघों की मौत हुई थी. इसके पहले साल 2022 में 122, साल 2021 में 127 और साल 2020 में 106 बाघ मरे थे. वहीं साल 2024 में 125 बाघों की मौत हुई हुई थी, जिसमें से 8 बाघ उत्तराखंड में मरे थे. इन 8 बाघों में से तीन बाघों की मौत कॉर्बेट टाइगर रिजर्व क्षेत्र में हुई. 2 शावक राजाजी टाइगर रिजर्व में मारे गए. इसके अलावा बाकी तीन बाघों का कुमाऊं में कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के बाहरी क्षेत्र में मरना रिकॉर्ड हुआ.
मध्य प्रदेश में मरे सबसे ज्यादा बाघ: पिछले 12 सालों के दौरान देश भर में सबसे ज्यादा बाघों की मौत मध्य प्रदेश में हुई, यहां 355 बाघों को जान गंवानी पड़ी. दूसरे नंबर पर महाराष्ट्र में 261 तो तीसरे नंबर पर कर्नाटक में 179 टाइगर्स की मौत हुई. उत्तराखंड चौथे नंबर है, यहां 12 सालों में 132 टाइगर्स ने जान गंवाई.
क्या हैं मौत के कारण: उत्तराखंड में जहां तक बाघों की मौत के कारणों को देखें तो वन विभाग के मुताबिक-
- साल 2024 में 90 प्रतिशत से ज्यादा टाइगर्स की मौत के मामले अभी जांच के दायरे में हैं.
- इसके अलावा 13 टाइगर की मौत नेचुरल मानी गई है.
- एक बाघ को शिकारियों का शिकार होना पड़ा.
- इससे पहले साल 2023 में 96 बाघों की मौत अंडर स्क्रूटनी बताया गया है, जबकि 12 टाइगर्स का शिकार हुआ और 60 टाइगर्स की मौत का कारण सामान्य माना गया.
- उधर 04 बाघों की मौत का कारण पता नहीं चल सका.
- 6 बाघों की मौत की वजह असामान्य में रखी गई.
71 प्रतिशत मामलों की जांच बंद: वन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार, उत्तराखंड में साल 2024 के दौरान मरने वाले 8 बाघों में 2 शावकों की मौत असामान्य है. इसके अलावा बाकी मौतों पर जांच जारी है. राष्ट्रीय स्तर पर पिछले 12 साल के दौरान जिन टाइगर्स की मौत हुई है, उनमें 71 प्रतिशत मामलों को जांच और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के बाद बंद कर दिया गया है, जबकि 29 प्रतिशत मामलों में अभी जांच जारी है. इनमें अधिकतर मामले पिछले 5 सालों के हैं.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट: वहीं, बाघों की मौत को लेकर वन्यजीव एक्सपर्ट व ऑनरेरी वार्डन राजीव तलवार का मानना है कि उत्तराखंड राज्य फॉरेस्ट और लैंड डेंसिटी के हिसाब से नंबर वन है और यहां टाइगर डेंसिटी भी सबसे ज्यादा है. बाघों की मौत के जो आंकड़े आए हैं कि वो नेचुरल हैं. यहां बाघों की संख्या भी ज्यादा लगातार बढ़ रही है. टाइगर की मौत एक नेचुरल प्रोसेस है. कई बाघ आपसी संघर्ष में भी मर रहे हैं क्योंकि उनकी टेरिटरी छोटी हो गई है.
उन्होंने बताया कि नए सर्वे के हिसाब से बाघों ने 20 किलोमीटर के अंदर अपनी टेरेटरी छोटी कर ली है, जबकि पहले ये 100 किलोमीटर के दायरे में होता था. धीरे-धीरे बाघों ने अपने आपको रिस्ट्रिक्ट कर लिया है. वहीं छोटी टेरिटरी के बाद भी टाइगर की पापुलेशन काफी बढ़ती जा रही है, इसलिए आपसे संघर्ष भी हो रहा है. वहीं, नेचुरल हैबिटेट में जो हेल्दी टाइगर होता है उसकी उम्र लगभग 14 साल तक की होती है. उस हिसाब से भी वो अपनी उम्र भी पूरी कर रहे हैं.
बढ़ रही है बाघों की संख्या, MP नंबर वन: वहीं, मौत के आंकड़ों के इतर देखें तो देशभर में बाघों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी देखी गई है. रिपोर्ट के अनुसार, देशभर में कुल 3682 बाघ मौजूद हैं. इसमें सबसे ज्यादा 785 बाघ मध्य प्रदेश में है, दूसरे नंबर पर 563 बाघ के साथ कर्नाटक है. तीसरे नंबर पर उत्तराखंड हैं, यहां 560 बाघ रिकॉर्ड हुए हैं. इसमें 260 बाघ अकेले कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में ही हैं.
कितनी बढ़ी है बाघों की संख्या:- NTCA से मिली जानकारी के अनुसार,
- देश में साल 2014 में बाघों की संख्या 2226 दर्ज की गई थी.
- साल 2018 में बाघों की संख्या 2967 दर्ज हुई.
- वहीं, साल 2022 (आखिरी गणना) में बाघों की संख्या में लगातार वृद्धि दर्ज हुई. कुल 3682 बाघ रिकॉर्ड में दर्ज हैं.
वहीं, उत्तराखंड की बात करें तो-
- साल 2014 में बाघों की संख्या 340 दर्ज की गई थी.
- साल 2018 में बाघों की संख्या 442 दर्ज की गई.
- वहीं, आखिरी गणना जो 2022 में हुई थी, उसके मुताबिक पहाड़ी राज्य में बाघों की संख्या 560 थी.
उत्तराखंड कर रहा कैपेसिटी का अध्ययन: वन मंत्री सुबोध उनियाल कहते हैं कि उत्तराखंड में बाघों की बढ़ती संख्या इस बात को बता रही है कि टाइगर्स के संरक्षण को लेकर उत्तराखंड में बेहतर काम हो रहा है. अब उत्तराखंड बाघों की बढ़ती संख्या के कारण कैरिंग कैपेसिटी (वहन क्षमता) का अध्ययन करवा रहा है. इसके अलावा मानव वन्य जीव संघर्ष पर विशेष तौर से विभाग का फोकस है.
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